सुबह होेते ही पटरी पर बिकने पहुंच जाते हैं दान के कंबल

12/25/2015 12:29:23 AM

पानीपत, (सरदाना) : कडक़ड़ाती,हाड़तोड़,भीषण और जमा देने वाली सर्दी और कोहरे से भरी रात में सडक़ों पर सोते हुए बेघर-बेसहारा लोग आपको अक्सर दिखाई देते होंगे। कभी अलाव जलाकर तो कभी किसी बिल्डिंग के कोने में दुबक कर सर्दी से बचने की नाकाम सी कोशिश करते हुए लोगों के प्रति अक्सर दयाभाव भी पैदा होता है। फिर परोपकार कर पुण्य कमाने की दिल में पैदा होने वाली नीयत से आप पचरंगा बाजार में पहुंचते हैं। कुछ कंबल खरीदते हैं जिन्हें सर्दी से दो-चार होते और बचने की जद्दोजहद में जुटे लोगों को दान कर दिया जाता है। दिल ही दिल में अपने इस कार्य की सराहना करते हुए, इस बात से खुद को संतुष्टि देते हुए कि शायद अब इस दान कार्य से बेसहारा लोग सर्दी की इन भयंकर रातों से बच जाएंगे और बेसहारा लोगों की सर्दी के दिनों की सबसे बड़ी जरुरत को पूरा करने में आपने अहम भूमिका निभा दी है,तो आप गलत हैं। सरासर गलत हैं। 

कारण,पानीपत में परोपकार के कंबलों की बिक्री का धंधा जोरों पर है। लोगों विशेषकर पानीपत की समाजसेवी संस्थाओं द्वारा अपने बूते पर हाड़तोड़ सर्दी की इन रातों में बिस्तर के मोह को छोडक़र सडक़ों पर सोए लोगों पर जो कंबल ओढ़ाए जा रहे हैं, उन्हें अगले ही दिन बेसहारा लोगों द्वारा ही बाजार में खुलेआम से बेचा जा रहा है। अगले ही दिन बेघर-बेसहारा लोग फिर से सडक़ पर, उसी हालात में और सर्दी से लड़ते नजर आते हैं तो रहमदिली-दरियादिली दिखाते हुए लोग फिर से कंबल दान करने के लिए पहुंच जाते हैं परोपकार के कार्य से नशा करने वाले इन बेसहारा लोगों के पास।

150 का कंबल बिकता है 60-70 में

दान के कंबल यानि बेसहारा लोगों के लिए मौज की दुकान,पुण्य कमाने की लालसा के चलते बड़ी संख्या में लोग कंबल दान करने पहुंचते हैं। दान लेने के लिए भी अनेक प्रकार की तरकीबों को अमल में लाया जाता है। शनि मंदिर बिश्नस्वरुप कालोनी के अमित स्वामी,निफा के अमित जांगड़ा और डा.देवेंद्र नरूला बताते हैं कि बीते करीब बीस दिन के दौरान उन्होंने कई बार कंबल वितरित किए हैं, लेकिन कहीं बूढ़ों को आगे करके तो कहीं छोटे बच्चों के नाम पर दो से तीन कंबल तक हासिल किए जाते हैं। इन्हें केवल तब तक ही खोला और ओढ़ा जाता है जब तक दानकर्ता मौके पर मौजूद हैं। अगले ही दिन इन कंबलों को फुटपाथ पटरी पर बेच दिया जाता है। बाजार से एक कंबल की खरीद 130 से 150 रुपए में होती है जिसे बाद में 60 से 70 रुपए में बेच दिया जाता है। पटरी दुकानदार इसे 100 रुपए तक में बेच कर 30 रुपए का मुनाफा कमा लेता है।

नशे की मांग को पूरा करने का जरिया बने दान के कंबल
भीषण सर्दी का यह मौसम जब कुछ घंटे बिना गर्म कपड़ों और रजाई के रहने पर आपकी तबीयत बिगाड़ सकता है तब बिना गर्म कपड़ों और रजाई के सडक़ों पर खुले आसमान के नीचे सोने वाले लोगों पर इसका कितना असर होगा, यह अंदाजा लगाना भी मुमकिन नहीं है। समाजसेवी एवं चिकित्सक डा.अशोक मुंजाल,मास्टर ओमवीर और सावन जांगड़ा का कहना है कि उक्त लोग सर्दी से बचने के लिए ऊंचे दर्जे के नशे का इस्तेमाल बड़े स्तर पर करते हैं। सडक़ों पर रहने वाले इन लोगों को शरीर में इंजेक्शन लगाते हुए और बड़ी मात्रा में शराब का सेवन करते हुए आसानी से देखा जा सकता है जिससे वे सर्दी से बचे रहते हैं। नशे के सामान की खरीद करने के लिए पैसों की जरुरत होती है जो दान के कंबलों को बेचकर पूरी कर ली जाती है और खाना भी शहर के दानवीर सज्जन बैठे-बैठाए ही खिला देते हैं। इसी कारण से शहर की सडक़ों पर बिना कंबलों के ही लोग बिना गर्म कपड़ों के सोए आसानी से मिल जाते हैं।