हरियाणा व पंजाब में मनरेगा के अंतर्गत मजदूरी दर कृषि मजदूरी दर से कम
punjabkesari.in Wednesday, Dec 25, 2019 - 10:09 AM (IST)

सिरसा (नवदीप) : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी साल भर में 100 दिन के काम की गारंटी देने वाली एक सरकारी स्कीम। कृषि के लिहाज से समृद्ध हरियाणा जैसे राज्य में यह योजना कामयाब नहीं हुई है। हरियाणा में पूरे देश में मनरेगा के अंतर्गत सर्वाधिक 284 रुपए प्रति दिवस मजदूरी दर है,पर खेती एवं दूसरे सैक्टरों में अकुशल श्रम में न्यूतनम मजदूरी दर 339 रुपए होने के चलते मनरेगा से लोग किनारा कर रहे हैं। यही वजह है कि कुल पंजीकृत परिवारों में से हर साल औसतन 2 फीसदी लोग भी 100 दिन की गारंटी पूरी नहीं कर रहे हैं।
साल 2007-08 से लेकर इस साल 20 दिसम्बर तक करीब 12 वर्षों में मनरेगा के अंतर्गत महज 1 लाख 2 हजार 845 परिवारों ने ही 100 दिन का रोजगार पूरा किया है। चालू वित्त वर्ष 2019-20 की बात करें तो इस योजना के अंतर्गत कुल 9 लाख 54 हजार 141 परिवार जबकि करीब 17 लाख 26 हजार 257 लोग पंजीकृत हैं। इनमें से केवल 2 लाख 50 हजार 834 ने काम मांगा जबकि केवल 1,298 परिवार ही 100 दिन की गारंटी सीमा तक पहुंचे हैं। मनरेगा को खेती संग न जोडऩे और न्यूनतम मजदूरी दर को बाजार दर के हिसाब से न करने का परिणाम है कि आज हरियाणा में मनरेगा से करीब 14 लाख 76 हजार 257 परिवार किनारा किए हुए हैं।
दरअसल 2 फरवरी 2006 को नारों के शोरगुल के बीच महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना शुरू की गई। इसका मकसद ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले मंझोले एवं गरीब परिवारों को रोजगार देना था। पहले चरण में 140 जिले शामिल किए गए और उसके बाद यह पूरे देश में लागू हो गई। कृषि दृष्टि से पंजाब व हरियाणा दूसरे राज्यों की तुलना में समृद्ध हैं। यही वजह है कि इन दोनों राज्यों में देश में सर्वाधिक कृषि मजदूरी है। हरियाणा में प्रति दिवस 339, जबकि पंजाब में 315 रुपए खेती मजदूरी दर है जबकि मनरेगा के अंतर्गत हरियाणा में 284 रुपए जबकि पंजाब में 241 रुपए मजदूरी दर है। विशेषज्ञों का कहना है कि पंजाब में करीब 42 लाख हैक्टेयर,जबकि हरियाणा में 37 लाख हैक्टेयर खेती योग्य भूमि है।
दोनों राज्यों में रबी सीजन में गेहूं,सरसों जबकि खरीफ सीजन में नरमा-कपास,धान की खेती होती है। इस तरह से दोनों ही राज्यों में खेती में सालभर में करीब 6 से 7 माह लेबर की दरकार बड़े पैमाने पर रहती है। इसके विपरीत मनरेगा में कुछ खास तरह के सरकारी कच्चे कार्यों के करवाने के चलते इस योजना के कार्य सिमट गए हैं। ऐसे में मनरेगा के अंतर्गत साल भर में 2 माह भी काम नहीं चलता है। ऐसे में मनरेगा से पंजीकृत लोगों को योजना के अंतर्गत काम नहीं मिलता है जिस वजह से इस योजना से जुड़े वर्कर्स अब किनारा करने लगे हैं। आॢथक परिपेक्ष्य के संदर्भ में आ रही अड़चन का कारण है कि मनरेगा के अंतर्गत अब तक पूरे हुए कार्यों एवं एक्टिव वर्कर्स के मामले में हरियाणा टॉप 20 राज्यों में भी नहीं है। हरियाणा में योजना के अंतर्गत कुल 17.26 लाख में से महज 2.50 लाख मनरेगा वर्कर्स ही सक्रिय हैं।
खेती संग न जोडऩे का है परिणाम
हरियाणा एक कृषि प्रधान राज्य है,यहां कृषि के लिहाज से साल भर काम की कमी नहीं रहती है। मजदूरी दर भी मनरेगा से अधिक है। ऐसे में मजदूरी अधिक होने एवं काम की कमी न होने की वजह है कि सरकारी योजना मनरेगा से लोगों ने किनारा किया हुआ है। सैंटर फॉर रूरल रिसर्च एंड इंडस्ट्रीयल डिपार्टमैंट भी कई बार केंद्र सरकार से हरियाणा में मनरेगा को खेती से जुड़े जाने की अनुशंसा कर चुके हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि पंजाब-हरियाणा में भवन निर्माण,अकुशल श्रम कार्यों में भी मजदूरी दर काफी अधिक है।
पंजाब में जहां अकुशल श्रमिक को 450 रुपए तो हरियाणा में भी करीब 400 से 425 के बीच प्रतिदिन मजदूरी दर मिलती है। यही वजह है कि बिहार, उत्तरप्रदेश से काफी संख्या में इन दोनों राज्यों में लेबर वर्ग के लोग आए हैं और यहां स्थायी ठिकाना भी बना लिया है। मनरेगा मजदूरी दर और कृषि एवं अकुशल क्षेत्र में मजदूरी दर में करीब 150 से 200 रुपए का अंतर आने के चलते भी मजदूर मनरेगा से किनारा किए हुए हैं। विशेषज्ञों की राय में हरित क्रांति में अन्न उत्पादन का कटोरा बनने वाले पंजाब एवं हरियाणा दोनों समृद्ध राज्य हैं।
खेती प्रधान इन दोनों राज्यों में खेतिहर दृष्टि से काम की बहुतायत है और मजदूरी दर भी 300 से 350 रुपए प्रतिदिन के करीब है। खास बात यह है कि इन दोनों राज्यों में ही इस समय बिहार व उत्तरप्रदेश के करीब 1 लाख से अधिक मजदूर काम में लगे हैं।