बरोदा उपचुनाव : उम्मीद से कम मतदान की चिंता के भंवर में ‘उलझे’ उम्मीदवार!

punjabkesari.in Thursday, Nov 05, 2020 - 08:18 AM (IST)

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : बेशक बरोदा विधानसभा में हुए उप-चुनाव में मतदान के बाद उम्मीदवारों का भाग्य मंगलवार को ई.वी.एम. में कैद हो गया है मगर इस उप-चुनाव में सभी राजनीतिक दलों एवं पर्यवेक्षकों के अनुमानों के विपरीत मतदान प्रतिशत काफी कम रहा है। पहले मतदाताओं के एक बड़े वर्ग की चुप्पी ने नेताओं को चिंताओं के भंवर में उलझाए रखा तो अब चुनाव के दिन कम हुई वोटिंग ने भी सभी को न केवल हैरत में डाल दिया है अपितु बूथों से अधिकांश वोटरों की कयास से हटकर हुई ‘दूरी’ ने भी तमाम राजनेताओं के माथे पर चिंता के बल डाल दिए हैं। 

अब जो मतदान प्रतिशत कम हुआ है यह किसके लिए मंगलकारी होगा और किसके लिए अमंगल यह आने वाला मंगलवार ही तय करेगा मगर फिलहाल बरोदा की इस चुनावी जंग के मैदान में उतरे सभी उम्मीदवारों के साथ-साथ तमाम सियासी दिग्गज अपनी अपनी जीत सुनिश्चित मानकर चल रहे हैं और मतदान के बाद ये नेता लगातार बूथ वाइज मतदान के आंकड़े के आधार पर गुणा भाग करने में लगे हुए हैं। 

उल्लेखनीय है कि जिस तरह से इस उप-चुनाव को सत्ताधारी भाजपा-जजपा गठबंधन के साथ-साथ कांग्रेस व इनैलो आदि दलों ने अपने सियासी भविष्य के साथ जोड़ते हुए अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रखा था और चुनाव रूपी यह सियासी दंगल सभी दलों के लिए बड़ी अग्निपरीक्षा माना जा रहा था,उसे देखते हुए सियासी गलियारों में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि बरोदा विधानसभा सीट पर होने वाले इस पहले उप-चुनाव में भारी मतदान हो सकता है। यही नहीं सियासी पर्यवेक्षक अक्तूबर 2019 में इस सीट पर हुए आम चुनाव की तुलना में इस उप-चुनाव में 10 प्रतिशत तक अधिक मतदान होने की उम्मीद भी जता रहे थे मगर बरोदा के मतदाताओं ने तमाम कयासों से हटकर आम चुनावों की ही राह पर चलते हुए लगभग उतना ही मतदान करते हुए अपना ‘जनादेश’ दिया है।  

पर्यवेक्षकों के साथ हैरत में सट्टा बाजार
गौरतलब है कि बरोदा में हुआ यह उप-चुनाव प्रदेश की सियासी हलचल को तेज करने के साथ-साथ सट्टा बाजार में भी छाया है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के साथ- साथ सट्टा बाजार भी यही मान कर चल रहा था कि संभवत: इस उप-चुनाव में पिछले चुनावों की तुलना में काफी अधिक मतदान होगा लेकिन मंगलवार को मतदान के बाद जब वोट प्रतिशत की भनक लगी तो सभी हैरत में पड़ गए क्योंकि मतदान प्रतिशत सभी अनुमानों और कयासों से परे था। मसलन बंपर वोटिंग की उम्मीद थी जबकि मतदान महज 68.98 प्रतिशत ही हुआ। पर्यवेक्षक अब जहां इस कम हुए मतदान के कारणों को तलाश रहे हैं तो वहीं सट्टा बाजार की ‘चाल’ भी प्रभावित हुई है। हालांकि सट्टा मार्कीट द्वारा मतदान के बाद भी भाजपा व कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला मानते हुए कांग्रेस को फेवरेट बताया जा रहा है। इसमें भी कोई दोराय नहीं कि वोटिंग से पहले जीत का अंतर काफी माना जा रहा था मगर मतदान के बाद अब मार्जिन कम आंका जा रहा है। 

1987 में सर्वाधिक,1968 में सबसे कम रहा मतदान का आंकड़ा
बरोदा विधानसभा सीट पर 1967 से लेकर 2019 तक हुए 13 आम चुनावों में यूं तो कई बार क्षेत्र के मतदाताओं ने काफी रुचि दिखाते हुए भारी मतदान किया है मगर आंकड़ों अनुसार अब तक इस सीट पर सर्वाधिक 76.16 प्रतिशत मतदान 1987 में हुआ था जब हरियाणा में चौ. देवीलाल के नाम की लहर चल रही थी। जबकि सबसे कम मतदान 1968 में हुआ, उस समय मतदान का आंकड़ा 50.88 प्रतिशत दर्ज किया गया। इसके अलावा 2014 में 73.92, 2005 में 73.36 प्रतिशत मतदान हुआ। 2019 में हुए आम चुनाव में इस सीट पर करीब 69 प्रतिशत मतदान हुआ और इस उप-चुनाव में भी मतदान का यह आंकड़ा लगभग पिछले चुनाव जितना ही रहा। सियासी पर्यवेक्षकों अनुसार कोरोना संक्रमण के इस दौर में हरियाणा में हुए किसी पहले उप-चुनाव में करीब 69 फीसदी मतदान को कम नहीं आंका जा सकता, यह बात अलग है कि उप-चुनाव के दृष्टिगत मतदान का अनुमान इससे कहीं अधिक था।

क्या इस बार बरोदा में खिल पाएगा कमल?
1967 से लेकर 2019 तक हुए बरोदा विधानसभा सीट के 13 चुनावों में एक बार को छोड़कर शेष 12 चुनावों में कांग्रेस व चौ. देवीलाल व चौ.ओमप्रकाश चौटाला समर्थित उम्मीदवारों ने ही जीत दर्ज की है। एक बार 1968 में विशाल हरियाणा पार्टी के श्याम चंद विजयी हुए थे। यही वजह है कि बरोदा विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस व इनैलो का गढ़ कहा जाता रहा है। 1967 से 2005 तक यह विधानसभा क्षेत्र आरक्षित था जबकि 2009 से इस सीट को सामान्य कर दिया गया। इस सीट के सामान्य होने के बाद लगातार 3 चुनावों में कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा ने ही जीत दर्ज की है। भाजपा के लिए यह उप-चुनाव इसलिए भी काफी अहम हो गया है क्योंकि प्रदेश में भाजपा की सरकार है और अभी तक इस सीट से भाजपा कभी जीत भी दर्ज नहीं कर पाई है। ऐसे में अब देखना होगा कि भाजपा पहली बार इस उप-चुनाव में कमल खिलाने में कामयाब होती है या फिर बरोदा की सियासी भूमि इनके लिए बंजर ही बनी रहती है।
 


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Manisha rana

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