सलारगंज नहीं... अब ‘सलारजंग’ गेट कहिए जनाब

punjabkesari.in Tuesday, Sep 08, 2015 - 10:30 AM (IST)

पानीपत (सरदाना): ऐतिहासिक नगरी कहलाने वाले पानीपत में पर्यटन की अपार संभावनाओं के बावजूद कभी भी और किसी भी सरकार द्वारा तवज्जो न दिए जाने के चलते पर्यटन की तमाम संभावनाएं भी क्षीण हो चुकी हैं। आलम यह है कि पानीपत के स्थानीय निवासियों को ही पानीपत के इतिहास के महत्व, यहां पर मौजूद पुरातत्व महत्व की इमारतों, उनके निर्माण या फिर उनके निर्माण के पीछे की जरूरतों के बारे में भी जानकारी नहीं है। लगातार बदलती रही आब-ओ-हवा के साथ-साथ पानीपत का इतिहास भी पीछे छूटता गया और आज पौराणिक-पुरातत्व महत्व की इमारतें केवल इमारतें भर ही बनकर रह गई हैं जिनकी देखभाल केंद्रीय पुरातत्व विभाग की तरफ से की तो जा रही है लेकिन बीतते समय के साथ इमारतें जर्जर होती जा रही हैं।

पानीपत शहरवासी शहर के सबसे प्रसिद्ध और सबसे व्यस्ततम मार्ग पर स्थित सलारगंज गेट को जरूर जानते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस सलारगंज गेट का असली नाम सलारजंग गेट है। इतिहासकारों की मानें तब बाबर काल में पानीपत एक रियासत थी जिस पर नवाब सादिक अली राज करते थे और बताया जाता है कि वे काफी धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।

इतिहासकार रमेश पुहाल इस बारे में बताते हैं कि जिस स्थान पर आज गंगापुरी रोड, सनौली रोड, अमर भवन चौक, इंसार बाजार, तहसील कैंप मौजूद है, तब यह जी.टी. रोड हुआ करता था और सलारजंग गेट जी.टी. रोड के ठीक ऊपर बनाया गया था जिसके नीचे से दिल्ली-लाहौर आने-जाने वाले यात्री निकलते थे। समय बदला तो इस गेट का नाम भी बिगड़ता चला गया और आज इस गेट को सलारगंज गेट के नाम से जाना जाता है।

आज इस गेट की हालत यह है कि गेट के आस-पास भारी मात्रा में अतिक्रमण है, पुरातत्व महत्व की इस इमारत को जो सम्मान मिलना चाहिए था वह उसे नहीं मिल पा रहा, लोग गेट को केवल बैनर, होॄडग टांगने के लिए इस्तेमाल करते हैं और प्रशासन कभी भी इसकी सुध नहीं लेता।

बाबर की मरहूम पत्नी की याद में बनी काबुली बाग मस्जिद
शहर में ही एक और इमारत मौजूद है, काबूली बाग मस्जिद। काफी कम लोगों को ही इसकी व इसके इतिहास की जानकारी होगी। मस्जिद के निर्माण का इतिहास जितना रोचक है उतना ही दर्दनाक और खूनी भी है। दिल्ली सल्तनत पर इब्राहिम लोधी काबिज थे तो दूसरी तरफ अफगान मुगल बादशाह बाबर अपनी सेना के बूते दुनिया पर कब्जा करने की फिराक में था।

सन 1526 ईस्वी में बाबर ने पूरी ताकत से भारत पर हमला किया और उत्तरी भारत के राज्यों पर जीत हासिल करते हुए पानीपत तक पहुंचा। इस बात के पुख्ता प्रमाण मौजूद हैं कि बाबर ने अपनी सेना के साथ पानीपत-करनाल मार्ग पर शहर से कुछ दूरी पर अपना खेमा लगाया था जिस कारण से आज मौजूदा बाबरपुर कस्बा बसा हुआ है।

बाबर को रोकने के लिए दिल्ली से इब्राहिम लोधी पानीपत पहुंचे और अपनी पूरी ताकत झोंकते हुए बाबर से युद्ध किया जिसे पानीपत की पहली लड़ाई कहा जाता है। युद्ध में लोधी की हार हुई और वे मारे गए। इसी युद्ध के दौरान ही बाबर की पत्नी काबुली जो बाबरपुर में ठहरी हुई थी कि तबीयत बिगडऩे के कारण उसकी मौत हो गई। पानीपत पर कब्जा करने के तुरंत बाद बाबर ने अपनी पत्नी काबुली की याद में काबुली बाग मस्जिद का निर्माण करवाया था।

काबिले गौर है कि बाबर ने अपनी पत्नी की याद में यहां पर 2 मकबरे भी बनवाए थे, जो आज भी ज्यों के त्यों मौजूद हैं लेकिन इसमें काबुली को दफनाया नहीं गया था। काबुली को अफगान वापस ले जाकर दफनाया गया था लेकिन यहां पर 2 मकबरे किस लिए बनवाए गए, इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है। काबुली बाग मस्जिद के साथ लगती जमीन पर एक बेहद विशाल और खूबसूरत बाग भी बनाया गया था जिसमें विभिन्न प्रकार के फलों के पेड़ लगाए गए थे। समय बीतने के साथ आज मस्जिद पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है, मस्जिद की दीवार के साथ गंदे पानी की निकासी होने के चलते तालाब बन चुका है तो पूरे क्षेत्र की गंदगी की डम्पिंग भी इसी प्राचीन, ऐतिहासिक और पुरातत्व महत्व की विशाल इमारत के पास की जा रही है।

क्यों बिगड़े हालात

सच्चाई यही है कि आज तक भी प्रदेश की सत्ता पर काबिज रही किसी पूर्व या वर्तमान सरकार द्वारा पानीपत के पर्यटन को बढ़ावा देने या इन इमारतों के महत्व को समझने का प्रयास तक नहीं किया गया। सरकारों व प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा ध्यान न दिए जाने के चलते ही आज हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि पानीपत में पर्यटन की संभावना भी नहीं रही। बाहरी लोग तो दूर की कसौटी है, शहरी बाशिंदे भी इन इमारतों में जाना और उनके महत्व को जानने का प्रयास तक नहीं करते हैं।


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