हरियाण में लगभग 3 दर्जन विश्वास व अविश्वास प्रस्ताव आए, जिनमें 2 विश्वास प्रस्ताव पारित हुए: यादव

punjabkesari.in Monday, Feb 08, 2021 - 11:42 PM (IST)

चंडीगढ़ (धरणी): हरियाणा कांग्रेस आने वाले विधानसभा सत्र के दौरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रही है। किन-किन परिस्थितियों में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है, इसे लेकर संविधान व संसदीय प्रणाली के जानकार हरियाणा विधानसभा के पूर्व अतिरिक्त सचिव व पंजाब विधानसभा में पूर्व में सलाहकार रहे राम नारायण यादव ने कहा कि कोई भी नोटिस देने का प्रत्येक सदस्य को अधिकार है, बशर्ते नोटिस का विषय राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है। संविधान के आर्टिकल 208 के अंतर्गत प्रत्येक सदन अपनी सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन सम्बन्धी नियम बनाता है। अविश्वास प्रस्ताव के लिए हरियाणा विधानसभा के इन नियमों का नियम 65 है, जिसके अंतर्गत अध्यक्ष देखते हैं कि दिया गया नोटिस सभी शर्तें पूरी करता है और क्या प्रस्ताव सही है।

राम नारायण यादव ने बताया कि दो परिस्थितियों में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। एक तो सरकार की किसी नीति पर चर्चा व अस्वीकार्य करने, या दूसरे मंत्रीमंडल में अविश्वास प्रकट करने के लिए। उन्होंने बताया कि संविधान में सीधे तौर पर अविश्वास प्रस्ताव का प्रावधान नहीं है। अविश्वास प्रस्ताव की योजना आर्टिकल 163, 164, 168 व 189 में मंत्रिपरिषद, मुख्यमंत्री व मंत्रियों की नियुक्ति, मंत्रिपरिषद का विधानसभा के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व व सदन में किसी भी विषय पर सदस्यों के बहुमत से मत हासिल करने पर आधिारित है, क्योंकि मंत्रिपरिषद का उत्तरदायित्व विधानसभा के प्रति है, अत: सरकार के निर्णय बहुमत आधारित होते हैं। इसे सिद्ध करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का प्रावधान विधानसभा के नियमों के नियम 65 में है।

केंद्रिय कानूनों को लेकर राज्य विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव कैसे लाया जा सकता है, इस बारे में यादव ने कहा कि राज्य में अविश्वास प्रस्ताव कैसे आएगा, यह नोटिस देने वाले सदस्य पर निर्भर करता है कि वह इसके विषय को राज्य का विषय किस तरह पेश करते हैं। जब सरकार पर आरोप होता है कि वह सदन में विश्वास खो चुकी है तो इस पर या तो विपक्ष की तरफ से अविश्वास प्रस्ताव आता है, या सरकार स्वंय विश्वास प्रस्ताव लाकर सदन का मत हासिल कर लेती है। अविश्वास प्रस्ताव ज्यादातर विपक्ष की तरफ से आता है।

उन्होंने बताया कि 1966 से 2004 तक हरियाणा विधानसभा में लगभग 3 दर्जन विश्वास व अविश्वास प्रस्ताव आए हैं। इनमें 2 बार मंत्रिपरिषद ने विश्वास मत हासिल किया है। प्रथम विधान सभा में 2 नोटिस आए थे परंतु उनको पेश नहीं किया  गया। तीसरी विधानसभा मे 12 नोटिस आए जिनमें सदन के स्थगन के कारण 4 लैप्स हो गए, अन्य 2 अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बाद खारिज हो गए। चौथी में 2 आए, 1 में चौधरी हरद्वारी लाल को सदन की अनुमति नहीं मिली तथा दूसरा चौ. रिजक राम ने सदन की अनुमति मांगने से पहले वापिस ले लिया। पांचवीं में 3 नोटिस आए, 1 रिजेक्ट हो गया, 1 फेल हो गया, 2 अप्रैल, 1982 को 1 सदस्य मा. सुषमा स्वराज ने 1 को स्वीकृत मिलने पर प्रस्ताव पेश नहीं किया। छठीं में 2 आए, 1 ठीक नहीं पाया गया, 1 फेल हो गया। सातवीं में 4 थे, चारों बहस के बाद फेल हो गए। आठवीं में 3 विश्वास प्रस्ताव थे 2 पास, 1 में प्रस्ताव पेश नहीं हुआ तथा 3 नोटिस पर 1 अविश्वास प्रस्ताव आया जो बहस के बाद फेल हो गया। नौवीं विधान सभा में 5 आए; 1 में चै. भजनलाल को सदन की अनुमति मिली परंतु 6 सितंम्बर 2000 को कोई प्रस्तावक उपस्थित नहीं थे; 1 में अनुमति नहीं मिली, 3 प्रस्ताव फेल हो गए। अचम्भे की बात ये है कि अविश्वास प्रस्ताव जनहित की एक विशेष संसदीय विधि है परंतु 2004 के बाद अब तक शक्तिशाली विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाने में असमर्थ रहा है।

राम नारायण यादव ने बताया कि यदि अध्यक्ष प्रस्ताव को ठीक पाते हैं तो वह सदन को सूचित करते हैं। तब नोटिस देने वाले सदस्य 18 सदस्यो के मत से सदन में प्रस्ताव की अनुमति प्राप्त करते हंै। यदि अनुमति मिल जाती है तो अध्यक्ष दस दिन के अंदर प्रस्ताव पर बहस व मत के लिए दिन निर्धारित कर देते हैं और तब बहस के बाद प्रस्ताव पर सदन में मत हासिल किया जाता है। उन्होंने बताया कि चैधरी बंसीलाल के मंत्रीमंडल में जब जून 1999 में अविश्वास की स्थिति पैदा हो गई थी तब चौधरी बंसीलाल ने विश्वास मत प्राप्त किया था। हालांकि दूसरी बार वह विश्वास मत प्राप्त नहीं कर सके और प्रस्ताव पेश होने से पहले 21 जुलाई, 1999 को अध्यक्ष ने उनके मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र की घोषणा कर दी थी।
 

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Content Writer

Shivam

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