सूरत कोचिंग सैंटर में आगजनी को एक माह, शायद प्रशासन को अगली घटना का इंतजार

6/24/2019 10:23:55 AM

यमुनानगर (सतीश): शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में 60 से ज्यादा कोचिंग सैंटर नियम-कायदों को ताक पर रखकर चल रहे हैं। इन सैंटरों के पास फायर एन.ओ.सी. नहीं है। इन सैंटरों में न तो आपातकाल के दौरान निकासी की कोई व्यवस्था है और न ही आग बुझाने के इंतजाम। फायर ब्रिगेड और प्रशासन के पास कोचिंग सैंटरों के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं हैं। ऐसे में अगर यहां आग लगती है तो सूरत जैसा ही हादसा हो सकता है। गौरतलब है कि सूरत के कोचिंग सैंटर में 24 मई को आगजनी हुई थी। इसे हुए एक माह हो गया, पर यहां ठोस कार्रवाई नजर नहीं आई। हां अलग अलग विभाग ने रस्मी दौरे जरूर किए। शहरवासियों का कहना है कि इस गंभीर मुद्दे के लेकर काम नजर आना चाहिए। अधिकतर कोचिंग सैंटर किराए के भवनों में चल रहे हैं। शायद इसी कारण ये सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं कर रहे।

सुरक्षा और सुविधाओं के नाम पर खास नहीं
छोटे, बड़े 60 से अधिक कोचिंग सैंटर में हजारों की संख्या में छात्र-छात्राएं रोजाना कोचिंग लेने आते हंै। प्रत्येक विद्यार्थी से मोटी फीस तो वसूली जा रही है लेकिन सुरक्षा और सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ खास नहीं है। ज्यादातर के पास न तो आग बुझाने के यंत्र उपलब्ध हैं और न ही आगजनी की घटना होने पर बच्चों को कम समय में सुरक्षित निकालने की व्यवस्था है। इतनी ही नहीं कइयों में तो छोटे-छोटे कमरों में बड़ी संख्या में बच्चों को ठूस कर कोचिंग दी जा रही है और सीढिय़ों का रास्ता भी बहुत तंग है। पहली से तीसरी मंजिल तक पर कोचिंग सैंटर चल रहे हैं। अनेक कोचिंग सैंटर स्कूल व कालेजों के आसपास बने हुए हैं।

नीचे उतरने के लिए कोई विकल्प नहीं
जिले में अधिकतर कोचिंग सैंटर बहुमंजिला इमारतों में चल रहे हैं। इमारत में ऊपर से नीचे आने के लिए केवल एक ओर ही सीढिय़ां बनी होती हंै वो भी संकरी। किसी किसी भवन में तो सीढिय़ां भी घुमावदार हैं। अगर जीने (छज्जा) के पास कोई अप्रिय हादसा होने लगे तो नीचे उतरने के लिए कोई विकल्प नहीं है। नियमों को ताक पर रखकर चलाए जा रहे इन भवनों में आने वालों की सुरक्षा भी राम भरोसे है। 

एन.ओ.सी. तक नहीं ली
भवन निर्माण व बाद में इनमें कोचिंग सैंटर खुलने के बाद अधिकारियों ने ये जानने की कोशिश नहीं की कि ये भवन सुरक्षा की दृष्टि से कितने सुरक्षित हैं। कुछ कोचिंग सैंटर में कक्षाएं बेसमैंट में भी चल रही हैं। सीढिय़ों से ही आने-जाने की व्यवस्था के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। कभी भी दुर्घटना होने पर भगदड़ मचने से बड़ा हादसा हो सकता है। आग बुझाने के संसाधन भी कई कॉम्प्लैक्सों में नहीं है। हैरानी की बात तो यह है कि नियमों को ताक पर रखकर कोचिंग सैंटर संचालित किए गए हैं। किसी ने भी दमकल विभाग से एन.ओ.सी. तक नहीं ली है। 

अभी तक का रवैया भी सुस्ती भरा
एक माह की अवधि के बावजूद कोचिंग सैंटर संचालकों की तरह जिला प्रशासन का रवैया भी सुस्ती भरा है। सूरत हादसे से अब तक सबक नहीं लिया गया। किसी कोचिंग सैंटर के यहां चैकिंग करना तो दूर की बात है। सुरक्षा को लेकर कोई गाइडलाइन भी जारी नहीं की गई। अधिकारियों को शायद सूरत जैसे हादसे का इंतजार है। कोचिंग सैंटरों में लकड़ी व गत्ते का इस्तेमाल काफी मात्रा में किया जा रहा है जो जल्द ही आग पकड़ लेते हंै।

बने कमेटी, हो औचक निरीक्षण
संजय विहार के सुशील धीमान, कमल दहिया, सरोजनी कालोनी के अशोक जैन व कारोबारी आशीष गौरी का कहना है कि ये बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा मामला है। इसे लेकर केंद्र या प्रदेश स्तर पर कानून बनना चाहिए। डी.सी. की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन हो जो औचक निरीक्षण करे। जो नियमों की पालना नहीं करता उसके खिलाफ कानूनी और जुर्माने की कार्रवाई होनी चाहिए। 

दे रहे नोटिस : प्रमोद दुग्गल
जिला दमकल अधिकारी प्रमोद दुग्गल का कहना है कि हर एरिया में निरीक्षण किया जा रहा है। एन.ओ.सी. लेने के लिए नोटिस दिया जा रहा है। उनका कहना है कि जहां भी कमी मिलेगी उसकी रिपोर्ट मुख्यालय को भेजी जाएगी। इस तरह के कोचिंग सैंटर नहीं चलने दिए जाएंगे। हम सुरक्षा को लेकर गंभीर हैं। 

Naveen Dalal