जाट आरक्षण मामले में HC ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर पूछे सवाल

10/1/2016 10:39:47 AM

चंडीगढ़ (विवेक): हरियाणा में जाटों सहित 6 जातियों को एक्ट बनाकर बी.सी. वर्ग की तीसरी श्रेणी में शामिल किए जाने को चुनौती  देने वाली याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार से पूछा है कि आखिर किन आंकड़ों के आधार पर सी कैटेगिरी को आरक्षण का लाभ दिया गया।

मामले में अर्जी दाखिल करते हुए याचिकाकर्ता ने उन आंकड़ों को हरियाणा सरकार से तलब करने की अपील की थी जिन्हें आधार बनाते हुए हरियाणा सरकार ने तीसरी श्रेणी को आरक्षण का लाभ दिया। हाईकोर्ट ने इस अर्जी पर हरियाणा सरकार को नोटिस जारी करते हुए आंकड़ों के बारे में जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं। 

मामले में शुक्रवार को सुनवाई आरंभ होते ही याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट मुकेश कुमार वर्मा व लाल बहादुर खोवाल द्वारा दाखिल की अर्जी पर बहस शुरू हुई। अर्जी के माध्यम से वर्मा ने कहा कि जाटों को हरियाणा में आरक्षण का लाभ देने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा एक्ट लाया गया और इसके बाद पिछड़ा वर्ग कमिशन का गठन किया गया। इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंदिरा साहनी मामले में दिए गए निर्देशों की पालना नहीं की गई। 

याची ने कहा कि आरक्षण का लाभ देने के लिए संविधान में आर्टिकल 16 के सब क्लॉज 4 में प्रावधान है। इसके तहत राज्य सरकार को अधिकार है कि उनकी राय में जो वर्ग पिछड़ा है उसे आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। याची ने कहा कि यहां राय शब्द के लिए भी व्याख्या मौजूद है जिसके तहत आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद ही आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। ऐसे में याची की अर्जी पर हरियाणा सरकार को नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई पर यह बताने को कहा है कि आखिर किन आंकड़ों को आधार बनाकर हरियाणा में जाटों सहित 6 जातियों को आरक्षण का लाभ दिया गया है। 

क्या के.सी. गुप्ता आयोग द्वारा एम.डी.यू. के माध्यम से करवाए गए सर्वे के अतिरिक्त उनके पास कोई और आंकड़ें मौजूद हैं। साथ ही यह भी बताया जाए कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने के बाद हरियाणा सरकार ने क्या कोई नया सर्वे करवाया है। अगली सुनवाई 7 अक्तूबर को रखते हुए हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को इस बारे में जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं।

कुछ इस तरह चली कोर्ट की सुनवाई 
याची: हरियाणा सरकार के पास के.सी. गुप्ता अयोग की रिपोर्ट के इलावा ऐसे कोई आंकड़ें मौजूद नहीं है जिनको आरक्षण देने का आधार बनाया जा सके। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए एम.डी.यू. से सर्वे करवाया गया था जिसको पहले ही चुनौती दी जा चुकी है। 

हाईकोर्ट: याची की इन दलीलों पर हरियाणा सरकार का क्या पक्ष है?

हरियाणा सरकार: सरकार की ओर से मौजूद एडवोकेट जगदीप धनखड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की सूची में जाटों को आरक्षण देने का मामला था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की सूची के मामले में अपना फैसला सुनाया था न की राज्य की सूची के मामले में। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने के.सी. गुप्ता आयोग की सिफारिशों को खारिज नहीं किया था बल्कि उन्होंने एन.सी.बी.सी. की रिपोर्ट को मंजूरी दी थी जिसमें के.सी. गुप्ता आयोग की सिफारिशों को न मानने का फैसला लिया गया था। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने के.सी. गुप्ता आयोग की सिफारिशों को खारिज किया था। 

हाईकोर्ट: जब सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की सूची के लिए के.सी. गुप्ता आयोग की रिपोर्ट को आधार नहीं माना गया तो राज्य में आरक्षण देने के लिए इसे हाईकोर्ट क्यों माने।

हरियाणा सरकार: नेशनल कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लास और स्टेट कमिशन दो अलग-अलग बॉडी हैं। दोनों बॉडी स्वतंत्र हैं और एक दूसरे की राय को मानने के लिए बाध्य नहीं है। भले ही एन.सी.बी.सी. ने के.सी. गुप्ता आयोग की सिफारिशों को नहीं माना परंतु राज्य का कमिशन यदि इसे मान रहा है तो इसे गलत नहीं करार दिया जा सकता है। 

हाईकोर्ट: इस जवाब पर कोई टिप्पणी नहीं की, पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट आने के बाद हरियाणा सरकार ने कोई सर्वे करवाया। 

हरियाणा सरकार: विधानसभा में बिल को पास करके एक्ट का रूप दिया गया है ऐसे में इसको गलत करार नहीं दिया जा सकता है।

हाईकोर्ट: विधानसभा के कार्य पर हम कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं।