अनिल विज ने आयुष विभाग के कायाकल्प को लेकर मुख्यमंत्री से मांगी स्पेशल परमिशन

punjabkesari.in Monday, Jan 01, 2024 - 05:40 PM (IST)

चंडीगढ़ (चंद्र शेखर धरणी): दुनिया की सबसे प्राचीनतम या यूं कहें सतयुग से चली आ रही भारतीय चिकित्सा पद्धतियां, जिनका वर्णन हमारी धार्मिक पुस्तकों में भी खूब किया गया है। किस प्रकार से भगवान श्री राम के अनुज लक्ष्मण रावण पुत्र मेघनाथ के शक्तिबाण से मूर्छित हुए तथा उनका उपचार प्रकृति की एक बूटी केवल संजीवनी में था। इसी प्रकार से दशानन रावण का सिर कट जाने पर उनका उपचार भी जड़ी बूटियां से कर उसे जोड़ा जाता था। पुराने दौर के युद्धों में तीर -तलवार -भालों से बुरी तरह जख्मी हुए सैनिकों को प्राचीन चिकित्सा पद्धतियां अगले ही दिन फिर से मुकाबले लायक बना देती थी। इससे बड़े उदाहरण नहीं दिए जा सकते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश आधुनिक जीवनशैली और एलोपैथी माफिया की रचना में हमने अपनी अति महत्वपूर्ण संजोकर रखने वाली योग्यता को कहीं पीछे छोड़ दिया है।

विदेशी साजिशों और हमारे देश में बैठे घटिया मानसिकता वाले लालची लोगों के कारण भारत के विश्व गुरु रहने की बात पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हुआ है। हालात यह है कि हमारी सभी प्राचीनतम भारतीय चिकित्सा पद्धतियां मिलकर भी आज एलोपैथिक चिकित्सा से कहीं पीछे नजर आ रही हैं। जिसमे मुख्य दोषी हमारी सरकारें रहीं हैं। निजी लाभ राजनीतिक लोगों के दिमाग पर हमेशा हावी रहा है। जिसके परिणाम झूठे दिखावे में जीवन जी रहे समाज को गंभीर बीमारियों के रूप में मिले हैं। भारत को दुनिया की मधुमेह राजधानी होने का अनचाहा गौरव हासिल हो चुका है। देश में लगातार कैंसर जैसी गंभीर बीमारी विकराल रूप धारण करती जा रही है। एलोपैथी के दुष्प्रभावों के चलते अगर यूं कहें कि लगभग हर परिवार का एक न एक सदस्य किसी न किसी छोटे बड़े रोग से पीड़ित है तो भी गलत नहीं होगा। आज समाज में लगातार हार्टअटैक या हार्ट फेल होने के चलते मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है या तो बचपन सीधा बुढ़ापे में छलांग लगा रहा है या आज जवानी जवानी की तरह दिखती नहीं है। इस विषय पर लगातार प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज गंभीर और प्रयासरत रहे हैं। वरिष्ठ अधिकारियों- विशेषज्ञों तथा बुद्धिजीवियों से गहरा विचार विमर्श कर प्रदेश के आयुष मंत्री अनिल विज ने इसे लेकर एक बड़ा बीड़ा उठाया था जो लगभग मंजिल के नजदीक है। जिसके नतीजे बेहद लाभकारी भी साबित होने वाले हैं।

 आयुष विभाग की सैंक्शन 1621 पोस्टों में से 1300 पोस्ट पड़ी हैं खाली

दरअसल, प्रदेश में बहुत सी सरकारें आई और गईं, लेकिन किसी भी सरकार व विभाग के किसी भी मंत्री ने कभी धरातलीय कार्य जो बेहद आवश्यक थे किए ही नहीं। प्रदेश के मौजूद आयुष मंत्री अनिल विज ने  आयुष विभाग के लगातार पिछड़ने के मुख्य कारणों को टटोला तो पाया कि विभाग में सेक्शन 1621 पोस्टों में 1300 पोस्ट खाली पड़ी है। फिर ऐसी विपरीत परिस्थितियों में विभाग कैसे गतिशील होगा और कैसे लोगों को रिलीफ़ दे पाएगा। कैसे नए इंस्टीट्यूशन खडे होंगे। अंततः पाया कि बिना हेरारकी के यह संभव ही नहीं है। प्रदेश के आयुष एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने इस मामले को लेकर लगभग दो माह पहले मुख्यमंत्री को एक पत्र लिख स्पेशल परमिशन की मांग की। जिसमें एलोपैथी सिस्टम की तरह आयुष विभाग के सब सेंटर, पीएचसी, सीएचसी, सबडिवीजन अस्पताल, जिला अस्पताल इत्यादि बनाए जाएं।  मुख्यमंत्री ने भी अपने वरिष्ठ मंत्री की गंभीरता पर मोहर लगाई। क्योंकि हमारी इन प्राचीन पद्धतियों में टीकाकरण इत्यादि की व्यवस्था नहीं थी और आज व्यक्ति तुरंत आराम और इलाज की चाहत में एलोपैथी के प्रति ज्यादा झुकाव रखता है, इसे लेकर गृहमंत्री ने आयुष विभाग के लिए एक बड़ा रोडमैप तैयार किया।

हेरारकी सिस्टम से एलोपैथिक की तरह पूरे महकमें का किया जाएगा विकास

मंत्री ने आयुष विभाग को आगे लाने के एक लंबे समय तक इस फील्ड के जानकारों से खूब चर्चा परिचर्चा की। नतीजतन उन्होंने दिशा निर्देश दिए कि एलोपैथी में एमओ, एसएमओ, सीएमओ की तरह आयुष विभाग में एएमओ, एएसएमओ, डीएओ इत्यादि बनाए जाएं, तभी इस नीति पर सफलता संभव होगी। तभी सेक्शन स्ट्रैंथ का सही पता चल पाएगा। किस प्रकार से किसे- कहां- कैसे रेफर करना है यह व्यवस्था बन पाएगी। क्योंकि अब तक आयुष विभाग में सारा सिस्टम उलझ पुलझ नजर आ रहा था। कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने आयुष विभाग के केंद्र कोने कोने में स्थापित करने के लिए पूरे हरियाणा की मैपिंग के आदेश तुरन्त जारी कर दिए थे। विभाग को एलोपैथी पैटर्न पर खड़ा करने की सोच के साथ इस विचार पर मोहर लगाई कि पहले से वर्किंग में एलोपैथी सेंटर के आसपास अन्य साथ लगते गांव- क्षेत्र में आयुष विभाग की शाखा बनाई जाए। प्रदेश के आयुष मंत्री की इस किलेबंदी से यह तो तय है कि अब विभाग का कायाकल्प होगा ही होगा।

पुड़िया वाले विभाग में दुरुस्तगी को लेकर लिए जा चुके है कई बड़े फैंसले

दरअसल अभी तक आयुष को केवल पुराने दौर की पुड़िया वाला विभाग माना जाता रहा है। ट्रामा की सुविधा अब तक न होने की वजह से इस विभाग की ओर लोगों का विश्वाश ना के बराबर है। प्रदेश के मंत्री अनिल विज ने ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया है जिसमें अब एक्सीडेंट से बुरी तरह से जख्मी हुए व्यक्ति को भी इलाज दे पाना संभव होगा। क्योंकि विज की कोशिशों से जीवन रक्षक एलोपैथिक 17 दवाइयां इस्तेमाल करने की परमिशन भी आयुष विभाग के चिकित्सकों को मिल चुकी है। अब मंत्री विज ने प्रसूति, एक्सीडेंट, पट्टी व माइनर ऑपरेशन इत्यादि के लिए भी सिस्टम तैयार करने के रास्ते लगभग खोल दिए हैं। दरअसल प्रदेश के आयुष मंत्री के पास स्वास्थ्य विभाग भी है। अब पीजीआई के इमरजेंसी डिपार्टमेंट से केसिस को ट्रामा इमरजेंसी के केसेस को हैंडल और ट्रीट करने की स्पेशल और बेसिक ट्रेनिंग दिलाने पर भी विचार चल रहा है। ऐसा होने के बाद विभाग में अचूल परिवर्तन हो जाएंगे।

