2 IPS व 5 HPS बदले, 2 को अतिरिक्त कार्यभार

9/24/2016 11:36:47 AM

चंडीगढ़ : हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को 2 आई.पी.एस. व 5 एच.पी.एस. अधिकारियों के स्थानांतरण आदेश जारी कर दिए। जबकि 1 आई.पी.एस. अधिकारी व 1 एच.सी.एस. अधिकारी को अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया गया। इनमें हरियाणा पुलिस अकादमी, मधुबन के डी.आई.जी. योगेंद्र सिंह मेहरा को आई.आर.बी. भौंडसी का डी.आई.जी. नियुक्त किया गया है। जबकि आर.टी.सी. भौंडसी के पुलिस अधीक्षक विकास धनखड़ को सी.आई.डी. का पुलिस अधीक्षक व हरियाणा भवन, दिल्ली का पुलिस अधीक्षक (सुरक्षा) लगाया  गया है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (मुख्यालय), पंचकूला पी.के. अग्रवाल को अपने वर्तमान कार्यभार के अलावा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) का कार्य भी सौंप दिया गया है। गुड़गांव मुख्यालय के डी.सी.पी. बिक्रम कपूर को फरीदाबाद मुख्यालय का डी.सी.पी. व सी.आई.डी. के पुलिस अधीक्षक विजय प्रताप सिंह को आर.टी.सी. भौंडसी का पुलिस अधीक्षक नियुक्त कर दिया गया है।

 

एन.आई.टी., फरीदाबाद के डी.सी.पी. पूर्ण चंद को फरीदाबाद में ही डी.सी.पी. (यातायात) नियुक्त किया गया है। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद को पुन: पदनामित रमेश पाल को एन.आई.टी., फरीदाबाद का डी.सी.पी. व अशोक कुमार को गुड़गांव मुख्यालय का डी.सी.पी. नियुक्त किया गया है। गुड़गांव वैस्ट के डी.सी.पी. सुमित कुमार को गुड़गांव के डी.सी.पी., अपराध का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है।

 

दलित शब्द से जुड़ी शर्म खत्म हो
हरियाणा के चर्चित आई.ए.एस. अधिकारी प्रदीप कासनी जो कि 32 वर्ष की नौकरी में 66 तबादलों का दंश झेल चुके है, अब एस.सी./बी.सी. वैल्फेयर विभाग का कार्यभार संभालते ही उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि दलित शब्द के साथ जुड़ी शर्म का नाश हो और वर्ण व्यवस्था गटर में जाए। 

 

हालांकि इन शब्दों का बड़ा ही गूढ़ अर्थ है, क्योंकि कासनी की गिनती जाने-माने साहित्यकारों में होती रही है और वह शुरू से जाति व्यवस्था के खिलाफ रहे है। इन शब्दों के माध्यम से उन्होंने कमजोर वर्गों को संदेश दिया है कि वह दलित शब्द के लिए शर्म महसूस न करे, बल्कि अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए खुलकर सामने आए। दलित अपने को सशक्त मानकर सभी वर्गों के साथ बराबरी में खड़े हो और उसके लिए उन्हें आगे आना होगा। 

 

कासनी ने फेसबुक पर यह भी लिखा है कि जब लग नाता जाति का, तब लग भक्ति न होए। प्रदेश में भाजपा सरकार है, जिसका संबंध आर.एस.एस. से जोड़कर देखा जाता है। इन शब्दों के माध्यम से उन्होंने आर.एस.एस. को चेताया है कि भक्ति की बात से ज्यादा जरूरी जात-पात के भेदभाव का खत्म करना है। बार-बार के तबादलों से आहत कासनी ने अपना मर्म यू व्यक्त किया है कि युद्ध के बाद शांति होती है तो क्यों न शांति के तरीके ढूंढे जाएं। यहां बता दें कि स्पष्टवादिता के चलते सरकार से उनकी पटरी नहीं बैठ पाती और उन्हें किसी भी विभाग में ज्यादा देर टिकने नहीं दिया जाता, लेकिन अब वह सरकार से टकराव की बजाय शांति के तरीके ढूंढना चाहते हैं। 

 

कवि होने का भी नुक्सान झेला
पूर्व की हुड्डा सरकार में तो सी.एम.ओ. में नियुक्त एक अधिकारी ने उनके तबादले पर यह टिप्पणी की थी कि प्रदीप कासनी एक कवि हैं, इसलिए उन्हें बदला गया। जब उन अधिकारी से पूछा गया कि क्या अधिकारी कवि नहीं हो सकता तो उनका कहना था कि कवि कई बार कविता के माध्यम से सरकार की कार्यशैली पर कटाक्ष कर जाते हैं, इसलिए किसी महत्वपूर्ण विभाग में उनकी नियुक्ति संभव नहीं है और लगता है इस सरकार को यही वहम तो नहीं कि कहीं प्रदीप कविता या लेख के माध्यम से सरकार की कार्यशैली पर कटाक्ष न कर दे, इसलिए उन्हें महत्वपूर्ण समझे जाने वाले महकमों से दूर रखा जाता है और फिर बार-बार तबादला कर उन्हें आहत करने का प्रयास भी किया जाता है।