नॉर्दर्न ग्लास फैक्टरी क्षेत्र में तोडफ़ोड़ की तैयारी

1/11/2019 1:35:43 PM

बहादुरगढ़(भारद्वाज): दिल्ली-रोहतक रोड पर गांव सांखोल के नजदीक नॉर्दर्न ग्लास फैक्टरी के लिए अधिगृहीत की गई करीब 44  एकड़ जमीन अब वापस सरकार के पास पहुंचने के साथ ही उसे उद्योग विभाग से लेकर एच.एस.आई.आई.डी.सी. को सौंपने के साथ ही यहां ट्रांसपोर्टनगर बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। 31 दिसम्बर से पहले ही इसकी पक्की प्लाङ्क्षनग रिपोर्ट सरकार के पास भेजने के बाद अब आगे की कार्रवाई के चलते एच.एस.आई.आई.डी.सी. के अधिकारियों ने चंडीगढ़ में डेरा डाल लिया है। 

अधिकारियों की मानें तो चालू हालत में व चल रही फैक्टरियों के संचालकों को डरने को कोई जरूरत नहीं है उन्हें सरकार किसी न किसी योजना में वैध करने जा रही है लेकिन जो स्थान केवल चारदीवारी व छोटे-मोटे कब्जे के लिहाज से तैयार किया गया है उस स्थान को समतल करके वहां बहादुरगढ़ का पहला व विशाल ट्रांसपोर्टनगर तैयार करना है। इसके लिए भी सरकार ने 6 माह का समय फिक्स कर दिया है। इसी कारण अधिकारी कोई लापरवाही नहीं कर रहे। यहां ट्रांसपोर्ट तैयार होने से करीब 2 से 3 हजार के करीब ट्रकों को यहां एक साथ खड़ा किया जा सकेगा। 

उद्योग विभाग की इस कार्रवाई से यहां स्थित 113 छोटी-बड़ी फैक्टरी संचालकों व व्यापारियों के प्लाट हैं। यहां के लोगों को इस बात की जानकारी तो है, वे सुप्रीम कोर्ट में हार चुके हैं, पर उन्हें उम्मीद थी कि सरकार उनके बारे में सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी जिससे वे बर्बाद होने से बच जाए। इसमें केवल फैक्टरी संचालकों को ही अभी तक कु छ आस बंधी है। इस बारे में कुछ फैक्टरी संचालकों से बात करने का प्रयास किया पर वे कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं है। कुछ समय पहले सरकार ने बोर्ड लगाकर सड़क की नपाई की थी। लोगों को इस जमीन के बारे में बताया कि इस जमीन पर कोई प्लाट बेचने व खरीदने व निर्माण पर रोक है क्योंकि यह जमीन सरकार की है। 

1972 में हुआ था अधिग्रहण 
बता दें कि तत्कालीन बंसीलाल सरकार ने वर्ष 1971-72 में दिल्ली-रोहतक रोड पर सांखोल की पंचायती जमीन में करीब 44 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था और यह जमीन नॉर्दर्न ग्लास फैक्टरी को इस शर्त पर दी गई थी कि वह यहां पर फैक्टरी की स्थापना करें। सरकार के उद्योग विभाग व फैक्टरी प्रबंधन के बीच हुए करार में यह शर्त रखी गई थी कि अगर इस जमीन का प्रयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए किया गया या फिर बेचा गया तो सरकार इस जमीन को रिज्यूम कर लेगी। कई सालों तक यह जमीन ऐसे ही पड़ी रही और यहां पर कोई फैक्टरी नहीं लगाई गई और कुछ साल बाद इस जमीन को बेच दिया गया। जब इस बात का पता गांव की पंचायत व सरकार को लगा तो सरकार ने इस जमीन को रिज्यूम कर लिया। जब तक यह फैसला स्थानीय प्रशासन के पास आता तब तक इस जमीन में प्लाट बनाकर लोगों को बेच दिया गया। यहां पर कुछ ही दिनों बाद दर्जनों फैक्टरी भी लग गई थी। 

जब जमीन रिज्यूम करने की कार्रवाई शुरू हुई तो जमीन के तत्कालीन मालिक हाईकोर्ट चले गए थे और हाईकोर्ट ने जमीन मालिकों के हक में फैसला सुना दिया कि सरकार को बिना नोटिस दिए इस तरह जमीन को वापस लेना उचित नहीं। इस फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई थी और वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हक में फैसला सुना दिया और सरकार के निर्णय को सही करार दिया। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अब जाकर प्रशासन ने कार्रवाई शुरू की है। जिससे इस जमीन पर कब्जा वापस लिया जा सके।
 

Deepak Paul