विज ने मंच से किया था वायदा :- बिना साइड इफेक्ट दिए जाएंगे सभी को स्वास्थ्य लाभ

प्रदेश के कैबिनेट मंत्री अनिल विज गहरे तौर पर जन समर्पित सोच रखने वाले व्यक्ति हैं। वह इस बात से सदा दुखी रहे हैं कि अंग्रेजी के सामने हिंदी दबने जैसे ही आज एलोपैथी चिकित्सकों के सामने आयुर्वेदिक चिकित्सक दबे हुए नजर आते हैं। लेकिन इसमें सुधार के लिए उन्होंने प्रतिबद्धता को जरूरी समझा है। इस विषय को लेकर आयुष एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने एक सार्वजनिक मंच से एक भाषण में जनता से  यह वायदा भी किया था कि बिना साइड इफेक्ट के सभी को स्वास्थ्य लाभ दिए जाएंगे और हेरारकी के हिसाब से पोस्टिंग इस विभाग में संभव होगी। क्योंकि विज इस बात को लेकर कहीं पहले से बेहद प्रयासरत थे और उन्होंने मुख्यमंत्री मनोहर लाल से खाली पड़ी 1300 वैकेंसी भरने के लिए स्पेशल परमिशन ली। फिलहाल स्थितियों को संभालने के लिए विभाग बेसिक पे आधार पर चिकित्सकों- कर्मचारियों से काम चलाएगा। लेकिन इन पोस्टों पर कार्य करने वाले अस्थाई कर्मचारी की तनख्वाह स्थाई कर्मचारियों के मूल वेतन के आधार पर सुनिश्चित की गई है।

विभाग में सुधारों से क्या लाभ होगा देश और समाज को

आयुष विभाग के जानकार इसके मुख्यतः तीन कारण मानते हैं। पहला इन संस्थाओं का हेरारकी (वर्गीकरण) का ना होना, दूसरा आयुष खंडो में शल्य चिकित्सा का ना होना, तीसरा हमारे आयुष चिकित्सकों में हीन भावना और इच्छा शक्ति की कमी का होना। एलोपैथी सिस्टम ऑफ मेडिसियन में डब्ल्यू एच ओ ने संस्थाओं की एक हेरारकी स्थापित की हुई है जो जनसंख्या एवं दूरी बेस पर आधारित है। चिकित्सा संस्थानों की सबसे छोटी इकाई को उपकेंद्र (सब सेंटर) उसके बाद बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, फिर सामुदायिक चिकित्सा केंद्र, फिर उपमंडल चिकित्सा संस्थान तथा जिला स्तर पर जिला अस्पताल के बाद सुपर स्पेशलिटी चिकित्सा के लिए मेडिकल कॉलेज व पीजीआई है। अब जिस प्रकार से विभाग के लिए एलोपैथिक सिस्टम की तरह रूपरेखा तैयार की जा रही है उससे एक बड़े बदलाव की ओर यह विभाग अवसर होगा और फिर से पुरानी पद्धतियां समाज में विकसित होंगी। बिना साइड इफेक्ट के लोगों को एक उत्तम इलाज मिल पाएगा। एलोपैथिक माफिया की पकड़ समाज से कमजोर होगी। लोगों को अधिक पैसा इलाज की एवज में भुगतान नहीं करना पड़ेगा। एलोपैथि से लोगों को साइड इफेक्ट के कारण होने वाली बीमारियों से भी राहत मिलेगी और लोग आर्थिक -शारीरिक और सामाजिक रूप से संपन्न होंगे। फिर से भारत अपनी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों पर लौटेगा और विश्व में अपनी पहचान वापस पाने एक सफल हो पाएगा।

