समझौता ब्लास्ट मामले की सुनवाई खत्म, कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

3/11/2019 6:44:42 PM

पंचकूला(उमंग): पानीपत में करीब 12 साल पहले हुए बहुचर्चित समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले में आज एनआईए कोर्ट में सुनवाई पूरी हुई। सुनवाई के दौरान 3 आरोपी लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी के साथ मुख्यरोपी असीमानंद भी पेश किया गया। आज हुई सुनवाई के दौरान सुनाया जाने वाला फैसला टल गया, जिसे कोर्ट ने 14 मार्च तक सुरक्षित रख लिया है। मामले में 14 मार्च को फैसला सुनाया जा सकता है।

फैसला टलने का कारण यह था कि एक पाकिस्तानी गवाह ने कोर्ट में एक पिटीशन दाखिल की थी, जिसपर कार्यवाही करने के लिए दो दिन का समय लिया गया है। बताया गया कि पानीपत के एक गवाह मोमीन मलिक ने धारा 311 के तहत एक अर्जी लगाई है। इस अर्जी में पाकिस्तान के एक पीड़ित परिवार व कुछ और लोगों की गवाही करवाने की अपील की गई है। इस अर्जी पर सुनवाई के लिए 14 मार्च की तारीख तय की है।

समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट की साजिश की पूरी कहानी
18 फरवरी 2007 को भारत-पाकिस्तान के बीच हफ्ते में दो दिन चलनेवाली ट्रेन संख्या 4001 अप अटारी (समझौता) एक्सप्रेस में दो आईईडी धमाके हुए, जिसमें 68 लोगों की मौत हो गई थी। यह हादसा रात 11.53 बजे दिल्ली से करीब 80 किलोमीटर दूर पानीपत के दिवाना रेलवे स्टेशन के पास हुआ। धमाकों की वजह से ट्रेन में आग लग गई और इसमें महिलाओं और बच्चों समेत कुल 68 लोगों की मौत हो गई जबकि 12 लोग घायल हुए। 19 फरवरी को जीआरपी/एसआईटी हरियाणा पुलिस ने मामले को दर्ज किया और करीब ढाई साल के बाद इस घटना की जांच का जिम्मा 29 जुलाई 2010 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए को सौंपा गया।

बाद में इस घटना को अंजाम देने का सिलसिलेवार ब्योरा सामने आया।
क्या था मंसूबा?

जांच में यह साबित हुआ कि अटारी एक्सप्रेस (समझौता एक्सप्रेस) 18 फरवरी 2017 को रात 10 बज कर 50 मिनट पर दिल्ली से अपने गंतव्य अटारी (पंजाब) के लिए निकली। रात 11 बजकर 53 मिनट पर हरियाणा में पानीपत के पास दिवाना स्टेशन से गुजरते हुए इसके दो जनरल डिब्बों (जीएस 03431 और जीएस 14857) में दो बम धमाके हुए जिससे इन डिब्बों में आग लग गई। इस हादसे में चार अधिकारियों समेत कुल 68 लोगों की मौत हुई और 12 लोग घायल हुए।

धमाके के बाद इसी ट्रेन के अन्य डिब्बे से बम से लैस दो सूटकेस बरामद हुए। इनमें से एक को डिफ्य़ूज कर दिया गया जबकि दूसरे को नष्ट किया गया। शुरुआती जांच में यह पता चला कि ये सूटकेस मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित कोठारी मार्केट में अभिनंदन बैग सेंटर के बने थे, जिसे अभियुक्त ने 14 फरवरी 2007 को खऱीदा था. यानी कि हमले से ठीक चार दिन पहले। एनआईए की जांच में यह भी पता चला कि जिन लोगों ने हमला किया वो देश के विभिन्न मंदिरों पर हुए चरमपंथी हमलों से भड़के हुए थे। इनमें गुजरात के अक्षरमधाम मंदिर (24.09.2002) और जम्मू के रघुनाथ मंदिर में हुए दोहरे धमाके (30 मार्च और 24 नवंबर 2002) और वाराणसी के संकटमोचन मंदिर (07 मार्च 2006) शामिल हैं।

