किरण चौधरी ने 4 दशक बाद कांग्रेस को कहा अलविदा, 5 बार की विधायक ने क्यों छोड़ी पार्टी ?
punjabkesari.in Wednesday, Jun 19, 2024 - 07:41 PM (IST)
डेस्कः आधुनिक हरियाणा के निर्माता कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी ने बेटी श्रुति के साथ कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। दिल्ली भाजपा मुख्यालय में किरण व श्रुति ने मुख्यमंत्री नायब सैनी और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल की मौजूदगी में भाजपा की सदस्यता ली। इसी के साथ कांग्रेस में किरण चौधरी के 40 वर्षीय लंबे राजनीतिक कैरियर का अंत हो गया। किरण चौधरी और श्रुति चौधरी ने बीते दिन अपना इस्तीफा मल्लिकार्जुन खरगे को भेजा था। इस्तीफे में उन्होंने लिखा कि हरियाणा में कांग्रेस व्यक्ति सेंट्रिक पार्टी हो गई है। उन्होंने बिना नाम लिए हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ओर इशारा किया। इसके साथ ही लिखा कि पार्टी व्यक्तिगत जागीर की तरह चलाई जा रही है। मेरे जैसे ईमानदार लोगों की पार्टी में कोई जगह नहीं है। मेरी आवाज दबाकर मुझे अपमानित किया गया। मेरे खिलाफ साजिशें रची गईं, हालांकि मेरा उद्देश्य हमेशा राज्य और देश के लोगों की सेवा करना रहा है।
40 साल का सफर मुखर अलोचना के साथ खत्म
किरण चौधरी के इस्तीफे में लिखे शब्दों से स्पष्ट है कि नाराजगी उनकी हुड्डा से थी। चौधरी और उनके कार्यकर्ताओं को वो राजनीतिक स्पेश नहीं मिल पा रहा था। जिसकी उम्मीद उन्हें थी। सर्वविदित है कि हरियाणा कांग्रेस 2 गुटों में बंटी हुई थी। एक गुट में कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी थीं, जिसको एसआरके गुट कहा जाता था। वहीं इसके समानांतर हुड्डा गुट में भूपेंद्र हुड्डा, दीपेंद्र हुड्डा व उदयभान हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस छोड़ने से पहले किरण चौधरी अपनी ही पार्टी और हुड्डा की मुखर आलोचना कर रहीं थी। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि हरियाणा में कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं है। इसके बाद से उनके कांग्रेस छोड़ने के कयास लगाए जा रहे थे। हालांकि इस बीच उन्होंने अगामी विधानसभा चुनाव के बाद कुमारी सैलजा को सीएम बनाने की पैरवी भी की थी। कुमारी सैलजा और किरण चौधरी में काफी अच्छे संबंध हैं, इसलिए लग रहा था वह कांग्रेस में रह सकती हैं।
2019 में शुरु हुई थी किरण और हुड्डा में राजनीतिक अदावत
हुड्डा और किरण चौधरी के बीच राजनीतिक अदावत 2019 में शुरु हुई थी, समय के साथ इस अदावत ने गुटबाजी का रूप ले लिया। गुटबाजी का नतीजा रहा कि किरण ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक राज्यसभा चुनाव के दौरान ही किरण के कांग्रेस छोड़ने के अटकल बाजियां शुरु हो गईं थी। दरअसल जून 2022 में हरियाणा से कांग्रेस ने अजय माकन को राज्यसभा के चुनावी मैदान में उतारा था। इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी कार्तिकेय शर्मा जीत गए और अजय माकन मात्र एक वोट हार गए। इस हार का ठीकरा हुड्डा गुट ने किरण चौधरी पर फोड़ा था। हुड्डा गुट ने किरण चौधरी पर ही क्रास वोटिंग के आरोप मढ़े थे। इसके बाद लग रहा था कि अब किरण जल्द ही भाजपा ज्वाइन करेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसका कारण लोकसभा चुनाव 2024 बताया गया, चौधरी को उम्मीद थी की बेटी श्रुति को भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा से टिकट मिलेगा। अंत समय में यह संभव नहीं हो पाया। जिसके कारण किरण चौधरी की नाराजगी और बढ़ गई।
भिवानी में भीतरघात का आरोप
2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की लहर दिखाई दे रही थी। हालांकि हिरयाणा में भाजपा और कांग्रेस के बीच मैच टाई रहा, दोनों पार्टियों के 5-5 उम्मीदवार जीते, लेकिन कांग्रेस को इससे ज्यादा की उम्मीद थी। किरण चौधरी की होल्ड वाली सीट भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा में कांग्रेस हार गई और मामूली अंतर से भाजपा प्रत्याशी धर्मबीर सिंह चुनाव जीत गए। इस दौरान भी भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी राव दान सिंह ने किरण और श्रुति चौधरी पर भीतरघात के आरोप लगाए। रावदान सिंह के आरोपों पर पलटवार करते हुए किरण चौधरी ने कहा कि हमें बार-बार अपमानित किया। चुनाव के दौरान पार्टी के कार्यक्रमों में न बुलाया जाता था और न ही कोई जानकारी दी जाती थी। स्वयं फोन करती थी तो इग्नोर कर दिया जाता था। मेरा फोन तक नहीं उठाया जाता था।
भाजपा के जरिए रानीतिक विरासत बचाने की कोशिश
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गांधी परिवार तक सीधे किरण चौधरी की पहुंच है। इसके बावजूद भी हुड्डा के राजनीतिक दांव पेंच के सामने किरण समेत पूरा एसआरके गुट पस्त नजर आया। हंलाकि चौधरी ने राहुल गांधी के सामने अपनी नाराजगी जताई थी, लेकिन बात नहीं बन सकी। दरअसल सियासी गलियारों में हुड्डा को लेकर चर्चा आम है कि कांग्रेस आलाकमान ने हुड्डा को हरियाणा में फ्री हैंड दे रखा है। हरियाणा में कांग्रेस के सभी फैंसले भूपेंद्र हुड्डा लेंगे और लोकसभा चुनाव के टिकट वितरण में यह स्पष्ट भी हो गया कि हुड्डा ही सभी फैंसले ले रहें हैं।
लोकसभा चुनाव में श्रुति को टिकट न मिलने से किरण चौधरी असमंजस में फंस गईं थी। जिनके कंधों पर बंसी लाल की राजनीतिक लेगेसी को बढ़ाने की जिम्मेदारी थी वह मात्र तोशाम विधानसभा तक सिमट गईं थीं। ऐसे में उनके सामने अपने ससुर पूर्व मुख्यमंत्री बंसी लाल और पति सुरेंद्र चौधरी की राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौती थी। अगामी विधानसभा चुनाव में किरण और श्रुति चौधरी को अपना राजनीतिक भविष्य नहीं दिखाई दे रहा था इसलिए उन्होंने 40 साल बाद कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा का साथ देने का फैंसला लिया। गौरतलब है कि किरण के भाजपा में आने से दादरी, भिवानी और महेंद्रगढ़ में भाजपा को मजबूती मिलेगी।
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