आयुष के चिकित्सक अपने को डॉक्टर कहने में भी करने लगे हैं संकोच

पूर्व में अत्तीत की सरकारों द्वारा अपनी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों की पूरी तरह से अनदेखी करते हुए आयुष विभाग में अभी तक कोई सुधारात्मक प्रणाली स्थापित नहीं की गई। इसी अनदेखी का नतीजा यह है कि आज आयुष विभाग हाशिए पर खड़ा हुआ है। बेशक हरियाणा में अनेकों आयुर्वेदिक, यूनानी एवं होम्योपैथिक संस्थान बने हुए हो तथा अनेकों संस्थानों का कार्य भी प्रगति पर हो, लेकिन यह सभी संस्थान बिना किसी हेरारकी (वर्गीकरण) के बनाए गए हैं। इसलिए इनकी पहचान एक स्थापित संस्थाओं के रूप में नहीं हो पाई। आयुष विभाग के चिकित्सकों में हौसलावर्धन के लिए भी प्रदेश के आयुष मंत्री ने कई बड़े फैसले लिए है। ऐसे दिशा निर्देश भी उनके द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों को दिए गए हैं कि विभाग के सर्विस रूल्स भी हेल्थ की तर्ज पर कर दिए जाए। ऐसा होने के बाद आयुष विभाग के चिकित्सकों का वेतनस सरकारी सुविधाएं और उनका सम्मान किसी भी सूरत में स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सकों से कम नही रहेगा। 

विभाग के पिछडापन का कारण केवल सरकारें नहीं  

प्रदेश में आयुष मंत्री का कार्यभार संभालने उपरांत अनिल विज ने पहले दिन से ही इस विषय को लेकर काफी गंभीरता दिखाते रहे हैं और कई सकारात्मक बदलाव (फैसले) उनके द्वारा लिए गए हैं। आयुष विभाग के चिकित्सकों को रक्त प्रयोग करने की अनुमति दी गई जो कि पहले एमसीए का हवाला देकर पूर्व सरकारों में यह प्रावधान नही था। जोकि कड़े संघर्ष के बाद अनिल विज यह अनुमति दिलवाने में सफल रहे, बावजूद इसके आयुष के चिकित्सकों द्वारा ना ही आज तक कोई डिलीवरी की गई और ना ही कोई किसी प्रकार का ऑपरेशन। पीजीआई रोहतक में अनिल विज द्वारा वी सी को दी गाइडलाइंस के बाद आयुष के चिकित्सकों को शल्य चिकित्सा तथा आपातकालीन सेवाओं की ट्रेनिंग के लिए मनाया गया। 

स्वस्थ- सुंदर और लंबी उम्र के लिए प्राचीन पद्धतियों को अपनाना जरूरी

प्रदेश के आयुष एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य जिनके पास आयुष विभाग भी है को पत्र लिखकर आति शीघ्र एक सर्वे करवाने तथा एलोपैथिक पद्धति के पैटर्न पर हेरारकी तैयार करने तथा उसके मुताबिक ही स्टाफ की संख्या निर्धारित करने, संस्थाओं के हिसाब से सुविधा उपलब्ध करवाने की रूपरेखा तैयार करने के आदेश जारी किए गए हैं। प्रदेश के कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने जोर देकर कहा कि हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों द्वारा किए जाने वाले इलाज में एलोपैथिक चिकित्सा की तरह किसी प्रकार का कोई साइड इफेक्ट नहीं है। पूर्ण इलाज के बाद बीमार व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ होता है। लेकिन केमिकल युक्त एलोपैथिक दवाओं का साइड इफेक्ट समय-समय पर इंसानी जान पर काफी नुकसानदायक भी साबित हुआ है। इसलिए हमें पूरी इच्छा शक्ति से भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को अपनाना चाहिए। तभी हम एक स्वस्थ- सुंदर और लंबी उम्र वाला जीवन जी सकेंगे।

