हरियाणा व पंजाब में मतदान की प्रतिशतता कम होना चिंतनीय: राम नारायण यादव

punjabkesari.in Sunday, Jan 23, 2022 - 05:45 PM (IST)

चंडीगढ़(चन्द्र शेखर धरणी): भारतीय लोकतंत्र की सफलता विधानमंडलों के अच्छे सदस्य चुनने में है। नागरिक अपने मताधिकार की शक्ति व महत्व को जानकर मत का सदुपयोग कैसे कर सकते हैं इसे जनता तक पहुंचाने के लिये हमारी टीम  ने बात की पंजाब विधान में रहे विधान सभा अध्यक्ष के सलाहकार व पूर्व अतिरिक्त सचिव, हरियाणा विधानसभा राम नारायण यादव से जो संसदीय प्रणाली व संविधान में अच्छी जानकारी रखते़ हैं, का कहना है कि प्रतिनिधि चुनने में अधिक भागीदारी लाभकारी है। आज यह चर्चा का विषय भी है कि सभी का मतदान कैसे सुनिश्चित किया जा सके।

हरियाणा व पंजाब के कुछ आम चुनावों के परिणाम देखें तो पता चलेगा कि मतदान की प्रतिशतता कम तो रहती ही है साथ ही घटती भी रहती है। हरियाणा विधान सभा 1967 चुनाव में जहां मतदान 72.65ः  था वह सबसे ज्यादा 2014 में 76.54ः रहा वहीं 1968 में यह 57.26ः रहीय इसी तरह लोक सभा में; 1967 में 72.61ः तथा 1977 में 60.46ः थी। पंजाब विधान सभा में जहां 1952 में 57.85ः था, 1957 में 57.72ः व 1992 में ;अर्बन 38.3, सेमी अर्बन 26.5, सेमी रूरल 25.3 व रूरल 15.1 ही रहा, जबकि यह 2012 के 78.6ः से 2017 में 77.2ः पर आ गई। महिलाओ की प्रतिभागी सामान्यतः कम रहती है जैसे कि 1967 में पुरूष 73.47 व महिलाऐं 68.50ः थी। इनमें भी कुछ वोट नोटा में डाली जाती हैं।

इसलिये लोकतंत्र की मजबूती, जनता व राष्टृ की समृद्धि मतदाताओं द्वारा मत की शक्ति व महत्व का बुद्धिपूर्वक उपयोग करने में निहित है।राम नारायण यादव का कहना है कि भारत में विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों, जातियों और धर्मों के लोग हैं, जो इसकी विरासत है। भारत में चुनावों का इतिहास बहुत पुराना है। स्वतंत्रता के बाद भारत में प्रथम चुनाव वर्ष 1951-52 में हुए। वर्ष 2019 में लोकसभा का 17वां आम चुनाव हुआ और उसी कड़ी में आज 5 राज्य विधानसभाओं के चुनाव हो रहे हैं।

राम नारायण यादव का कहना है कि चुनाव एक विशेष, विचित्र व विस्त्रित कार्यप्रणाली है। कुछ पदों पर व्यक्तियों को जनता वोट द्वारा सीधा चुनती है; और कुछ को जनता द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधियों अर्थात विधानसभा व संसद के सदस्यों द्वारा चुना जाता है। चुनाव की आवश्यकता इसलिये है कि भारत के लोगों ने संविधान बनाकर स्वयं को अर्पित किया है और शासन-प्रशासन को इसका दायित्व सोंपा है। यह संविधान की प्रस्तावना से स्पष्ट है कि भारत के लोगों ने 26 नवम्बर, 1949 को अपना संविधान बनाकर स्वयं को अर्पित किया है। इसलिये संविधान को चलाने, जनता की समस्याओं को दूर करने व जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये जनप्रतिनिधि व शासन की जरूरत होती है। विशेषकर तब जबकि शासनतंत्र की तीन शाखाओं में से दो, विधायिका व कार्यपालिका, का संचालन व नियंत्रण जनता के प्रतिनिधियों के हाथ में होता है।

लोग प्रतिनिधि-सदस्यों से संविधान में दी गई प्रणाली के अनुसार देश व जनता के सुख व समृद्धि की अपेक्षा रखते हैं। डा. अम्बेडकर का 31 दिसम्बर 1948 का विधानमंडलों की कार्यप्रणाली व शक्ति के सम्बन्ध में दिया गया व्याख्यान स्पष्ट करता है कि; ’’सभा के मत और प्राधिकार में प्रशासन की शुद्धता को स्थिर रखने की अधिक शक्ति है जिससे कि कोई बाह्य शक्ति की आवश्यकता नहीं रहती।’’ सदस्यों को चुनने के लिये हमारा चुनाव आयोग स्वतंत्र है उसकी निष्पक्षता इसका प्रतीक है। कार्यपालिका सहित शासनतंत्र की किसी शाखा का इसके कार्यों में दखल नहीं होता। न्यायपालिका भी चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद किसी विवाद में चुनाव खत्म होने से पहले दखल नहीं देती।

