लापरवाही: करोड़ों की लिथोट्रिप्सी मशीन को कुतर गए चूहे, बाहर से ठीक करने पहुंचे इंजीनियर भी दे गए जवाब

punjabkesari.in Wednesday, Dec 14, 2022 - 09:06 AM (IST)

कैथल (जयपाल) : करीब चार साल पहले सिविल अस्पताल में आई 3.41 करोड़ रुपए की लिथोट्रिप्सी (पथरी का लेजर से उपचार करने वाली) मशीन अब किसी काम की नहीं रही। अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के कारण इस मशीन को चूहों ने बुरी तरह से कुतर दिया है। मंगलवार को मशीन को ठीक करने के लिए इंजीनियर बुलाए गए थे लेकिन वह भी मशीन की हालत देखकर जवाब दे गए। 

इंजीनियर का कहना था कि यह मशीन बिल्कुल डैमेज हो चुकी है। इतना ही नहीं इंजीनियर ने यहां भी कहा कि कमाल है इतनी महंगी मशीन को संभालने की किसी को भी रिस्पांसबिलिटी नहीं दी गई। खास बात यह है जब इंजीनियर ने अस्पताल कर्मचारियों को बताया कि मशीन ठीक नहीं होगी तो कर्मचारी इंजीनियर के सामने मिन्नत कर रहे थे कि एक बार और चेक करके देख लो शायद ठीक हो जाए। वहीं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अब इस बड़ी लापरवाही पर पर्दा डालने में लगे हुए हैं। उनका कहना है कि मशीन ठीक हो जाएगी उसका एक पार्ट जर्मनी से आना है। 

फरवरी 2021 में खराब हुई थी मशीन, ठीक कराने को अब बुलाए इंजीनियर 


अस्पताल प्रबंधन ने लिथोट्रिप्सी मशीन के रखरखाव को कितनी लापरवाही बरती है। इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि यह मशीन फरवरी 2021 में खराब हो गई थी। बताया जा रहा है कि इस मशीन के एक पार्ट में दिक्कत आई थी। यदि समय रहते अस्पताल प्रबंधन इसे गंभीरता से लेता तो कम पैसे में इसको उसी समय दुरुस्त करवाया जा सकता है लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने इस तरफ ध्यान हीं नहीं दिया और मशीन को कमरा नंबर 229 में रखकर ताला लगा दिया। इसके बाद चूहों ने जो चाहा वहीं किया। जब इंजीनियर ने मशीन को खोला तो उसके अंदर चूहों द्वारा फैलाई गई गंदगी की भरमार मिली। जिससे देखकर साफ हो रहा था कि फरवरी 2021 के बाद किसी कर्मचारी या डॉक्टर ने भी मशीन को हाथ तक नहीं लगाया। 

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जानें क्यों खास है लिथोट्रिप्सी मशीन


लिथोट्रिप्सी मशीन से किडनी की पथरी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है। इन ध्वनि तरंगों को  हाई एनर्जी शेक  वेव या तरंग भी कहा जाता है। हाई एनर्जी शॉक वेव्स का उपयोग करके किडनी में पथरी का इलाज करने के लिए बिना सर्जरी के इलाज की तकनीक जिसमें पथरी को पथरी की धूल या छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है। जो पेशाब के रास्ते आसानी से बाहर निकल जाते हैं। यदि बड़े टुकड़े बचे रहते हैं तो एक उपचार और किया जाता है। यह तकनीक बिना चीर-फाड़ वाली प्रक्रिया है। जिसका मतलब है कि इसमें सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है। लेजर लिथोट्रिप्सी में किडनी की पथरी को तोडऩे के लिए लेजर तकनीक का उपयोग किया जाता है। खास बात यह है कि यह मशीन 30 एमएम तक की पथरी को बिना चीर फाड़ के ही निकाल सकती थी। इस पूरी प्रक्रिया में किसी तरह का दर्द मरीजों को नहीं होता है। जबकि पहले सर्जरी के द्वारा चिर फाड़ कर किडनी से पथरी को निकाला जाता था और इस  दौरान असहनीय दर्द भी मरीजों को झेलना पड़ता था।  

प्राइवेट अस्पतालों में हजारों रुपए करने पड़ते हैं खर्च 


लिथोट्रिप्सी मशीन से किडनी की पथरी का ऑपरेशन प्राइवेट अस्पतालों में कराने के लिए हजारों रुपए खर्च आता है लेकिन सरकारी अस्पताल में यह निशुल्क किया जा रहा था। इससे मरीजों को सीधे लाभ पहुंच रहा था। अब मशीन खराब होने के कारण मरीज दूसरे  जिलों व राज्यों के सरकारी अस्पताल में भी इलाज करवा रहे हैं। इसमें भी उनके रहने खाने और आने- जाने की व्यवस्था पर ही हजारों रुपए खर्च आ रहा है।

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बचाव के लिए 3 माह से 17 हजार प्रतिमाह खर्च रहा प्रबंधन 

सिविल अस्पताल में चूहों के आतंक से बचाव के लिए 3 माह पहले ही अस्पताल प्रबंधन की आंख खुली है। अब चूहे दूसरी मशीनों को न नुकसान पहुंचाए इससे बचाव के लिए प्रबंधन 3 माह से 17 हजार रुपए प्रति माह के हिसाब से खर्च कर रहा है। जहां-जहां चूहे नजर आते हैं वहां पर ग्लू पेपर लगाए गए हैं। इसके अलावा बिल्डिंग के आस पास जो भी चूहों के रहने व निकलने की जगह है उसको बंद कराया जा रहा है। इधर पीएमओ बोली मशीन ठीक हो जाएगी। मशीन का जो पार्ट खराब हुआ था, वह जर्मन से आना है। इंजीनियर मशीन चेक करके गए हैं। जल्द ही पार्ट आ जाएगा। इसके बाद मशीन ठीक हो जाएगी। 

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Content Writer

Manisha rana

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