जांच के दौरान यह भी साबित किया गया कि नब कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी उर्फ मनोज उर्फ गुरुजी, रामचंद्र कलसांगरा उर्फ रामजी उर्फ विष्णु पटेल, संदीप दांगे उर्फ टीचर, लोकेश शर्मा उर्फ अजय उर्फ कालू, कमल चौहान, रमेश वेंकट महालकर उर्फ अमित हकला उर्फ प्रिंस ने अन्य लोगों के साथ मिलकर इस हमले को अंजाम दिया। एनआईए के पंचकुला स्थित स्पेशल कोर्ट में उपरोक्त अभियुक्तों को लेकर 2011 से 2012 के बीच तीन बार चार्जशीट फाइल की गई। इंदौर, देवास (मध्य प्रदेश), गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, जम्मू, उत्तराखंड और झारखंड के कुछ शहरों में आगे और भी विस्तार से जांच की गई. पूरे देश में बड़ी संख्या में लोगों से पूछताछ की गई। जांच अधिकारियों के मुताबिक अभियुक्त देश के विभिन्न मंदिरों पर चरमपंथी हमलों से बेहद खफा थे और बदला लेने के लिए उन्होंने इस कार्रवाई को अंजाम दिया था।

ये अभियुक्त बम धमाके करने के उद्देश्य से योजना बनाने को लेकर देश के विभिन्न शहरों में एक-दूसरे से मिलते थे। इन लोगों ने बम बनाने से लेकर मध्य प्रदेश और फऱीदाबाद के कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में पिस्तौल चलाने तक की ट्रेनिंग ली। 15 दिसंबर 2012 को इस मामले में राजिंदर चौधरी नामक शख्स को इंदौर से गिरफ्तार किया गया। राजिंदर चौधरी के साथ ही कमल चौहान और लोकेश शर्मा का नाम भी 2006 में हुए मालेगांव ब्लास्ट में सामने आया। यह भी सामने आया कि राजिंदर चौधरी ने इन सभी अभियुक्तों के साथ जनवरी 2006 में मध्य प्रदेश के देवास में बम विस्फ़ोट और पिस्तौल चलाने की ट्रेनिंग ली थी।

इसके बाद राजिंदर चौधरी और कमल चौहान ने दिसंबर 2006 के आस-पास पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की रेकी की। दोनों इंदौर इंटरसिटी एक्सप्रेस से फर्जी नाम के साथ दिल्ली पहुंचे और वहां मौजूद सुरक्षाबंदोबस्त का जायजा लेकर उसी दिन वापस लौट गये थे। उन्होंने बताया कि वहां सुरक्षा चाकचौबंद है, लिहाजा दो और मौके पर जनवरी-फरवरी 2007 में स्टेशन की रेकी फिर से की गई।

ब्लास्ट के दिन क्या हुआ था?
जांच में पता चला कि लोकेश शर्मा, राजिंदर चौधरी 17 फरवरी (समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट से एक दिन पहले) को इंदौर में रमेश उर्फ अमित हकला के कमरे पर पहुंचे जहां उनके साथ अन्य अभियुक्त कमल चौहान, रामचंद्र कलसांगरा शामिल हुए। इसके बाद रामचंद्र कलसांगरा ने लोकेश शर्मा, अमित हकला, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को फर्ज़़ी नामों वाली दो टिकटें और आईईडी से भरा एक-एक बैग सौंपा जिसे बाद में समझौता एक्सप्रेस में रखा गया था।

जिस कमरे में यह बैग इन चारों अभियुक्तों को सौंपा गया था उसे रामचंद्र कलसांगरा ने किराये पर ले रखा था और उसमें अमित हकला 2006-07 से रह रहा था। यही वो कमरा था जिसमें इस ब्लास्ट में इस्तेमाल किए गए ज्वलनशील पदार्थों को बोतल में सील करने का काम भी अमित हकला और कमल चौहान ने किया था। इन चारों अभियुक्तों को रामचंद्र कलसांगरा ने ही अपनी मारुति वैन में इंदौर स्टेशन छोड़ा था। इंदौर से चल कर चारों अभियुक्त 18 फऱवरी की सुबह निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंचे और फिर वहां से लोकल ट्रेन के जरिए पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे।