मत के अधिकार की वह क्या शक्ति व महत्व हैं पर यादव का कहना है कि गांधीजी का कहना था कि, राजनीति जनता की सेवा करने के लिये है जनता का मास्टर बनने के लिये नहीं। प्रथम तो ये कि प्रत्येक मतदाता अपने मत का इस्तेमाल अवश्य करें, यह अतिआवश्यक भी है। दूसरा ये कि मत का इस्तेमाल कैसे व किसेे करें। इस बारे में डा. राजेन्द्र प्रशाद के 26 नवम्बर, 1949 के विचार कुछ इस तरह थे; मैं उन ग्रामीण व्यक्तियों से परिचित हूं जो इस महान निर्वाचक-मंडल का एक बड़ा भाग होगा। मेरी सम्मति में हमारे इन लोगों में बुद्धि और साधारण ज्ञान है। मुझे रंचमात्र भी संदेह नहीं है कि यदि उनको वस्तुस्थिति समझा दी जाए तो वे अपने हित तथा देश के हित के लिए उपक्रम कर सकते हैं। इससे वे केवल निर्वाचन की बारीकियों को ही नहीं समझेंगे बल्कि बुद्धिमानी पूर्वक अपना मत भी देंगे। इसलिये जनसेवक एक अच्छा प्रतिनिधि साबित हो सकता है।

 राम नारायण यादव का कहना है कि अन्य यह कि, मतदाता को पांच वर्ष में एक बार मताधिकार का अवसर मिलता है। मतदान के बाद वह चुने हुये प्रतिनिधि पर निर्भर रहता है। मत के महत्व, शक्ति व आवश्यकता को इस तरह भी जाना जा सकता है कि एक मत से सदस्य चुन लिया जाता है, ये सदस्य जनता के मत की शक्ति का पांच वर्ष तक इस्तेमाल करते रहते हैं। विधानसभा के सदस्य राज्यसभा व विधानपरिषद के सदस्य चुनते हैं। विधानसभा, लोकसभा व राज्यसभा के चुने हुये सदस्य राष्टृपति जी को तथा लोकसभा व राज्यसभा के सदस्य उप-राष्टृपति जी को चुनते हैं। साथ ही ये सदस्य स्पीकर, डिप्टी-स्पीकर, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री आदि भी चुनते हैं। ऐसी शक्ति व महत्व एक मत का है।अतः जनता को अपने एक मत की इन शक्तियों व महत्व को समझना जरूरी है तभी वह अपने, समाज व देश के प्रति अपने दायित्व को सही तरीके से निभा सकेंगे और किसी भी सदस्य व शासन से अपनी समस्याओं के निवारण व आवश्यकताओं की पूर्ती करने की आशा रख पायेंगे। इसलिये लोगों को अधिक से अधिक मतदान कर ऐसे सदस्य चुनने पर जोर देना चाहिये जो अपने हितों से उपर जनता व देश के हितों को रखें। सरदार पटेल ने भी जोर दिया था कि संविधान सभा में बुद्धिमान व काम करने वाले सदस्य हों।

राम नारायण यादव का कहना है कि चुनाव आयोग का मुख्यरूप से समय पर स्वतंत्र व निष्प़क्ष चुनाव कराना का दायित्व है। चुनाव आयोग की भूमिका हमारे संविधान निर्माताओं के मन में उच्चकोटी की कुशल संविधानिक संस्था के रूप में थी। 16 जून, 1949 को पं. हृदयनाथ कुंजरू द्वारा संविधान सभा में दिया गया वक्तव्य है कि ’’यह आवश्यक है कि निर्वाचन व्यवस्था के ठीक कार्य करने का विश्वास उत्पन्न करने के लिये प्रत्येक संभव उपाय करना चाहिये। यदि निर्वाचन-व्यवस्था में दोष है अथवा वह व्यवस्था कुशल नहीं है अथवा उसे ऐसे व्यक्ति चला रहे हैं जिनकी सच्चाई पर हम निर्भर नहीं रह सकते, तो लोकतंत्र का श्रोत ही विषाक्त हो जायेगा..’’।

 


 


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Content Writer

Isha

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