सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लेखनी के माध्यम से चेतना लाने वाले थे राज धरणी सागर: अनिल विज

punjabkesari.in Tuesday, Jan 14, 2025 - 07:47 PM (IST)

चंडीगढ़ (चंद्रशेखर धरणी): ऊर्जा व श्रम मंत्री अनिल विज ने कहा कि स्वर्गीय राज धरणी सागर जालंधर से प्रकाशित हुए दैनिक हिंदी समाचार पत्र पंजाब केसरी के उन पहले लेखकों में से एक हैं, जिनकी हर वीरवार प्रथम पेज पर कहानी संस्करण में कहानी प्रकाशित होती थी। लाला जगत नारायण के सानिध्य में सागर ने पंजाब केसरी से जुड़ी हुई एक सामाजिक संस्था तरुण संगम का गठन किया था, जो पूरे उत्तर भारत में 25 वर्ष तक पूरी तरह से सक्रिय रही। 

राज धरणी ने अध्यापक के आदर्श को चरितार्थ किया। वे सरलता, त्याग, सादगी व समाज सेवा में समर्पित रहे। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अपनी लेखनी के माध्यम से चेतना लाने के अथक प्रयास किए। 

महान क्रांतिकारी परिवार में जन्मे राजधरणी "सागर" को अध्यापन-लेखन-काव्य-उपन्यास का अद्भुत संगम कहें तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। देश की आजादी से पूर्व मलेर कोटला (पंजाब) में आज के दिन जन्मे "सागर" को आज का दिन स्मृति दिवस के रूप में समर्पित है। "सागर" को देशभक्ति उनके फूफा अमर शहीद डॉ. कालीचरण शर्मा (लुधियाना), माता कमला धरणी व पिता शामलाल धरणी से बचपन के ही संस्कारों में मिली। परिवार के बलिदान और कुर्बानियों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि पढ़ने वाले की आंखें नम ना हो, ऐसा हो नहीं सकता। 

लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज के वक्त इनके फूफा कालीचरण शर्मा की एक पुत्री राज भी लाठियों के कारण शहीद हुई थी और उनके नाम पर ही श्री धरणी का नाम बुजुर्गों ने रखने का फैसला लिया था। आजादी के स्वतंत्रता संग्राम में फूफा कालीचरण शर्मा ने 7 बच्चे शहीद करवा दिए, वहीं श्री धरणी के माता-पिता भी दर्जनों बार जेलों में गए। बहुत से आंदोलनों में अंग्रेजी शासन काल की पुलिस के साथ दो-दो हाथ भी हुए। स्वतंत्रता सेनानियों के इस परिवार का पुत्र श्री राज धरणी का जीवन काल भी संघर्ष करते हुए बीता। अध्यापक की ड्यूटी के वक्त वह समय-समय पर सरकार द्वारा थोपे गए बहुत से फैसलों के खिलाफ नेतृत्व की भूमिका में खड़े नजर आए। बंसीलाल कार्यकाल के दौरान हुए टीचर आंदोलन में सख्त कार्रवाई के आदेशों की अनदेखी करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल को उन्होंने काले झंडे दिखाए।

सुप्रसिद्ध इतिहासकार, साहित्यकार, लेखक, विश्लेषक व काव्य संग्रह में अमिट छाप छोडने वाले राजकुमार धरणी (जिनका साहित्यक नाम राज धरणी सागर था) की आज 85 वी जन्म तिथि रूपी स्मृति दिवस है। राजकुमार धरणी का निधन 74 वर्ष की आयु में पानीपत में हुआ था। हरीयाणा शिक्षा विभाग में बतौर एसएस के टीचर रहे स्वर्गीय राजकुमार धरणी उप प्रधानाचार्य पद से रिटायर हुए थे। नौकरी के दौरान भी समाज के उत्कृष्ट- उत्थान के कार्यों में अग्रिम पंक्ति में खड़े होने वाले श्री धरणी ने पंजाब केसरी में अमर शहिद लाला जगत नारायण के सानिध्य में उनके कॉफ़ी लेख, कहानिया, काव्य प्रकाशित हुए। सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अपनी कलम के माध्यम से आवाज उठाते हुए वह उन दिनों पंजाब केसरी में चलाई जाने वाली तरुण संगम व वीर प्रताप संस्था के साथ-साथ बालो -उद्द्यान के हरियाणा-पंजाब-हिमाचल के सयोंजक के रूप में संचालन करते रहे व उस दौरान यह संस्थाएं इनके मार्गदर्शन में जनचेतना पैदा करने का माध्यम भी बनी।

गलती पर मित्रों का भी कर दिया था त्याग

परिवार और समाज को संतुलित ढांचे में पिरोकर कदम बढ़ाने वाले धरणी हमेशा समाज के लिए ही नहीं बल्कि अपने साथियों के लिए कभी आदर्श से कम नहीं रहे। उत्तर भारत में आज भी एक बड़ी पहचान बने हुए बहुत से साहित्यकार व पत्रकार उनके सानिध्य में आगे बढ़ना सीख रहे हैं। परिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन के साथ वह दोस्तों को लेकर भी हमेशा गंभीर रहे। मित्र और साथी उन्हें एक विशाल वट वृक्ष के रुप में महसूस करते थे। किसी भी प्रकार की दिक्कत-परेशानी आने पर एक मजबूत दीवार की तरह वह हमेशा ना केवल खड़े नजर आए, बल्कि कुछ मौकों पर तो मित्र की गलती पाने पर उन्होंने मित्र का भी बहिष्कार (त्याग) करने से परहेज नहीं किया। बेहद सुलझे हुए धरणी घर-परिवार में हमेशा समाजवाद के पक्षधर रहे। जीवन के मूल्यों से कभी कोई समझौता ना करने वाले धरणी ने कभी भी परिवार को किसी दबाव में नहीं रखा। सोसाइटी के प्रति निस्वार्थ भाव रखने वाले धरणी की कर्मभूमि रही। 

