हरियाणा में एक बार फिर से उफान पर घग्गर नदी, 2023 में इस जिले में मचाई थी तबाही

punjabkesari.in Wednesday, Aug 13, 2025 - 03:00 PM (IST)

सिरसा (सतनाम सिंह) : सिरसा से गुजरने वाली घग्गर नदी एक बार फिर उफान पर है। तटबंध पर रहने वाले गांवों के लोगों की सांसें एक फिर से अटकी हुई हैं। सिंचाई विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस समय घग्गर नदी में गुहला चीका में 16 हजार 940 क्यूसिक, खन्नौरी हैड पर 6 हजार 425 क्यूसिक, चांदपुरा में 3 हजार 750 क्यूसिक, सरदूलगढ़ में 10 हजार 880 क्यूसिक व ओटू हैड पर 2500 क्यूसिक पानी चल रहा है। ओटू हैड से 2900 क्यूसिक राजस्थान साइफन जबकि 3418 क्यूसिक पानी नहरों में छोड़ा जा रहा है। घग्गर नदी में एक दम से ज्यादा पानी आने की वजह से ग्रामीण अब सहमे हुए है। गांव में घग्गर नदी के कहर से बचाव के लिए मिट्टी के कट्टे का इंतजाम किया गया है ताकि आपातकालीन स्थिति पैदा होते हुए मौके पर स्थिति पर काबू पाया जा सके। 

घग्घर के तटबंधीय गांवों में रहने वाले संदीप कुमार, नवदीप कुमार और नरेश कुमार का कहना है कि नदी के तटबंध काफी कमजोर हैं। गांव मल्लेवाला से लेकर गांव रंगा और फरवाईं कलां से लेकर मुसाहिबवाला तक अभी तक सरकारी बांध नहीं बना है। जब भी नदी उफान पर आती है तो ग्रामीण अपने ही स्तर पर नदी के तटबंधों को मजबूत करते हैं। वैसे घग्गर नदी की बात करें तो हिमाचल के सिरमौर जिले से शिवालिक पहाडिय़ों से घग्घर का उद्गम होता है। इसके बाद यह नदी पंचकूला से पंजाब के पटियाला में प्रवेश करती है। संगरूर, पातड़ा से पतेहाबाद के चांदपुरा होते हुए पंजाब के सरदूलगढ़ से होते हुए सिरसा और फिर राजस्थान के हनुमानगढ़, सूरतगढ़ से यह नदी पाकिस्तान में चली जाती है। इस नदी में पहली बार 1852 में बाढ़ आई थी। करीब 421 किलोमीटर लंबी इस नदी का कुल कैचमेंट एरिया 21580 वर्ग किलोमीटर है। तीनों ही राज्यों में नदी के तटबंध कमजोर हैं। 

पंजाब व हरियाणा में 18 बार कहर बरपा चुकी घग्गर नदी

नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट की रिपोर्ट के अनुसार 1852 से लेकर अब तक घग्गर नदी पंजाब व हरियाणा के विभिन्न हिस्सों में 18 बार कहर बरपा चुकी है। नदी में साल 1852, साल 1887, 1888, 1976, 1981, 1984, 1988, 1993, 1994, 1995, 1996, 1997, 2000, 2001, 2004, 2010, 2015 और 2023 में बाढ़ आ चुकी है। घग्गर नदी में बाढ़ का गणित आंकड़ों से स्पष्ट होता है। साल 1962 में घग्घर में 37845 क्यूसिक पानी आने के बाद बाढ़ आई थी। इसी तरह से 1988 में 34805 क्यूसिक पानी आने के बाद बाढ़ के हालात बने थे। 1993 में तो 40763 क्यूसिक पानी आया था और उस दौरान घग्घर के तटबंध पर पडऩे वाले अनेक गांवों के अलावा डबवाली रोड पर गांव झोंपड़ा के पास बांध में दरार आने के बाद सिरसा शहर के अनेक हिस्सों में पानी आ गया था। 

1995 में 40313 क्यूसिक पानी आया और उस दौरान भी बाढ़ से काफी बर्बादी हुई थी। जुलाई 2010 में 40 हजार क्यूसिक पानी आने के बाद गांव बणी और फरवाईं कलां डूब गए थे और जिला के करीब चार दर्जन गांवों में 33 हजार एकड़ फसल बर्बाद हो गई थी। यह बात जरूर है कि जिला में गांव ओटू के पास ओटू वियर बनने के बाद बाढ़ का खतरा कुछ कम हुआ है। इस वियर से करीब एक दर्जन नहरें निकलती हैं तो करीब 1200 एकड़ में ओटू झील है। इस झील में काफी पानी का भंडारण हो जाता है। 

साल 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने इस वियर का उद्घाटन किया था। मानसून में नदी में बाढ़ को टालने के मकसद से ब्रिटिश शासन के दौरान 1896-97 में करीब 6 लाख 30 हजार से ओटू वियर का निर्माण किया गया और इस राशि में से 2 लाख 80 हजार रुपए बीकानेर रियासत ने दिया था।

