समरसता को धूल चटा जातिवाद के गणित में उलझा चुनाव!

punjabkesari.in Thursday, Oct 17, 2019 - 11:41 AM (IST)

डेस्कः सामाजिक समरसता के दावे करने वाले राजनीतिक दल अब अपने चुनावी मुद्दों को भुला कर अपने तरकश से अब जातिवाद का तीर निकाल रहे हैं। अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए कोई जाट और गैर जाट का मुद्दा उछाल रहा है तो कोई सोशल इंजीनियरिंग का दावा कर रहा है।

चुनाव प्रचार के आखरी दाव में जातीय नेताओं को प्रचार में झोंका जा रहा है। जातीय गणित के हिसाब से वोटों का गुणा भाग करने वाले उम्मीदवार मंच पर भले ही 36 बिरादरी की बात करें परंतु अतरंग बातचीत में अपनी बिरादरी की आन बान शान की लड़ाई बताते हैं।

समाजिक संगठन भी इसके दायरे से अछूते नहीं रहे, चुनाव प्रचार में कूदे गैर- राजनीतिक  संगठन के पदाधिकारियों की जातीय पृष्टभूमि और उनके कार्य- कलाप भी चुनावी राजनीति से जो? जा रहे हैं। उम्मीदवारों का स्वागत करने और समर्थन करने में जाति गत संगठनों का सहारा लिया जा रहा है। उम्मीदवार अपने वाहन का चालक और अपना सुरक्षाकर्मी का चयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि वह उनकी अपनी जाति का ही हो ताकि विश्वसनीयता व  गोपनीयता बनी रहे। ड्राइवर व सुरक्षाकर्मी के पास अंतरंग बातचीत का भेद भी रहता है।

सम्मानित करने गए थे ,अपमानित होकर लौटे! 
चुनाव के दिनों में सर्वमान्य छाप छोडऩे के लिए धार्मिक व सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों को मंच पर बुलाकर उनसे वरिष्ठ नेताओं का सम्मान कराया जाता है। अति सुरक्षा प्राप्त हस्तियों को इन धार्मिक और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से सम्मानित कराना कई बार कटु अनुभव छोड़ जाता है। एक प्रमुख नेता को सम्मानित करने के लिए इन संगठनों के प्रतिनिधि पगडय़िा लेकर मंच पर पहुंचे परंतु सुरक्षाकर्मियों ने स्वागत सूची में उनका नाम न होने के कारण उन्हें वहां से खदेड़ दिया। सुरक्षा के अपने मापदंड है और राजनीतिक लोकप्रियता दिखाने के अलग। पगडय़िा लिए यह लोग धक्के खाकर मंच से नीचे उतर आए। सम्मानित करने गए लोग अपमान   के कड़वे घूंट पीकर वापस लौटे। इतना ही नहीं आप बीती किसी को सुनाने की स्थिति में भी नहीं थे।


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Isha

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