महंगाई ने हरियाणवीं कहावत के मायने भी बदले

punjabkesari.in Thursday, Sep 03, 2015 - 03:28 PM (IST)

 बहादुरगढ़ : प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि देशां मैं देश हरियाणा, जित दूध-दही का खाणा। यह बात अब केवल ग्रंथों में ही अच्छी लगती है। महंगाई के इस दौर में जब दाल-रोटी के लिए ही फिक्र का पहाड़ खड़ा हो गया है तो दूध-दही खाने की थाली में कैसे शामिल हो पाएगी। 

 महंगाई की छाया से जब कोई भी वस्तु नहीं बच पा रही है तो ऐसे समय में दूध-दही का खाणा जो हरियाणा की शान समझा जाता है वह भी महंगा होना लाजमी है। शहर की प्रमुख दुकानों पर दूध और दही के दाम भी बढ़ गए हैं। कुछ दिनों पहले तक जो दही 50 से 60 रुपए प्रति किलोग्राम तक बिक रही थी अब वह 70 से 80 रुपए प्रति किलोग्राम तक जा पहुंची है। शहर की जिन चर्चित दुकानों पर कूल्हड़ की लस्सी पिछले सीजन में 20 रुपए कीमत में बिकी। अबकी बार उसकी कीमत 25 से 30 रुपए हो गई है। इन दुकानदारों का कहना है कि पहले उन्हें जो दूध पशु पालकों से 40 रुपए प्रति किलोग्राम मिलता था उसे वे अपनी दुकान से 42 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचते थे। लेकिन अब उन्हें दूध 46 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से मिल रहा है जिसको 2 रुपए के मुनाफे के साथ 48 रुपए प्रति किलोग्राम पर बेचना उनकी मजबूरी है। ऐसे में जब दूध के दाम बढ़ गए हैं तो सीधे तौर पर दही भी भाव खाएगी।
 
 सिंथेटिक दूध के दामों में भी 2 से 3 रुपए की बढ़ाेतरी हुई है। शहर के गांवों आसौदा, दहकोरा, मांडौठी, जाखौदा, जसौर खेड़ी, बराही, निलौठी, लुहार हेड़ी के अलावा रोहतक जिले के अनेक गांवों से सुबह भारी मात्रा में दूध बिक्री के लिए दिल्ली पहुंच जाता है। सुबह करीब 5 बजे रोहतक से दिल्ली की ओर जाने वाली ट्रेन और फिर दिल्ली से रोहतक की ओर करीब 10 बजे जाने वाली ट्रेन जब बहादुरगढ़ स्टेशन पर पहुंचती है तो इनमें मौजूद दूध के ड्रमों की संख्या यह साफ तौर पर एहसास करवा देती है कि कितनी मात्रा में दूध बिक्री के लिए दिल्ली जाता है। ऐसी हालत में यहां पर दूध की जो किल्लत बनती है उसके बीच गैर पशु पालक परिवारों को दूध के लिए सिंथेटिक दूध या फिर मिठाईयों की दुकान पर उपलब्ध दूध खरीदना पड़ता है। यह सीधे पशु पालक से खरीदे जाने वाले दूध के मुकाबले आमतौर पर महंगा ही होता है, लेकिन इन दिनों दूध के दामों में महंगाई का और भी ज्यादा असर है। ऐसे में आम आदमी की जेब पहले से और हल्की होने लगी है। 
 पशुपालकों द्वारा दूध के दाम बढ़ाए जाने के अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि जब चारे पर लागत बढ़ रही है तो वह घाटा दूध के दामों में बढ़ौतरी से ही तो पूरा होगा। वहीं इस मौसम में पशुओं में दूध की मात्रा भी कम हो जाती है।

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