टोल लाठीचार्ज मामले में रिपोर्ट सीलबंद, जब सरकार मांगेगी दे दूंगा: जस्टिस एस एन अग्रवाल

punjabkesari.in Wednesday, Jan 19, 2022 - 05:51 PM (IST)

चंडीगढ़( चंद्रशेखर धरणी): किसानों पर बसताड़ा करनाल में टोल के करीब लाठीचार्ज के बाद बने जस्टिस एस एन अग्रवाल ने हरियाणा सरकार द्वारा और योग भंग होने पर फिलहाल सरकार को रिपोर्ट नहीं सौंपी है। जस्टिस अग्रवाल का कहना है कि उन्होंने यह रिपोर्ट तैयार कर कर सील बंद लिफाफे में रख ली है जब सरकार मांग करेगी तो वह तुरंत सरकार के पास जमा करा देंगे। गौरतलब है कि किसानों द्वारा तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन की तीनों मांगे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मान लिए जाने के बाद किसानों का आंदोलन भी समाप्त हो गया था। उस स्थिति के अंदर बस ताड़ा करनाल मामले की जांच के लिए बने आयोग की कोई भूमिका नजर नहीं आती थी इसलिए सरकार ने यह आयोग बंद कर दिया था।

देश की आजादी के 75 साल अमृत महोत्सव को लेकर जो सरकार के द्वारा जगह-जगह कार्यक्रम किए जा रहे हैं वही अंग्रेजों के जमाने में काले पानी की सजा के नाम से 25 अंडमान निकोबार जेल का देश की आजादी के बाद सुधार करवाने में अहम रोल निभाने वाले सेवानिवृत्त जस्टिस एसएन अग्रवाल से कई मुद्दों पर बातचीत हुई।  अग्रवाल ने बताया कि वीर सावरकर को अंडमान की जीत जेल में बैरक के अंदर रखा गया था उसके साथ ही किसी भी सजायाफ्ता मुजरिम को फांसी देने की जगह भी बहुत ज्यादा दूर नहीं थी। उन्होंने बताया कि देश की आजादी की लड़ाई के दौरान पंजाब हरियाणा के बहुत सारे लोग अंडमान जेल के अंदर है। जिस पर उन्होंने पुस्तक भी लिखी है। आने वाले समय में वह जल्दी ही एक पुस्तक और देश के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले लोगों को लेकर जनता को समर्पित करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा देश की युवा पीढ़ी को देश के इतिहास की सही जानकारी देना हमारा दायित्व है।

जस्टिस एस एन अग्रवाल  मई 1990 में लॉ सेक्रेटरी के रूप में मैंने अंडमान निकोबार में ज्वाइन किया था। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा हालांकि सेल्यूलर जेल को बेशक नेशनल मेमोरियल घोषित कर दिया गया था। उसके बावजूद वहां वर्मा के पकड़े गए मछुआरे या यहां के कुछ अपराधी रखे जा रहे थे। लेकिन अक्टूबर 1990 के दौरान मैंने वहां एक कार्यक्रम में जीवित देशभक्तों या स्वर्ग सिधार चुके लोगों के पारिवारिक सदस्यों को बुलाया। जहां उन्होंने मुझ से अपील की कि जिस जेल में हिंदुस्तान के आजादी के लिए लड़ाई लड़ी गई। वहां आज शराबी नशेड़ीयों रखा जा रहा है। जो कि मुझे यह बात बहुत महसूस हुई। मैं अगले दिन कार्यालय में आया और नई जेल बनाने के लिए जगह बारे जानकारी ली। मैने लेफ्टिनेंट जनरल दयाल से टाइम लिया और मिलकर उन्हें सारी बात बताई। जनरल दयाल ने मुझे पूरी सपोर्ट दी और दो-तीन दिन बाद ही चीफ सेक्रेटरी उच्च अधिकारियों और इंजीनियरों को बुलाकर एक बैठक ली गई। जिसमें मुझे जेल बनाने के लिए फंड फाइनल कर दिया गया। मैंने इस जेल को वहां रहते हुए 2 साल में पूरा करवाकर मिस्टर दयाल से उसका उद्घाटन करवाया और सभी कैदी वहां शिफ्ट  किए।

जस्टिस एस एन अग्रवाल ने बताया कि  मैंने वहां रहकर यह महसूस किया कि देश भक्तों ने देश की आजादी के लिए इतनी यातनाएं सही, उन्होंने पशुओं जैसा व्यवहार सहा, अत्याचार हुए, लेकिन उनके बारे में कोई रिकॉर्ड नहीं पाया गया। मैंने इस बारे में काफी खोज की कि कौन किस बात के कारण पकड़ा गया ? किस तारीख को पकड़ा गया ?किसने कितनी यात्राएं सही ? जेल में किसने कितने बहादुरी के काम किए और वापस कब आए ? इसमें तीन स्टेज थी। पहली 1909 से 1914, दूसरी 1915 से 1921 और तीसरी 1932 से 1938 तक जिसमें शहीद भगत सिंह और 1911 में वीर सावरकर भी वहां कैद होकर गए थे। सबसे लंबे समय तक वीर सावरकर इस जेल में रहे और 1921 में वह बाहर आए। मैंने यह किताब अपने देश के बच्चों के लिए लिखी। हमारे देश के असली भक्तों की जानकारी सभी को होनी चाहिए। मैंने दी हीरो सेल्यूलर जेल लिखी। पहले पंजाबी यूनिवर्सिटी ने पब्लिश की। फिर सुधार करके रूपा के पास ले गया। उन्होंने भी इसे सुधार करके पब्लिश किया। 2006 में सेल्यूलर जेल बने पूरे 100 साल हो गए थे। लेफ्टिनेंट जनरल के सामने मैंने इस किताब को मार्च 2006 में रिलीज करवाया। उसमें कुछ गलतियां रह गई थी। फिर उन्हें ठीक करके 2007 को मैंने यह किताब लिखी।


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Content Writer

Isha

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