थैलेसीमिया उन्मूलन के लिए फोर्टिस ने चलाया जागरूकता अभियान
punjabkesari.in Tuesday, Apr 29, 2025 - 06:52 PM (IST)

गुड़गांव, ब्यूरो: खून संबंधी बीमारी थैलेसीमिया को देश से खत्म करने के लिए फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने आज 'रेड रन टु एंड थैलेसीमिया' नाम से मेराथन का आयोजन किया। पांच किलोमीटर कि इस दौड़ में गुरुग्राम के अनेक चर्चित शख्सियतों सहित दो हज़ार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। वहीं इस अभियान को समर्थन देने के लिये बॉलीवुड के जानें-माने एक्टर जैकी श्रॉफ भी पहुंचे।
इस मौके पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए डॉक्टर राहुल भार्गव ने बताया कि भारत में हर साल लगभग आठ से दस हज़ार बच्चे पैदा होते समय थैलेसीमिया की बीमारी से ग्रसित होते हैं, चुंकि यह जेनेटिक बीमारी है। इसलिए इसकी रोकथाम बच्चे कि पैदाइश के वक़्त ही की जानी चाहिये अगर मात-पिता बच्चे के पैदा होने से पहले थैलेसीमिया की जांच करा लेते हैं तो समय पर इसका उचित इलाज हो जायेगा। अगर किसी महिला ने गर्भ धारण भी कर लिया हो तो उस स्थिति में भी जांच कराई जा सकती है और अगर टेस्ट में बच्चा मेजर थैलेसीमिया से पाया जाय तो अबॉर्शन का विकल्प भी अपनाया जा सकता है।
डॉक्टर राहुल भार्गव ने आगे कहा, 'प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह कोरोना के प्रति देशवासियों को जागरूक किया उसी तरह उन्हें थैलेसेमिया को लेकर भी मन की बात करनी चाहिये जिसे देशवासी इस समस्या के प्रति जागरूक हो सकें। साथ ही ज़ब हमने एक विकसित राष्ट्र बनने का संकल्प ले लिया है तो हमें थैलेसीमिया के ट्रीटमेंट के बजाय प्रिवेंशन पर ध्यान देना चाहिये।'
वहीं चर्चित एक्टर जैकी श्रॉफ ने अपने अनुभव को साझा करते हुए भावुक अंदाज में कहा कि उन्होंने थैलेसेमिया से पीड़ित एक छोटे बच्चे को अस्पताल में देखा था उसके हाथ और पैर में सूइयों के अनेक निशान थे। वह दृश्य डरावना था। इसलिए थैलेसीमिया का उन्मूलन का अभियान किसी एक डॉक्टर अस्पताल या मेडिकल फील्ड से जुड़े लोगों की नहीं बल्कि हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है। जो इस बीमारी की गंभीरता जानता गई उसे दूसरे को इसके बचाव के तारीके को बताना होगा मै और मेरा पूरा परिवार थैलेसीमिया के लिये लोगों को जगरूक करेंगे लेकिन इस काम में मीडिया को भी गंभीरता से काम करते हुए लोगों को जागरूक करना होगा।
फॉर्टिस हॉस्पिटल के हेमेटोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉक्टर विकास दुआ ने भी थैलेसीमिया को लेकर जानकारी दी, उन्होंने कहा कि थैलेसीमिया के पीड़ित बच्चों का खून हर तीन से चार सप्ताह के भीतर बदलवाना पड़ता है जिससे पीड़ित के परिवार पर बेतहाशा आर्थिक बोझ बढ़ता है। हालांकि आज इस बीमारी का बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए उचित उपचार संभव है लेकिन लाखों रुपये के उपचार की इस पद्धति को हम क्यों अपनाएं जबकि जेनेटिक काउंसलिंग और ब्लड टेस्टिंग के आधार पर ही थैलेसीमिया के पीड़ित बच्चों का जन्म रोका जा सकता है। ऐसे में हमें मिलजुल कर प्रयास करने की जरूरत है और जरूरत है समाज को जागरूक करने की साथ ही देश की केंद्र और राज्य सरकारों के समर्थन की ताकि साल 2035 तक हम देश को थैलेसीमिया से मुक्त करने के अपने संकल्प को वास्तविकता में बदल सके। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों में काम कर रहे स्वयं सेवी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया और अपने विचार व्यक्त किये।