पुरानी दिल्ली के डॉरमेट्री में ठहरे
इतना ही नहीं ये चारों अभियुक्त पुरानी दिल्ली के डॉरमेट्री के दो अलग-अलग कमरों में भी ठहरे थे. कुछ देर यहां आराम करने के बाद ये सभी सूटकेस को वहीं छोड़कर बाहर भी गए थे. शाम को जब ये डॉरमेट्री में वापस लौटे तो रमेश वेंकट महालकर (अमित हकला) ने राजिंदर चौधरी से दरवाज़े पर नजऱ रखने को कहा ताकि बम के टाइमर को सेट किया जा सके. दूसरी तरफ लोकेश शर्मा ने भी दोनों सूटकेस में टाइमर लगाने की कोशिश की लेकिन वहां लोगों की उपस्थिति की वजह से वो उसे एक्टिवेट नहीं कर सके। उसने इसकी जानकारी अमित हकला को दी। फिर दोनों ने डॉरमेट्री की सीढिय़ों पर अपने सूटकेस आपस में बदल लिये। फिर लोकेश शर्मा और कमल चौधरी सूटकेसों के साथ प्लेटफॉर्म पर चले गए और समझौता एक्सप्रेस के स्टेशन पर लगाए जाने का इंतज़ार करने लगे।

उधर, अमित हकला ने सीढय़िों पर बदले गए दोनों सूटकेसों में रखे बम के टाइमर को सेट किया और फिर राजिंदर चौधरी के साथ वो भी उस स्टेशन पर चले गए जहां समझौता एक्सप्रेस को लगाया जाना था। समझौता एक्सप्रेस पहले प्लेटफॉर्म के कोने (तब 18 नंबर प्लेटफॉर्म) पर लगाई गई, अमित हकला और राजिंदर चौधरी उस पर चढ़ गया। इसके बाद समझौता एक्सप्रेस तय समय के मुताबिक अपने गंतव्य अटारी की ओर चल पड़ी और फिर रास्ते में पानीपत के पास यह धमाका हुआ।

शिमला समझौते की देन है समझौता एक्सप्रेस
भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता एक्सप्रेस ट्रेन की शुरुआत शिमला समझौते के बाद 22 जुलाई 1976 को हुई थी। तब यह ट्रेन अमृतसर और लाहौर के बीच 52 किलोमीटर का सफऱ रोजाना किया करती थी। पंजाब में 1980 के दशक में फैली अशांति को लेकर सुरक्षा की वजहों से भारतीय रेल ने इस सेवा को अटारी स्टेशन तक सीमित कर दिया, जहां कस्टम और इमिग्रेशन की मंजूरी ली जाती है। जब यह सेवा शुरू हुई थी तब दोनों देशों के बीच ट्रेन रोजाना चला करती थीं जिसे 1994 में हफ़्ते में दो बार में तब्दील कर दिया गया।

कई बार बाधित हुई समझौता एक्सप्रेस ट्रेन सेवा
पहली बार इस ट्रेन का परिचालन 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए चरमपंथी हमले के बाद रोका गया।
1 जनवरी 2002 से लेकर 14 जनवरी 2004 तक दोनों देशों के बीच यह ट्रेन नहीं चली।
इसके बाद 27 दिसंबर 2007 को पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की हत्या के बाद एक बार फिर इस ट्रेन का परिचालन रोक दिया गया।
8 अक्तूबर 2012 को पुलिस ने दिल्ली आ रही इस ट्रेन से वाघा बॉर्डर पर 100 किलो प्रतिबंधित हेरोइन और 500 राउंड कारतूस बरामद किये।
28 फऱवरी 2019 को एक बार फिर दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव को देखते हुए इसे रोक दिया गया था।

Shivam