शराब का ठेका नहीं खुलवाने के लिए पंचायतों की बेरुखी आई सामने

12/14/2018 1:49:46 PM

सिरसा(ललित): अपने-अपने गांव में शराब का ठेका नहीं खुलवाने की इच्छुक पंचायतों से सरकार ने आवेदन मांग रखे हैं। जिला में भी जो पंचायतें अपने गांव में शराब का ठेका नहीं खुलवाना चाहती उन्हें आबकारी व कराधान विभाग के जिला कार्यालय में लिखकर देना है। जिला में 338 पंचायतें हैं।

अभी तक किसी एक भी पंचायत आबकारी व कराधान विभाग के जिला कार्यालय में यह लिखकर नहीं दिया है कि वह अपने गांव में शराब का ठेका नहीं खुलवाना चाहती। हालांकि पिछले वर्ष 4 पंचायतों ने यह लिखकर दिया था कि उनके गांव में शराब का ठेका नहीं खोला जाए। इस बार एक भी पंचायत ने इसमें गंभीरता नहीं दिखाई है। प्रदेश की सरकार ने आगामी वित्त वर्ष 2019-2020 के लिए गांव में शराब का ठेका न खुलवाने के लिए आवेदन मांग रखे हैं। सरकार ने प्रदेश की सभी जिला की पंचायतों को 31 दिसम्बर तक की डैडलाइन दी है कि जो पंचायत गांव में शराब का ठेका नहीं खुलवाना चाहती वह लिखकर दे।

ताकि शराब के ठेका आबंटन के समय उसको ध्यान में रखा जाए। पिछले वर्ष भी सरकार ने ऐसा ही किया था कि जिन पंचायतों ने ऐसा लिखकर दिया था नई आबकारी नीति के तहत उन गांवों में शराब के ठेके नहीं खोले गए थे। हालांकि आबकारी विभाग की पालिसी के अनुसार पंचायतों के प्रस्ताव दिए जाने की अंतिम तिथि 31 अक्तूबर होती है इस बार सरकार ने आदेश दिए हैं कि 31 दिसम्बर तक पंचायतें प्रस्ताव पारित करके आबकारी विभाग को भेज सकती है। ऐसे में अब सिर्फ 17 दिन ही बकाया पड़े है लेकिन एक भी पंचायत ने शराब का ठेका न खुलवाने के लिए अपना आवेदन नहीं भिजवाया है।

पिछली बार 4 पंचायतों ने दिया था प्रस्ताव पिछली वर्ष जिला की 4 पंचायतें जिनमें बुढ़ीमेड़ी, गिदड़ा, बेहरवाला खुर्द, आनंदगढ़ शामिल है ने लिखकर आबकारी विभाग में दिया था कि उनके गांव में शराब का ठेका नहीं खोला जाए। इन पंचायतों ने इस पर मामले में गंभीरता दिखाते हुए यह प्रस्ताव पंचायत में पारित किया। पंचायत में पारित हुए प्रस्ताव को आबकारी व कराधान विभाग के कार्यालय में भेजा गया था। नियमों पर खरा उतरना थोड़ा मुश्किल अक्सर यही देखने में आता है कि पहले पंचायतें गांव में शराब का ठेका न खोले जाने को लेकर सरकार को लिखकर प्रस्ताव नहीं भेजती।

जब ठेका खुल जाता है तो सरपंच व ग्रामीण उसे बंद करवाने के लिए डी.सी. कार्यालय के चक्कर काटते रहते है। फिर यह हवाला दिया जाता है कि शराब का ठेका खुलने के कारण गांव में माहौल खराब हो रहा है। सच्चाई यह भी है कि आबकारी विभाग के नियम कड़े होने के कारण गांव में शराब का ठेका न खुलवाने की इच्छुक पंचायतें उन नियमों पर खरा नहीं उतर पाती। समाजसेवी व धार्मिक संस्थाएं मौन गांव-गांव में नशे के खिलाफ अनेक समाजसेवी व धार्मिक संस्थाओं ने अपने-अपने हिसाब से मुहिम छेड़ी हुई है। नशे से होने वाले दुष्प्रभाव व नुक्सान के बारे में लोगों को जागरुक किया जाता है। उन्हें नशे छोडऩे के लिए प्रेरित किया जाता है। पोस्त, अफीम, हैरोइन सहित अन्य नशों की तरह ही शराब का नशा भी शरीर के लिए नुक्सानदायक है।

अत्यधिक शराब के सेवन से व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती है। नशे के खिलाफ अलख जगाने वाली यह संस्थाएं भी फिलहाल तो मौन साधे है। यह संस्थाएं सक्रियता दिखाते हुए पंचायतों को जागरुक करके उनसे गांव में ठेका न खोले जाने का प्रस्ताव पास करवाकर भिजवा सकती हैं।

Deepak Paul