SYL की सही पैरवी नहीं कर पाई पंजाब सरकार,इसलिए लगा झटका

11/13/2016 3:50:12 PM

नई दिल्ली (ब्यूरो): सुप्रीम कोर्ट ने हाल में एस.वाई.एल. नहर के मुद्दे पर पंजाब सरकार को जो झटका दिया है। वास्तव में उसकी इबारत 2004 में लिख दी गई थी जब राज्य की तत्कालीन कैप्टन अमरेंद्र सरकार ने आनन-फानन में राज्य विधानसभा में पंजाब एक्ट 2004 पारित करके एक घंटे के भीतर ही राज्यपाल के  हस्ताक्षर के लिए भेजा था। 
अकाली दल जो कि विधेयक को सर्वसम्मति से विधानसभा में पारित करवाने में अमरेंद्र सरकार के साथ था, राज्यपाल पर तत्काल यह दबाव बनाने की बजाय राजनीतिक लाभ पाने के लिए सियासी रूप से मशगूल हो गया।

एस.वाई.एल. मुद्दे पर कई वर्षों से निगाह रखने वाले कानूनी जानकारों का कहना है कि तब पंजाब में विपक्षी अकाली दल व बाकी पार्टियां इस बात को पूरी तरह भूल गईं कि विधानसभा में विधेयक पारित करना पर्याप्त नहीं होता, वह कानून का रूप तभी लेता है जब राज्यपाल उस पर हस्ताक्षर कर देते हैं। कैप्टन ने विधानसभा का प्रस्ताव एक घंटे बाद ही राज्यपाल को हस्ताक्षर के लिए पेश कर दिया था लेकिन अकाली दल राज्यपाल पर जल्द हस्ताक्षर का दबाव बनाने की बजाय निजी प्रशंसा व सियासी लाभ हासिल करने की होड़ में शामिल हो गया। 

राज्यपाल ने विधानसभा का प्रस्ताव 3 दिन तक अपने पास विचार के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया था। हरियाणा सरकार ने राज्यपाल की ओर से हस्ताक्षर करने में हुई देरी का बड़ी तत्परता से फायदा उठाया और सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया। उसी का परिणाम है कि पंजाब को इतनी गहरी चोट खानी पड़ी। पंजाब से लेकर दिल्ली की सियासत में इस बात को लेकर भी चर्चा सुर्खियों में है कि जिस कानूनी टीम ने वर्तमान में हरियाणा सरकार की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की है वही टीम पहले इसी केस में पंजाब सरकार की पैरवी कर चुकी है। पंजाब सरकार की किरकिरी इसलिए भी हो रही है कि उसकी कोई कानूनी तैयारी ही नहीं थी। हरियाणा सरकार के वकीलों ने पंजाब सरकार के वकीलों को हर मामले में पटखनी दी। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पंजाब सरकार की ओर से इस मामले की ढंग से पैरवी की गई होती तो कम से कम सुप्रीम कोर्ट की पीठ को बीच का रास्ता निकालने को राजी किया जा सकता था।