हरियाणा पुलिस के सिपाही की एक दिन की गैरहाज़िरी पर 10 साल की वेतनवृद्धि रोकना अनुचित : HC

punjabkesari.in Wednesday, May 28, 2025 - 05:57 PM (IST)

चंडीगढ (चन्द्र शेखर धरणी ):  पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा पुलिस के सिपाही की एक दिन की ड्यूटी से गैरहाज़िरी पर 10 वार्षिक वेतनवृद्धि रोकने   की सज़ा को असंगत करार दिया है। जस्टिस  जगमोहन बंसल की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि यह दंड किसी भी प्रकार से अनुशासनहीनता के आरोप के अनुपात में नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।

इस प्रकरण में याचिकाकर्ता सत्यवीर सिंह हरियाणा पुलिस में सिपाही के पद पर कार्यरत थे और उन पर वर्ष 2015 में 24 घंटे और 20 मिनट तक ड्यूटी से अनुपस्थित रहने का आरोप था। इस आधार पर उनके विरुद्ध विभागीय जांच शुरू की गई, जिसमें उन्हें दोषी पाया गया। इसके पश्चात 23 जनवरी 2015 को पुलिस अधीक्षक, रेवाड़ी द्वारा उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

याचिकाकर्ता ने बर्खास्तगी के आदेश के विरुद्ध पुलिस महानिरीक्षक, रेवाड़ी के समक्ष अपील की। अपीलीय प्राधिकारी ने सेवा से बर्खास्तगी को अत्यधिक सज़ा मानते हुए उसे 10 वार्षिक वेतनवृद्धियों की स्थायी जब्ती में परिवर्तित कर दिया। इसके उपरांत याचिकाकर्ता ने पुलिस महानिदेशक के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसे यह कहकर खारिज कर दिया गया कि याचिका विलंब से दायर की गई है।

कोर्ट ने पाया कि नियम 16.2, पंजाब पुलिस नियमावली 1934 (जो हरियाणा राज्य में भी लागू है), के अनुसार किसी पुलिसकर्मी को केवल अत्यंत गंभीर कदाचार या निरंतर अनुशासनहीनता के कारण ही सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है। इसके साथ ही, सज़ा देते समय उस कर्मचारी की सेवा अवधि और पेंशन का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

जस्टिस  बंसल ने निर्णय में कहा कि यह स्थापित कानून का सिद्धांत है कि सज़ा आरोपित अपराध के अनुरूप होनी चाहिए। सज़ा का अनुपातिक सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि अनुशासनात्मक कार्रवाई न्यायसंगत और संतुलित हो।

अदालत ने यह भी नोट किया कि सुप्रीम कोर्ट कई बार यह स्पष्ट कर चुका है कि यदि कोई अदालत यह पाती है कि अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा दी गई सज़ा आरोपित अपराध के अनुपात में नहीं है, तो उसे मामले को पुनर्विचार के लिए संबंधित प्राधिकारी को भेज देना चाहिए।

हालांकि इस विशेष मामले में न्यायालय ने यह कहते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए वापस भेजने से इनकार कर दिया कि घटना को बीते 10 वर्ष हो चुके हैं और पुनः विचार से केवल अनावश्यक मुकदमेबाज़ी ही बढ़ेगी। न्यायालय ने यह भी कहा कि इस मामले में संबंधित प्राधिकारी द्वारा आदेश यांत्रिक रूप से पारित किए गए हैं और बिना पर्याप्त कारणों के पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई है। न्यायालय ने निर्णय दिया कि याचिकाकर्ता की सज़ा को कम करते हुए केवल एक वेतनवृद्धि की जब्ती  सीमित किया जाए।
 


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Content Writer

Isha

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