गुरुग्राम से आगेः हरियाणा के स्टार्टअप मॉडल पर राष्ट्रीय ध्यान क्यों आवश्यक है
punjabkesari.in Thursday, Jan 16, 2025 - 05:46 PM (IST)
गुड़गांव ब्यूरो : भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम पर चर्चा के लिए एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है। बेंगलुरु और मुंबई की उपलब्धियों को सराहना मिलनी चाहिए, लेकिन हरियाणा में उभरता हुआ मॉडल एक अधिक संतुलित और स्थायी नवाचार-आधारित विकास का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। जैसे-जैसे भारत विकसित भारत 2047 की ओर अपने कदम बढ़ा रहा है, हरियाणा के इस वैकल्पिक दृष्टिकोण को गंभीरता से विचार में लेना आवश्यक है। यह कहना है सीआईआई हरियाणा के चेयरमैन और अपोलो इंटरनेशनल ग्रुप के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर राजा कंवर का।
सीआईआई हरियाणा के चेयरमैन और अपोलो इंटरनेशनल ग्रुप के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर राजा कंवर के अनुसार पारंपरिक स्टार्टअप मॉडल, जो घनी शहरी संरचनाओं पर केंद्रित है, ने अब तक अपने उद्देश्य को पूरा किया है, लेकिन इसमें कई सीमाएं स्पष्ट होती हैं। ये केंद्र, भले ही अत्यधिक मूल्य उत्पन्न करते हैं, आधारभूत संरचनाओं पर दबाव डालते हैं और प्रौद्योगिकी-सक्षम महानगरों और छोटे शहरों के बीच की खाई को और बढ़ा देते हैं। हरियाणा की रणनीतिक सोच एक सम्मोहक विकल्प प्रस्तुत करती है, जो राष्ट्रीय ध्यान की हकदार है।
हरियाणा के मॉडल को जो अलग करता है वह केवल गुरुग्राम की अच्छी तरह से डॉक्यूमेंटेड सफलता नहीं है, बल्कि राज्य द्वारा एक वितरित इन्नोवेशन इकोसिस्टम का विचार विमर्श किया गया आयोजन है। राज्य में 29 टेक्नोलॉजी पार्क और तीन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का निर्माण एक ऐसे भविष्य की ओर संकेत करता है जहां नवाचार महानगरीय सीमाओं को पार करता है और विविध क्षेत्रों में अपनी जड़ें जमाता है।
हरियाणा के इस दृष्टिकोण की असली ताकत इस बात में है कि उत्कृष्टता का एक ही प्रारूप नहीं हो सकता। जहां गुरुग्राम डीप-टेक और एंटरप्राइज सॉल्यूशंस में प्रगति कर रहा है, वहीं छोटे शहर कृषि, स्वास्थ्य सेवा और सतत ऊर्जा में नवाचार के लिए प्रयोगशालाएं बन रहे हैं। यह विविधीकरण यह दर्शाता है कि भारत का अगला विकास चरण विभिन्न चुनौतियों का समाधान करने से उभरेगा।
आईआईटी रोहतक और एनआईटी कुरुक्षेत्र जैसे संस्थानों का रूपांतरण इस मॉडल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये संस्थान पारंपरिक शैक्षणिक भूमिकाओं से आगे बढ़कर क्षेत्रीय नवाचार के केंद्र बन गए हैं। इनकी भागीदारी यह प्रदर्शित करती है कि संस्थागत उत्कृष्टता स्थानीय उद्द्यमिता को कैसे प्रेरित कर सकती है। स्टार्टअप फैब्रिक में उनका एकीकरण अकादमिक शोध और व्यावहारिक नवाचार का एक शक्तिशाली गठजोड़ बनाता है।
राज्य की नीतिगत रूपरेखा पारिस्थितिकी तंत्र विकास की सूक्ष्म समझ को प्रकट करती है। जबकि अन्य क्षेत्र मुख्य रूप से यूनिकॉर्न निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं, हरियाणा का दृष्टिकोण पानीपत, हिसार और करनाल जैसे शहरों में सतत नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण पर जोर देता है। यह रणनीति मानती है कि सार्थक नवाचार अक्सर स्थानीय चुनौतियों और अवसरों के साथ गहरे जुड़ाव से उभरता है।
हालांकि, इस मॉडल को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। गुरुग्राम में वेंचर कैपिटल का उच्च केंद्रीकरण, उभरती प्रौद्योगिकियों में कौशल अंतराल और महिला उद्यमियों को नेटवर्क और पूंजी तक पहुंच में आने वाली बाधाएं इस मॉडल के लिए बड़ी चुनौतियां हैं। लेकिन ये चुनौतियां नीति निर्माण में नवाचार के अवसर भी प्रदान करती हैं।
हरियाणा स्टार्टअप फंड जैसी योजनाएं, यदि सही तरीके से लागू की जाएं, तो क्षेत्री स्टार्टअप फाइनेंसिंग के नए तरीकों की शुरुआत कर सकती हैं। यह पारंपरिक फंडिंग मॉडलों की नकल करने के बजाय, विभिन्न क्षेत्रों की विशेषताओं को ध्यान में रखकर पूंजी आवंटन के लिए एक विस्तृत ढांचा विकसित कर सकती हैं।
महिला उद्यमशीलता पर ध्यान देना केवल एक सामाजिक पहल नहीं, बल्कि एक आर्थिक आवश्यकता है। इसके लिए संरचित मॅटरशिप प्रोग्राम, विशेष वित्तीय तंत्र और नेटवर्किंग समाधानों के माध्यम से महिला उद्यमियों की चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है।
शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका को पुनर्परिभाषित करना विशेष महत्व रखता है। आईआईटी रोहतक और एनआईटी कुरुक्षेत्र यह दिखा रहे हैं कि शैक्षणिक उत्कृष्टता को नवाचार नेतृत्व में कैसे बदला जा सकता है।
आगे देखते हुए, भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम की सफलता का पैमाना केवल यूनिकॉर्न मूल्यांकन तक सीमित नहीं रहना चाहिए। सच्ची सफलता उन नवाचारों में है जो शहरी और ग्रामीण भारत की चुनौतियों को प्रभावी ढंग से हल कर सकते हैं। हरियाणा का मॉडल, भले ही अभी विकास के चरण में है, स्थायी और समावेशी नवाचार पारिस्थितिक तंत्र बनाने की दृष्टि प्रदान करता है।
यह दृष्टिकोण स्टार्टअप इकोसिस्टम के पारंपरिक दृष्टिकोण को चुनौती देता है और तेज़ी से विकास के साथ स्थायी प्रभाव को जोड़ने की नई अवधारणाओं को प्रस्तुत करता है।
हरियाणा के इस मॉडल को देखकर अन्य राज्यों के लिए यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत का भविष्य सिलिकॉन वैली मॉडल की नकल में नहीं, बल्कि अपने भीतर की विविधता को पहचानने और उसका लाभ उठाने में है।
जैसे-जैसे भारत 2047 की ओर बढ़ रहा है, हरियाणा का यह प्रयोगात्मक मॉडल गहन विचार के योग्य है। यह केवल एक स्टार्टअप रणनीति नहीं, बल्कि एक नई नवाचार-आधारित विकास प्रणाली का प्रतिनिधित्व करता है, जो भारत की आर्थिक और डिजिटल खाई को पाटने में मदद कर सकता है।