सतत सेवा को सतत नमन : डॉ. विशाखा त्रिपाठी जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षा ही नहीं थीं बल्कि सम्पूर्ण परिषत् परिवार की स्नेहमयी मार्गदर्शिका भी

punjabkesari.in Saturday, Dec 21, 2024 - 06:48 PM (IST)

गुड़गांव ब्यूरो : पूज्या बड़ी दीदी सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षा ही नहीं थीं बल्कि सम्पूर्ण परिषत् परिवार की स्नेहमयी मार्गदर्शिका एवं संरक्षिका थीं! वे श्री महाराज जी की पुत्री से अधिक उनकी शिष्या थीं। उनकी संवेदनशीलता, उनके समर्पण और उनकी पराकाष्ठा की सेवा भावना को देखकर गुरुवर ने सन्‌ 2000 में उन्हें जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षा बना दिया। धन्यमना बड़ी दीदी ने जिस भाँति भक्ति और सेवा भाव से परिषत् को नेतृत्व प्रदान किया, वह युगों-युगों तक प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। स्नेहमयी प्रेरणास्त्रोत पूज्या बड़ी दीदी का जीवन हरि-गुरु भक्ति, नि:स्वार्थ जन सेवा और गुरु प्रदत्त संदेश के प्रसार के लिए पूर्णतः समर्पित था। इनके स्नेहमय संगठित और कुशल नेतृत्व में जेकेपी ने अग्रगण्य चैरिटेबल सेवाऍं संपादित की। जगद्गुरु कृपालु परिषत्‌ (JKP) के अध्यक्ष के रूप में इनके अप्रतिम करुणामय मार्गदर्शन ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में लाखों-लाख साधकों के जीवन को अपने स्नेहमय स्पर्श से रूपांतरित किया। 

 

किन्तु औचक ही ऐसी स्नेहमयी प्यारी बड़ी दीदी के गोलोक गमन की खबर ने आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों ही क्षेत्रों में शोक की लहर प्रवाहित कर दी है। आज पूरा जगत अपनी प्यारी स्नेहमयी दीदी के इस लोक से अदृश्य होने से परम व्याकुल हो उठा है। मन कहता है- यह हो नहीं सकता! और यथार्थ कहता है- पूज्या दीदी का स्नेहिल स्पर्श अब और नहीं मिल सकता, उनका ममतामयी आँचल हमें और नसीब नहीं। पुन: मन कहता है- वे हम-सी साधारण तो नहीं, वे कहाँ जा सकती हैं हमें छोड़कर! उनके करकमल का स्पर्श तो महसूस कर पाता हूँ। इसी तरह भावनाओं की उत्ताल तरंगों के बीच साधक बेबस-सा निकल पड़ा है अपनी प्यारी दीदी के दर्शन हेतु। आज संपूर्ण वृन्दावन में साधकों का ऐसा सैलाब! मानो व्यथित यमुना साधकों का रूप धरकर संपूर्ण वृन्दावन में व्याप्त हो गई है। यह विह्वलता, यह व्याकुलता चिंतनातीत है, कल्पनातीत है। 

 

ऐसा हो भी क्यों नहीं? अपने गुरुवर व पिता जगद्‌गुरु श्री कृपालु जी महाराज के निज लोक गमन के पश्चात्‌ पूज्या बड़ी दीदी ने ही तो साधक समुदाय को संभाला था अपने आँचल तले। उस अपार विषाद के पलों में प्यार, दुलार और ढाड़स देकर उन्होंने न केवल सिद्धांत ज्ञान, साधना और सेवा को साधकों के हृदय में पल्लवित-पुष्पित किया बल्कि हर साधक को यह अनुभव कराया कि गुरु का मार्गदर्शन सदैव उनके साथ है और रहेगा। इस भाँति करुणा और भक्ति की साक्षात्‌ प्रतिमूर्ति पूज्या बड़ी दीदी गुरु-भक्ति का परम उद्दात भाव लिए साधकजनों के हृदय में भक्ति की ज्योति प्रज्वलित करती रहीं। 

