समझौते की शर्तें लीक करने से इन्कार

11/6/2017 2:31:26 PM

चंडीगढ़(पांडेय):पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए नागा विद्रोहियों व भारत सरकार में हुए शांति समझौते का ब्यौरा सार्वजनिक करने से भारत सरकार ने इन्कार किया है। समझौता हुए 2 वर्ष बीत जाने पर भी सरकार इसके रहस्यों से पर्दा उठाने को तैयार नहीं है। गृह मंत्रालय ने कहा है कि मामला देश की एकता, अखंडता से जुड़ा है, आर.टी.आई. से बाहर है। मामला केंद्रीय सूचना आयोग में पहुंच गया है। पानीपत के आर.टी.आई. एक्टिविस्ट पी.पी. कपूर ने बताया कि बहुचर्चित नागा शांति समझौते के सम्पन्न होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 वर्ष पूर्व इसे भारी उपलब्धि बताया था लेकिन यह समझौता क्या है। इसे देश को बताने को मोदी सरकार तैयार नहीं है। आरोप लगाया कि इसमें कुछ ऐसी शर्तें हैं जिनके सार्वजनिक होने पर मोदी सरकार के राष्ट्रवाद की कलई खुल सकती है।

इसलिए 2 वर्ष का लंबा समय बीत जाने पर भी देश की जनता से छिपाया जा रहा है। चर्चा है कि भारत सरकार ने नागा विद्रोहियों की अलग झंडे व अलग पासपोर्ट की मांग को स्वीकार किया है। कपूर ने बताया कि उन्होंने गत वर्ष 9 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री कार्यालय में आर.टी.आई. लगाकर भारत सरकार व नैशनलिस्ट सोशलिस्ट काऊंसिल ऑफ नागालैंड के बीच 3 अगस्त 2015 को सम्पन्न समझौते की प्रति मांगी थी। यह भी जानकारी मांगी थी कि समझौते के किन-किन बिंदुओं पर क्रियान्यवन हुआ है। इस आर.टी.आई. आवेदन व प्रथम अपील के बावजूद केंद्रीय गृह मंत्रलायल ने गहन चुप्पी साध ली और कोई जवाब न दिया।

 केंद्रीय सूचना आयोग में 15 नवम्बर 2016 को द्वितीय अपील करने के उपरांत 9 फरवरी 2017 के पत्र द्वारा केंद्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सत्येंद्र गर्ग ने देश की सुरक्षा व अखंडता का संदर्भ बताते हुए समझौते को सार्वजनिक करने से इन्कार कर दिया। सत्येंद्र गर्ग ने बताया कि 3 अगस्त 2015 को भारत सरकार की ओर से नागा शांति वार्ता के वार्ताकार आर.एन. रवि व नैशनलिस्ट सोशलिस्ट काऊंसिल ऑफ नागालैंड की ओर से टी. मुईवाह ने नई दिल्ली में समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते का उद्देश्य पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित करना है।