प्रदेश के आयुष मंत्री केंद्रीय आयुष मंत्री को भी भेजेंगे प्रस्ताव 

इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर प्रदेश के मंत्री अनिल विज द्वारा आयुष विभाग के सभी कर्मचारी संगठनों से इस विषय को लेकर बातचीत करने के संकेत है। उनकी समस्याओं को सुना जाएगा तथा उनमें इच्छा शक्ति बढ़ाने के लिए आयुष विभाग के चिकित्सक तथा पैरामेडिकल स्टाफ के लिए पुरस्कार सुनिश्चित किए जाएंगे। इसके साथ-साथ एलोपैथिक चिकित्सकों तथा स्टाफ की तरह ही उन्हें वेतन और सुविधाएं प्रदान करने के लिए रास्ता बनाया जाएगा। न केवल प्रदेश स्तर पर बल्कि पूरे देशभर में प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों को उचित सम्मान एवं दर्जा मिले इसके लिए भारत सरकार के आयुष मंत्रालय को भी इसका प्रस्ताव भेजा जाएगा। प्रदेश के स्वास्थ्य एवं आयुष मंत्री अनिल विज द्वारा केंद्रीय आयुष मंत्री को पत्र में आयुष विभाग की गतिविधियों और कार्यों की मजबूती के लिए एलोपैथिक प्रणाली के पैटर्न पर चलते हुए संगठनात्मक रूप से निम्न स्तर से उच्च स्तर तक यानि उप केंद्र, पीएचसी, सीएचसी, एसडीएच और जिला अस्पताल की जरूरत समझते हुए इन्हें तैयार करने, आयुष विभाग की अपनी प्रतिपूर्ति और उपार्जन नीति होने के बावजूद जीर्ण रोग प्रमाण पत्र जारी करने के लिए सक्षम घोषित करने के लिए कोई अधिकारी होने, इस प्रयोजन के लिए प्रयोगशालाओं और स्क्रीनिंग मशीन जैसे एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, ईसीजी मशीन आदि होने की आवश्यकता, अतिरिक्त पैरामेडिकल और मिनिस्ट्रियल स्टाफ जैसे एमपीएसडब्ल्यू, स्टाफ नर्स और टेक्नीशियन की आवश्यकता इत्यादि बताई जाएगी।

आयुर्वेद'' समेत तमाम स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियों के महत्व को अनिल विज ने समझा 

प्रदेश के आयुष एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने देश की सबसे पुरानी स्वास्थ्य पद्धति आयुष के मायने, जरूरत और उपयोगिता को समझते हुए केंद्रीय आयुष मंत्री को एक पत्र जल्द भेजने का फैसला किया है। जिसमें आयुष विभाग को मजबूती प्रदान करने के लिए तमाम सुझाव भेजे जाएंगे। किस प्रकार से आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी को बढ़ावा दिया जाए, किस प्रकार से निचले स्तर से ऊपर तक के ढांचे को मजबूत किया जाए, इसे लेकर प्रदेश के आयुष मंत्री ने बेहद गंभीरता दिखाई है। दरअसल चिकित्सा की पारंपरिक भारतीय प्रणालियों के गहन ज्ञान को पुनर्जीवित करने और स्वास्थ्य के आयुष प्रणालियों के इष्टतम विकास और प्रसार को सुनिश्चित करने की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा 9 नवंबर 2014 को आयुष मंत्रालय का गठन किया गया था। इससे पहले, भारतीय चिकित्सा पद्धति और होम्योपैथी विभाग का गठन 1995 में किया गया। आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी के क्षेत्रों में शिक्षा और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने के साथ इसका नाम बदलकर नवंबर 2003 में आयुष विभाग के रूप में किया गया था। बावजूद इसके आज तक कोई भी प्राधिकारी जीर्ण रोग प्रमाण पत्र जारी करने के लिए सक्षम घोषित नहीं किया गया। आयुष भारत सरकार का ही एक अंग है। इसका उद्देश्य उपर्युक्त की शिक्षा और अनुसन्धान को बढ़ावा देना है।

