लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे का मुख्य पैमाना हरियाणा में हो सकती है जातिगत जनसंख्या

punjabkesari.in Saturday, Feb 03, 2024 - 11:39 AM (IST)

 चंडीगढ़ (चन्द्र शेखर धरणी) : जातिगत राजनीति हावी रहने के इतिहास वाले हरियाणा में यह तो तय है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भी टिकट बंटवारे का मुख्य पैमाना उम्मीदवार की जाति आबादी ही होगी। हर टिकट को बेहद नापतोल दिया जाएगा। कहीं थोड़ी सी भी गलती या अनदेखी हुई तो बड़ा खामियाजा राजनीतिक दल को उठाना पड़ सकता है। हर जाति अपनी आबादी को आधार बनाकर टिकट की बेशक मांग कर रही है, लेकिन पार्टी को अवश्य इस बड़े फैसले से पहले न केवल नेता की व्यक्तिगत छवि, उसकी राजनीतिक मजबूती और उसके सामाजिक ढांचे को देखना- परखना होगा बल्कि उसके पीछे खड़े उसके समाज पर भी नजर अवश्य डालनी होगी। अगर प्रदेश में बात करें तो ब्राह्मण समाज को पिछले दौर में भारतीय जनता पार्टी ने एक बड़े सम्मान के साथ नवाजा है। लोकसभा में भी और राज्यसभा में भी उन्हें उनका पूरा अधिकार दिया गया। लेकिन इस बार का राजनीतिक गणित पिछली बार से कुछ अलग है।डीडी शर्मा निवास पर मुख्यमंत्री के एकाएक पहुंचने पर कई राजनीतिक संकेतों ने  जन्म लिया हैं।

पिछले लोकसभा चुनावों से ठीक पहले हुए जाट आंदोलन के दौरान हुए आतंक का प्रभाव और यादें प्रदेश के हर गैर जाट व्यक्ति के दिलों दिमाग पर था। जिस कारण से हरियाणा की सभी 10 की 10 लोकसभा सीटें भाजपा की झोली में गई, इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन इस बार की स्थितियां कुछ अलग है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश की दो लोकसभा सीटों रोहतक और सोनीपत से ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे और इन ब्राह्मण उम्मीदवारों को दिल खोलकर गैर जाट वोटरों ने अपनाया।

सोनीपत से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हराकर रमेश कौशिक सांसद बन गए और बेहद कड़े मुकाबले के बाद डॉ0 अरविंद शर्मा ने रोहतक से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र हुड्डा को परस्त कर दिया। लेकिन इस बार अरविंद शर्मा रोहतक से चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जाहिर कर रहे हैं। वह करनाल से चुनाव लड़ना चाहते हैं। लेकिन लगातार पिछले दो चुनाव यहां से पंजाबी खत्री उम्मीदवार अश्विनी कुमार तथा इस बार संजय भाटिया जीते। इसलिए पार्टी इस जाति की अनदेखी का खतरा मोल नहीं लेगी। जानकारी के मुताबिक रमेश कौशिक को लेकर भी संगठन में किसी बड़ी जिम्मेदारी के बारे में पार्टी विचार कर रही है और अन्य राज्यों में किए प्रयोग से हुए बड़े लाभ को देखते हुए इस बार हरियाणा में लोकसभा सीटों पर बड़े बदलाव नजर आ सकते हैं। कुछ सांसदों को संगठन में बड़ी जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं तथा कुछ को विधानसभा चुनाव लड़वाए जा सकते हैं। इसलिए नए चेहरे सामने आना कोई अचरज भरी बात नहीं होगी।

 

प्रदेश की लोकसभा सीटों पर इस बार फिर से ब्राह्मण एक बड़ा दावा ठोकते नजर आ रहे हैं। अगर करनाल- रोहतक और सोनीपत सीट से अलग बात करें तो कुरुक्षेत्र ब्राह्मणों के लिए एक सेफ सीट मानी जा सकती है। क्योंकि कुरुक्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों पर से ब्राह्मण कई बार विधायक रह चुके हैं। अगर बात करें कि कुरुक्षेत्र की थानेसर सीट से देवेंद्र शर्मा, पुंडरी से रोशन लाल तिवारी- नरेंद्र शर्मा- दिनेश कौशिक, शाहाबाद मारकंडा जब पहले आरक्षित नहीं थी तब केएल शर्मा, यमुनानगर बेल्ट से राजेश शर्मा, डॉ0 जयप्रकाश शर्मा और कृष्णा पंडित विधायक रह चुकी हैं यानि ब्राह्मणों का एक बड़ा आधिपत्य और पकड़ कुरुक्षेत्र लोकसभा की विधानसभा सीटों पर है और हमेशा से कुरुक्षेत्रवासियों की एक नाराजगी राजनीतिक दलों से रही है कि यहां हमेशा पैराशूट उम्मीदवार उतारे जाते रहे हैं। हालांकि पार्टी को सम्मान देते हुए बेशक कुरुक्षेत्र वासियों ने उम्मीदवारों को जितवाया भी, लेकिन इस बार जनता की चाहत लोकल उम्मीदवार की है जो कि अगर ब्राह्मण पर राजनीतिक दल दाव खेलें तो यह फायदे का सौदा हो सकता है।

 

इस बार मुख्य रूप से एक ब्राह्मण नेता पर मीडिया की नजर बनी हुई है डीडी शर्मा उर्फ पंडित जय भगवान शर्मा जो कृषक भी हैं और व्यापारी भी। बेहद मजबूत सामाजिक ढांचे वाले शर्मा 2014 में भाजपा की टिकट पर पेहवा विधानसभा सीट जहां से राजकुमार सैनी ने लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की टिकट पर मात्र 19000 वोट हासिल किए थे से 40000 वोट हासिल कर चुके हैं। सामाजिक और धार्मिक रूप से बेहद एक्टिव शर्मा स्नातक की पढ़ाई कर चुके हैं और कुरुक्षेत्र की पिपली मंडी जहां 500 में से केवल 5 ही दुकान ब्राह्मणों की है लेकिन पांच बार मंडी के प्रधान पद पर रह चुके हैं। सैनी- जाट बाहुल्य जोन नंबर 10 से 2010 में शर्मा निर्दलीय लड़कर जिला परिषद का चुनाव जीतने वाले शख्स हैं।

बेहद एक्टिव राजनीति करने वाले डीडी शर्मा के पुत्र रूबल शर्मा जो भाजपा युवा के जिला मोर्चा के प्रधान है वह तीन बार खेड़ी मारकंडा गांव से सरपंच बन चुके हैं। राजनीतिक विश्लेषण के तौर पर शर्मा का नाम एकदम से इसलिए सुर्खियों में आया क्योंकि दो-तीन दिन पहले ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल उनके निवास पर पहुंचे। इसे अगर राजनीतिक संकेत के रूप में देखा जाए तो भी इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।


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Content Writer

Isha

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