 

पूज्या बड़ी दीदी के मार्गदर्शन ने जगद्गुरु कृपालु परिषत्‌ से जुड़े साधकजनों के हृदय में सेवा भाव के ऐसे उज्ज्वल स्वरूप को उतारा कि गुरु मार्गदर्शित सेवाऍं न केवल जारी रहीं बल्कि उसके विस्तार ने सबको चमत्कृत-विस्मित कर दिया। यह मानव मात्र के समक्ष प्रेम व भक्तियुक्त सेवा का आदर्श स्थापन ही तो है! इनके कुशल मार्गदर्शन में आधुनिक तकनीकि से लैस तीन नि:शुल्क बड़े-बड़े अस्पतालों का सुचारु संचालन, वास्तविक शिक्षा और उच्च गुणवत्ता वाले स्कूल और कॉलेजों का सुन्दर प्रबंधन और शिक्षा जगत हेतु आदर्श का स्थापन, विस्मयकारी वृहत्‌ आध्यात्मिक एवं सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रमों का भव्य आयोजन, कीर्ति मंदिर, गुरु धाम मंदिर व म्यूजियम जैसे स्मारकों का निर्माण इस जगत को उनका अनमोल उपहार है। 

 

उनके अपार योगदान के प्रति भला कौन कृतज्ञ नहीं! तभी तो उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बारंबार सम्मानित किया गया। उन्हें प्रदान किए गए कुछ प्रमुख सम्मान हैं- नेल्सन मंडेला शांति पुरस्कार (2014), मदर टेरेसा उत्कृष्टता पुरस्कार (2013), शीर्ष ५० भारतीय आइकन पुरस्कार, यूपी राज्य महोत्सव पुरस्कार (2015), राजीव गांधी वैश्विक उत्कृष्टता पुरस्कार (2013), 2014 में पूरक चिकित्सा के लिए ओपन इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से साहित्य में मानद डॉक्टरेट (डी.लिट), विश्व आइकन पुरस्कार (2023)

 

पूज्या बड़ी दीदी ने अपने अंतिम पल में भी साधकों को यही संदेश दिया कि हर पल हरि-गुरु की सेवा और उनके द्वारा प्रदत्त जनकल्याणकारी सेवा में समर्पित रहें। उनका जीवन साक्षात्‌ सेवा ही तो था, तभी तो वे अपने गुरुवर के म्यूज़ियम निर्माण संबंधी सेवा के मार्गदर्शन हेतु इस उम्र में भी स्वयं सिंगापुर जा रही थी। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण से भी यही प्रमाणित किया कि सेवा ही धर्म है, सेवा ही हरि-गुरु के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति है, सेवा ही सर्वस्व है। उनकी हर कृति सेवा की अभिव्यक्ति है, जो हम साधकों को तत्त्वदर्शन और सिद्धांत से जोड़ती है। सेवा की साक्षात्‌ प्रतिमूर्ति पूज्या बड़ी दीदी ने जीवन के अंतिम क्षण में भी यही संदेश दिया कि जैसे श्वास-श्वास में ‘राधे’ नाम लेना है, वैसे ही पल-पल को सेवा में ही लगाना है। हमारी बड़ी दीदी का अंतिम संदेश है- साधना के अभ्यास से मन को सदा भरे रहो! मायिक जगत की व्यर्थ की बातों से मन को बचाओ तथा साधना और गुरु की शरणागति को जीवन का एकमात्र ध्येय बनाओ।

 

हे करुणामयी प्यारी  दीदी! आपका यह बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। जन-जन में गुरुवर के सिद्धांत का प्रचार होगा, जन-जन में गुरुवर की महिमा का गान होगा और जन–जन में श्रीराधाकृष्ण की भक्ति का प्रचार-प्रसार होगा, यह ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ का सर्वजनहिताय उद्‌घोष है और यही अपनी प्यारी बड़ी दीदी के श्रीचरणों में ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ की ओर से साश्रु श्रद्धांजलि है।


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Content Editor

Gaurav Tiwari

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