रेज़ांगला वीरों को सम्मान व पुनर्स्थापना की आवाज तेज

punjabkesari.in Wednesday, Nov 19, 2025 - 07:15 PM (IST)

गुडगांव,  (ब्यूरो): 1962 के भारत–चीन युद्ध की ऐतिहासिक रेज़ांगला लड़ाई में अद्वितीय साहस व बलिदान देने वाले अहीर (यादव) वीर सैनिकों को उनका वास्तविक व संपूर्ण सम्मान दिलाने की राष्ट्रव्यापी मांग तेज़ हो रही है। 18 नवंबर-1962 को 18,000 फीट की ऊंचाई पर लड़ी गई इस लड़ाई में 13 कुमाऊँ रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के 120 सैनिकों में से 117 अहीर थे।

 

पराक्रम व शौर्य की इस लडाई में–40  तापमान, सीमित हथियारों और अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद लगभग 1,310 दुश्मन सैनिकों को मार गिराया व अंतिम सांस तक डटे रहे। यह पराक्रम विश्व सैन्य इतिहास की सबसे वीरतापूर्ण लड़ाइयों में दर्ज है। समाज, पूर्व सैनिकों व इतिहासकारों ने बडी चिंता व्यक्त की है। जिसमें रेज़ांगला युद्ध के संबंध में कई ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों व दृश्य प्रस्तुतियों में अहीर वीरों की पहचान व योगदान को कई बार कम करके दिखाया गया या अनदेखा किया गया। विशेष रूप से वीरता पुरस्कारों की संख्या में असंगत कटौती, राष्ट्रगीतों व फिल्मों में अहीरों का उल्लेख न होना। रेज़ांगला स्मारक के नवीनीकरण के दौरान अहीर धाम- 0 किमी पट्टिका को हटाए जाने की घटनाएं व्यापक रूप से सवालों के घेरे में हैं।

 

इन घटनाओं को न केवल समुदाय विशेष का अपमान माना जा रहा है, बल्कि इसे राष्ट्र की सैन्य विरासत पर चोट के रूप में भी देखा जा रहा है। हाल में आई फिल्म 120 बहादुर को लेकर कहा गया है कि उसमें 117 अहीर सैनिकों की सामूहिक वीरता को उचित स्थान नहीं दिया गया। कई ऐतिहासिक तथ्यों को बदल दिया गया। प्रतिनिधियों ने यह भी कहा कि सैनिक का बलिदान जाति, क्षेत्र या राजनीतिक संदर्भ से परे होता है। इसलिए उनके योगदान का सही उल्लेख भारतीय इतिहास को सशक्त बनाता है। अभियान ने निकट भविष्य में जन-जागरूकता कार्यक्रम, शैक्षणिक संवाद, युवा संपर्क अभियान व सरकारी स्तर पर ज्ञापन प्रस्तुत करने की घोषणा की है।

 

 


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Content Editor

Gaurav Tiwari

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