आयुष विभाग का क्या है मुख्य उद्देश्य

इस विभाग का मुख्य उद्देश्य देश में इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन और होम्योपैथी कॉलेजों के शैक्षिक मानक को उन्नत करना, मौजूदा शोध संस्थानों को मजबूत बनाने और पहचान की गई बीमारियों पर समयबद्ध अनुसंधान कार्यक्रमों को सुनिश्चित करना, जिनके लिए इन प्रणालियों का एक प्रभावी उपचार है, इन प्रणालियों में उपयोग किए जाने वाले औषधीय पौधों की खेती, बढ़ावा देना और पुनर्जीवित करने के लिए योजनाएं तैयार करना, इंडियन सिस्टम्स ऑफ मेडिसिन और होम्योपैथी दवाओं के फार्माकोपियोअल मानकों को विकसित करना है। आयुष विभाग का मुख्य उद्देश्य लोगों को आयुष पद्धति के तहत स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है। आयुष पद्धति में आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी की स्वास्थ्य देखभाल और उपचार की प्रणालियाँ शामिल हैं।

निजी क्षेत्रों से स्वास्थ्य सेवाएं लेने में भारी भरकम खर्च उठाती है जनता 

प्रदेश के आयुष मंत्री अनिल विज के प्रयास है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बेहद सीमित होने के कारण ग्रामीण और शहरी इलाकों में अंतिम मील तक नहीं है। परिणामस्वरूप जनता को निजी क्षेत्रों से स्वास्थ्य सेवाएं लेनी पड़ती हैं, जिससे उनकी जेब पर भारी दबाव पड़ता है। हालांकि हरियाणा राज्य के स्वास्थ्य केंद्रों में 20 फ़ीसदी आयुष सेवाएं प्रदान की जाती है, ऐसे में आयुर्वेद योग के माध्यम से आयुष स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार की अत्यंत आवश्यकता अनिल विज ने बताई है। विज ने दवाओं की आयुष प्रणाली को एलोपैथिक प्रणाली के बराबर लाने के लिए निम्न स्तर से उच्च स्तर तक सबसेंटर, पीएचसी, सीएचसी, एचडीएच, जिला अस्पताल बनाने की रूपरेखा तैयार की है। 

मेडिकल कॉलेजों में एमरजेंसी व माइनर ऑपरेशन के प्रशिक्षण दिए जाने के लिए भी सुझाव 

अनिल विज ने विभाग को सफलता दिलवाने के लिए मेडिकल कॉलेजों के माध्यम से इमरजेंसी और माइनर ऑपरेशन का प्रशिक्षण दिए जाने की सख्त जरूरत मानी है। ताकि हमारे आयुष केंद्र ट्रॉमा के मामलों में भी जनता का विश्वास हासिल कर सकें। बता दें कि प्रदेश के आयुष मंत्री के पास स्वास्थ्य विभाग का कार्यभार है। इसलिए आयुष मंत्री अनिल विज इस बात को बेहद गंभीरता और गहराई से जानते हैं। वह चाहते हैं कि इस प्रकार की नीति जल्द पूरे देश में एक समान पेट्रन पर आयुष प्रणाली को मजबूत करने के लिए लागू की जाए। जिससे देश की बेहद पौराणिक प्रणाली देश की जनता को लाभान्वित कर सके

क्या है आयुर्वेद और इसे क्यों है अपनाना जरूरी

आयुर्वेद मतलब आयुर (जीवन) और वेद (ज्ञान) यानि जीवन जीने का सही ज्ञान। 5000 वर्ष प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद जो बेहद व्यस्ततपूर्ण, आधुनिक जीवनशैली को सही दिशा देने और अच्छे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी आदतें विकसित करने में सहायक हो सकती है। इसके माध्यम से जीवन सुखी, तनावमुक्त और रोग मुक्त बन सकता है। हमारे वेदों पुराणों में उल्लेखित हजारों सालों से स्वस्थ जीवन का मार्ग दिखाने वाली हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों को लगातार हमने अनदेखा किया है। लेकिन दौड़भाग भरी इस जिंदगी में हमने जल्द इलाज के लालच में असलियत का त्याग किया है। जबकि कई विकसित मुल्क हमारी इन पद्धतियों की महत्वता को पहचानते हुए इन्हें अपना चुके हैं। भारतवर्ष को विश्व गुरु की उपाधि दिलवाने में अगर कहें कि इन पद्धतियों का विशेष योगदान रहा है तो गलत नहीं होगा।

