दुखद: धरना देते-देते मर गया किसान, लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक न रेंगी

8/3/2019 4:07:54 PM

भिवानी (अशोक भारद्वाज): किसी इंसान को जब यह महसूस होता है कि उसके साथ अन्याय हो रहा है तो वह सरकार से गुहार लगाता है। जब सरकार उसे अनसुना कर देती है तो पीड़ित इंसान धरना देने को मजबूर हो जाता है, लेकिन उसके प्रति सरकार इस प्रकार अपने आंख-कान मूंद लेती है, जैसे सरकार को उसकी समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है। फिर चाहे अन्याय का मारा इंसान प्रकृति की मौत ही क्यों न मर जाए। ठीक ऐसा ही मामला हरियाणा के जिले भिवानी से आया है, जहां एक धरनारत किसान की धरनास्थल पर ही मौत हो गई।

दरअसल,  54 वर्षीय किसान रामोतार पिछले चार महीने से धरने पर बैठा था। रामोतर के धरने की वजह यह थी कि उसके नाम जितनी भी जमीन थी, वह लगभग सारी की सारी ही एनएच 152 डी के अधिग्रहण में आ गई है। इसी जमीन के पर्याप्त मुआवजे और टोल टैक्स में हिस्सेदारी की मांग लेकर किसान रामोतार धरना दे रहा था। बताया जा रहा है कि सरकार उसकी जमीन का मुआवजा बाजार भाव का ने देकर बल्कि 10 साल पहले के दामों में दे रही थी, जिस कारण वह अपने बच्चों के भविष्य को लेकर काफी चिंतित रहने लगा था।



बीते हफ्ते से कुछ ज्यादा परेशान रहने लगा
स्थानीय लोगों ने बताया कि रामोतार पिछले चार महीने से परेशान था, दिन रात धरनास्थल पर रहता था। रामोतार इस धरने पर सबसे ज्यादा एक्टिव सेवादार आदमी था, चाय पानी से लेकर बुजुर्गों की देखभाल सब खुद करता था, जो पिछले 1 हफ्ते से कुछ ज्यादा ही परेशान रहने लगा। लोगों ने बताया कि रामोतार अपना दुखड़ा सुनाते हुए रो पड़ता था और कहता कि सरकार हमारी क्यों नहीं सुनती है, जमीन छीनी जा रही है।

रोजाना की तरह नहाया और लस्सी पिया
मौजूदा लोगों ने बताया कि रामोतार आज सुबह ये ज्यादा चिंतित और बेचैन था। सुबह धरने के साथ लगती नहर पे लगे हैंडपम्प पर नहाकर घर से आई लस्सी पी और 10 मिनट बैठा रहा। इसके बाद कहा, ''मेरे भतीजे को बुला दो, भाई न्यू लागै इस जमीन के साथ मैं भी मरूंगा'' इतना कहने के बाद ही 2 मिनट तक उसकी छाती में दर्द हुआ और फिर किसान ने दम तोड़ दिया।

दुखद ये है कि बड़े अफसोस की बात है कि ढाणी फौगाट में किसान रामोतार की मौत के 5 घंटे बीतने के बाद भी प्रशासन का कोई अधिकारी किसानों से बात करने नहीं पहुंचा। जिस कारण है मौके पर मौजूद किसानों में सरकार के रूखे रवैये को लेकर आक्रोश बना हुआ है।

चिंता का विषय यह है कि ऐेसे कब तक किसान अपनी मांगों को लेकर अपनी जान देते रहेंगे और सरकारें उनकी मौत का तमाशा कब तक देखती रहेंगी? और आखिर न्याय की गुहार लगाने वाले को न्याय कब और किस सरकार में मिलेगा?

Shivam