बरसाती नाले के चलते संकटदायक बनती है नदी

नदी में आमतौर पर मानसून के सीजन में किसी डैम या बैराज का पानी न आकर के हिमाचल के सिरमौर, मोरनी, पंचकूला व पटियाला जिलों का बरसाती पानी आता है। इसके अलावा इस नदी में झासा के पास मारकंडा नदी, जबकि जंसूई में टांगड़ी नदी का पानी छोड़ा जाता है। इसी बरसाती नाले से ही जोआ नाला, रंगोई नाला, सरहिदं चो, बरेटा ड्रेन, टोडरपुर ड्रेन भी इसी बरसाती नाले से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा घग्गर नदी पर पंचकूला जिले में कालका-शिमला रोड पर कौशल्या डैम बना हुआ है। इस डैम में सीमित मात्रा के बाद पानी घग्घर में छोड़ा जाता है। इसके अलावा मानसून में तेज बारिश, चंडीगढ़, पटियाला, पंचकूला सहित कई इलाकों का बरसाती पानी गिरता है। हिमाचल के सिरमौर में मानसून में 1124, सोलन में 912, चंडीगढ़ में 849, पंचकूला में 911 जबकि पटियाला में 541 मिलीमीटर होने वाली बरसात इस नदी को उफान पर ला देती है। इसके अलावा इस नदी के तटबंधों पर पिछले 2 दशक में दोनों राज्यों में 1200 से अधिक पाइपलाइन बनी हुई हैं, जिनके जरिए करीब 6 लाख हैक्टेयर भूमि सिंचित होती है। इसके अलावा नदी के तटबंध जंगल का रूप ले चुके हैं।

49 गांव हैं संवेदनशील

जिला प्रशासन द्वारा घग्गर नदी के साथ लगते उपमंडल कालांवाली, सिरसा व ऐलनाबाद में 49 संवेदनशील गांवों को चिन्हित किया गया है। जिनमें उपमंडल कालांवाली में गांव मत्तड़, लहंगेवाला व रंगा, उपमंडल सिरसा में गांव नागोकी, किराडक़ोट, बुढाभाणा, मल्लेवाला, नेजाडेला खुर्द, सहारणी, खैरेकां, बनसुधार, चामल, झोरडऩाली, मुसाहिबवाला, पनिहारी, बुर्ज कर्मगढ, फरवाई कलां, नेजाडेला कलां, झोपड़ा, मीरपुर, अहमदपुर, केलनियां, अलानुर, चकेरियां शामिल है। इसी प्रकार उपमंडल ऐलनााबाद में गांव धनूर, अबूतगढ, ओटू, फिरोजाबाद, नगराणा थेड़, ढाणी सतनाम सिंह, ढाणी आसा सिंह, मोहर सिंह थेड़, नागोकी, जीवन नगर, हारणी, करीवाला, ढाणी शहीदांवाली, ढाणी प्रताप सिंह, गिदड़ांवाली, कुत्ताबढ, रत्ताखेड़ा, शेखुखेड़ा, पट्टïी कृपाल, मौजुखेड़ा, बुढीमेड़ी, अमृतसर, दया सिंह थेहड़, ठोबरियां, तलवाड़ाखुर्द शामिल है।

हिमाचल से पाकिस्तान तक बहती है घग्घर

घग्घर मानसून के दौरान हिमाचल प्रदेश के शिवालिक पहाडिय़ों से उतरती है और फिर पंजाब और हरियाणा से गुजरती है। यहा से यह राजस्थान में दाखिल होती है, जहा एक द्रोणी में यह तलवारा झील बनाती है। इससे पहले कालका के पास नदी का अलग रूप देखने को मिलता है। यहां पर नदी का पानी साफ है। मोहाली के बाद नदी का पानी काला नजर आता है। इस नदी से राजस्थान और हरियाणा में कई नहरें भी निकाली गई हैं। घग्गर नदी की कुछ उपनदियां भी हैं। हरियाणा के अंबाला जिले के छोटी पहाडिय़ों वाले इलाके से सरसूती नदी आती है सरदूलगढ़ के पास सतलुज नदी की एक छोटी सी धार घग्गर में मिला करती थी, लेकिन अब सूख चुकी है। इसी तरह चौतंग नदी सूरतगढ़ के पास घग्गर से मिलती है। घग्गर नदी की चौड़ाई देखकर लगता है कि यह नदी कभी बहुत ’ज्यादा बड़ी रही होगी। संभव है कि यह लगभग 10,000 साल पहले पिछले हिमयुग के खत्म होने पर हिमालय की कुछ बड़ी हिमानियों (ग्लेशियर) पिघलने से हुआ हो। संभव है कि उन दिनों में यह आगे तक जाकर कच्छ के रण में खाली होती हो। समय के साथ इस नदी को पानी देने वाली उपनदिया सिन्धु नदी और यमुना नदी को में पानी देने लगीं, जिस से घग्घर सूखने लगी।

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Content Editor

Deepak Kumar

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