प्राचीन पद्धतियो को आगे लाने के लिए सरकारी स्तर पर काम करना जरूरी : विज

प्रदेश के आयुष मंत्री अनिल विज लगातार हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों के उत्थान को लेकर गंभीरता दिखाते रहे हैं। क्योंकि ना केवल यह एलोपैथी से ज्यादा लाभकारी और कारगर है बल्कि कहीं सस्ते भी है। भारत में इन पद्धतियों से संबंधित हर सुविधा उपलब्ध है। कुदरत ने नायाब जड़ी बूटियों का तोहफा इंसान को दिया है। बस अब जरूरत है इस पर काम करने की। प्रदेश के आयुष एवं स्वास्थ्य मंत्री सदा से इसके हक में रहे हैं। इस कार्य में तेजी लाने के लिए फार्मा कंपनियों को भी आगे आना होगा। इस पर ज्यादा से ज्यादा रिसर्च होने की आवश्यकता है। इसे लोकप्रिय बनाने के लिए सरकारी स्तर पर इसके प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। अभी तक मेडिकल कॉलेजों में रोगों पर रिसर्च हुए, आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने पर भी कुछ काम हुआ,  लेकिन रोग कैसे उत्पन्न हुआ- रोग का निदान क्या है यह बेशक पुरानी किताबों में तो लिखा हुआ है, लेकिन कोई रिसर्च होकर नया नहीं लिखा गया। यह बेहद चिंता का विषय है। देश में बहुत से आयुर्वेद के एक्सपर्ट चिकित्सक मौजूद हैं, उन्हें भी इस पर आगे आना होगा। अखबारों के माध्यम से लोगों में जागरूकता और आयुर्वेद जैसी पद्धतियों के विशेषता बतानी होगी। जिस प्रकार से एलोपैथिक चिकित्सक अपनी शिक्षा और विशेषता का खूब प्रचार प्रसार करते हैं, इसी प्रकार से आयुर्वेदिक फील्ड में करना होगा। सरकारी स्तर पर इसके प्रयास आज ना के बराबर है। इसलिए प्रदेश के आयुष मंत्री अनिल विज पहले भी कई बार कह चुके हैं कि विभाग को अपने स्तर पर इश्तेहार देने चाहिए।

आयुष विभाग के फार्मासिस्ट व डिस्पेंसरी के पंजीकरण हेतु जल्द होगी रजिस्ट्रार की नियुक्ति

अतीत के सियासतदानों की अनदेखी, लापरवाही और सुस्त रवैए के कारण अभी तक प्रदेश में आयुष विभाग के फार्मासिस्ट व डिस्पेंसरी के रजिस्ट्रेशन तक के लिए कोई सिस्टम नहीं था। जबकि एलोपैथिक में फार्मा काउंसिल, नर्सिंग काउंसिल इत्यादि के लिए पूरा सिस्टम तैयार है। इसलिए रोजगार की चाहत को देखते हुए आयुष की तरफ नौजवानों का कहीं ना कहीं कम रुझान भी रहता है। जानकारी मुताबिक एलोपैथी फार्मासिस्ट की तरह प्रदेश सरकार प्राचीन पद्धतियों पर आधारित दवाइयों की फार्मेसी के पंजीकरण के लिए एक रजिस्ट्रार नियुक्त कर सकती है। काफी समय से संबंधित फार्मासिस्टों की तरफ से इस प्रकार की डिमांड भी प्रदेश सरकार से की जाती रही है। इस नियुक्ति के बाद किसी भी प्रदेश से फार्मेसी करके आने वाले बच्चे प्रदेश में रजिस्ट्रेशन के लिए अप्लाई कर पाएंगे। इस योजना के साथ-साथ विभाग के अधिकारी स्कूलों में भी योग और आयुष के फायदे को लेकर जागरूकता अभियान चलाने के मूड में है।

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Content Editor

Saurabh Pal

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