अमृतसर के हिंदू कॉलेज से शिक्षा प्राप्त करने वाले धरणी की अमिट छाप अमृतसर में भी रही यह कहें तो गलत नहीं होगा। अमृतसर की भूमि से निकली बहुत सी महान हस्तियां भी ना केवल उनसे प्रभावित रही बल्कि समय-समय पर उनका मार्गदर्शन भी प्राप्त करती रही। महान अभिनेता-नेता सुनील दत्त का भी मार्गदर्शन श्री धरणी को प्राप्त हुआ और समय-समय पर पारिवारिक कार्यक्रमों में आना जाना रहा। लेखन की दुनिया के अलावा बहुत से विकल्प श्री धरणी के पास मौजूद थे, लेकिन हमेशा समाज सेवा के निस्वार्थ भावों से लवरेज रहे धरनी ने लेखन की दुनिया को सर्वोपरि माना। बुजुर्ग अवस्था में भी धरणी अपना खाली वक्त केवल समाज हित के कार्यों या फिर लेखन में गुजारते रहे।

सच्चे मित्र जैसे थे मेरे लिए मेरे पिता: चंद्रशेखर धरणी

आज उनके पुत्र चंद्रशेखर धरणी भी उनके संस्कारों और विचारों के प्रकाश से समाज को रोशन कर रहे हैं। पत्रकारिता की दुनिया में एक बड़ी पहचान चंद्रशेखर धरणी ने समृति दिवस पर बड़े नम भावों से पिता को याद करते हुए बताया कि जिस वक्त देश बेहद गरीबी और अनपढ़ता के दौर से गुजर रहा था, शिक्षा के ज्यादा साधन उपलब्ध ना होने के बावजूद उनके पिता वेल क्वालिफाइड थे। शिक्षा को लेकर उनका विजन इतना बड़ा था कि उस समय उन्होंने एक नहीं बल्कि तीन-तीन अलग-अलग विषयों में मास्टर डिग्री हासिल की। जातिवाद की मानसिकता से ग्रसित समाज में हमेशा सर्वधर्म समभाव का पाठ पढ़ाने वाले उनके पिता का सम्मान और संबंध हर जाति-धर्म के लोगों के साथ था। 

उन्होंने परिवार पर भी कभी कोई फैसला जबरदस्ती नहीं थोपा। पुत्र चंद्रशेखर धरणी ने बताया कि दसवीं की शिक्षा प्राप्त करने तक हमेशा पिता ने उन्हें सख्त मार्गदर्शन दिया, लेकिन दसवीं के बाद फ्री हैंड छोड़ते हुए एक सच्चा मित्र उन्होंने अपने पिता में देखते उनसे हमेशा अच्छा मार्गदर्शन प्राप्त किया। हमेशा समाज को सुशिक्षित- समृद्ध और सुदृढ़ बनाने के विचार रखने वाले उनके पिता हमेशा समाज के हर वर्ग को ऊंचा उठाने की सोच रखते थे। उसी के फलस्वरुप रिटायरमेंट के बाद भी उन्होंने पानीपत के कच्चा कैंप में फ्री शिक्षा प्रदान करने हेतु एक स्कूल का संचालन किया। जिसमें ना केवल शिक्षा बल्कि काफी-किताबें भी बच्चों को पिता की तरफ से निशुल्क वितरित की जाती थी। 

राज धरणी सागर साहित्य का एक अद्भुत कुंज थे। समय-समय पर अपनी लेखनी के माध्यम से जहां इन्होंने समाज को मार्ग प्रशस्त किया, वहीं शिक्षाविद् होने के नाते सेवानिवृति के बाद बच्चों को साक्षर बनाने के लिए निःशुल्क स्कूल चलाना इनका एक ऐतिहासिक व अद्भुत कदम था। सागर ने सेवानिवृति उपरांत मिले धन को अपने परिवार में ना लगाकर गरीब बच्चों को साक्षर करने में लगाया। राजकुमार धरणी ने अधिकांश सेवाकाल ग्रामीण आंचल में बिताया। 

कैबिनेट मंत्री कृष्ण बेदी ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी शामलाल धरणी के ज्येष्ठ सुपुत्र राजकुमार धरणी ने पानीपत, मलेर कोटला व अमृतसर में शिक्षा लेने के बाद 1966 में हरियाणा गठन के बाद हरियाणा के अंदर शिक्षा विभाग में बतौर एसएस मास्टर सरकारी नौकरी में कदम रखा था। वे पंजाब के अमर शहीद डॉ. काली चरण शर्मा के दोहते थे। राजकुमार धरणी जिनका साहित्यक नाम राज धरणी सागर रहा ने 40 के करीब उपन्यास लिखे जो विभिन्न दैनिक समाचार पत्रों में क्रमवार प्रकाशित होते रहे। सात हजार से अधिक समकालीन कविताएं, अनेकों आलेख लिखे, जो कि विभिन्न समाचार पत्रों मे प्रकाशित होते रहे। 

हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष हरविंद्र कल्याण ने कहा कि प्रसिद्ध साहित्यकार, लेखक, शिक्षक स्वर्गीय राज धरणी सागर समाज की एक अतुल्नीय धरोहर है। जीवन में अपने लिए कम और समाज के लिए शिक्षा, कलम व काव्य के माध्यम से अहम भूमिका अदा करने वाले स्वर्गीय सागर को आने वाली पीढ़िया याद रखेगी।


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Content Writer

Yakeen Kumar

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