विधान-परिषद के निर्माण के लिए अनुच्छेद 171 की शर्तों को पूरा करना होता है: राम नारायण यादव
punjabkesari.in Wednesday, May 19, 2021 - 10:53 AM (IST)

चंडीगढ़ (धरणी) : पश्चिम बंगाल में विधान-परिषद के निर्माण की चर्चा जोरों पर है। इस बारे में वहां की सरकार द्वारा हाल ही में निर्णय लेने की खबर है। यदि बंगाल सरकार आगे कदम रखती है तो उसकी क्या प्रक्रिया होगी और संविधान के किन प्रावधानों के अंतर्गत यह प्रक्रिया किस तरह पूरी हो सकेगी, इस बारे हमारे प्रतिनिधि ने राम नारायण यादव, पूर्व अतिरिक्त सचिव हरियाणा विधान सभा व पूर्व सलाहकारध्अध्यक्ष पंजाब विधान सभा से बात की। इस बारे में राज्यपाल की भूमिका के बारे में भी चर्चा की गई। जानते हैं किसी राज्य में विधान परिषद् के गठन के बारे क्या-क्या आवश्यकताऐं हैं।
प्रश्न : रामनारायण जी, अभी तक कितने प्रदेशों में विधान-परिषद हैं, और इनकी आवश्यकता क्या है?
उत्तर : इस समय राज्य-सभा के अतिरिक्त, प्रदेशों में आठ विधान-परिषद हैं, आंध्र-प्रदेश, बिहार, मध्य-प्रदेश, महाराष्टृ, कर्नाटका, तमिलनाडू, उत्तर-प्रदेश व तेलंगाना। जहां तक इनकी आवश्यकता की बात है, इस बारे संविधान-सभा में विस्तृत चर्चा हुई थी। श्री एम.ए.आयंगर ने 3 जनवरी, 1949 को स्पष्ट किया था कि यह जरूरी है कि दूसरे आगार को भी हम रखें जहां लोगों की प्रतिभा को अबाध क्षेत्र मिल सके। दूसरे आगार का कारण यह भी है कि अगर नीचे वाला आगार आवेश में कोई कानून तुरन्त पास कर देता है तो उपर वाले आगार तक उसके पहुंचने में जो समय का व्यवधान पड़ेगा उससे आवेश शान्त हो जायेगा और कानून पर सही-सही विचार किया जा सकेगा। तीसरा कारण यह है कि उपर वाला आगार एक स्थायी निकाय होगा किन्तु लोक-सभा स्थायी नहीं होगी। राज्य विधान-परिषद के बारे में संविधान में अलग से प्रावधान किए गए हैं।
प्रश्न : पश्चिम बंगाल में विधान-परिषद् के निर्माण के लिए वहां की सरकार ने निर्णय लिया है। किसी प्रान्त में विधान-परिषद के गठन के लिए क्या प्रक्रिया होती हैं और संविधान में इसके बारे क्या प्रावधान हैं?
उत्तर : राज्य विधान-परिषद् के निर्माण व गठन करने के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 168, 169 व 171 आदि में दिये गये है। विधान-परिषद् के निर्माण के लिए अनुच्छेद 171 की शर्तों को पूरा करना होता है जिसके अनुसार प्रस्तावित विधान-परिषद् में सदस्यों की संख्या कम से कम चालीस व अधिकतम विधान-सभा के एक-तिहाई सदस्य होने चाहिए। इन शर्तों को पूरा करने वाली विधान-सभा को अनुच्छेद 169 के अंतर्गत एक प्रस्ताव पारित करना होता है। यदि उस प्रदेश की विधान-सभा के कुल सदस्यों के बहुमत तथा उपस्थित व वोट डालने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के साथ ऐसा प्रस्ताव पारित करती है तो उसके आधार पर संसद अनुच्छेद 169 के अंतर्गत नई विधान-परिषद् के निर्माण का कानून बना सकती है। ऐसा कानून बनाने के लिए अनुच्छेद 368 के अनुसार संशोधन की आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न : क्या पंजाब में विधान-परिषद् बन सकती है, तथा ऐसे विषयों में राज्यपाल की क्या भूमिका है?
उत्तर : पंजाब विधान-सभा के सदस्यों की कुल संख्या 117 है, और इनके अनुसार परिषद् के लिए कम से कम एक तिहाई चालीस सदस्य नहीं हो पाते। जहां तक राज्यपाल महोदय का प्रश्न है; वह अनुच्छेद 168 में राज्य विधानमंडल के हिस्सा होते हैं, तथा संविधान सभा में 26 नवंबर, 1949 को डा. राजेन्द्र प्रशाद के अनुसार; किसी विधान पर राष्ट्रपति या राज्यपाल को, यथास्थिति, अपनी अनुमति देनी होगी, पर यह अनुमति उसके मंत्रालय की मंत्रणा के आधार पर ही होगी जो अन्ततोगत्वा लोक-सभा के प्रति उत्तरदायी है। अतः लोक-सदन में जनता के प्रतिनिधियों द्वारा व्यक्त किए गए रूप में जनता की इच्छा ही अंत में सब विषयों का निश्चय करेगी। द्वितीय सदन और राष्ट्रपति या राज्यपाल केवल पुनर्विचार के लिए निदेश दे सकते हैं और कुछ विलम्ब कर सकते हैं; परंतु यदि लोक-सभा दृढ़ है तो संविधान के अधीन उसे सफलता मिलेगी। अतः समूचे देश की सरकार, दोनों केंद्र में तथा प्रांतों में, जनता की इच्छा पर निर्भर होगी जो दिन प्रतिदिन विधान-मंडलों में उसके प्रतिनिधियों द्वारा व्यक्त हुआ करेगी और कभी-कभी साधारण निर्वाचनों में प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा व्यक्त होगी।
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