कर्मयोगी कृष्ण में मिलेगा जीवन पर आधारित हर सवाल का जवाब, कर्म और नियत की भी दी जानकारी !
punjabkesari.in Friday, Aug 23, 2024 - 05:08 PM (IST)
चंडीगढ़ (चंद्रशेखर धरणी): भागवत गीता के उपदेश को जीवन में अमल करने की नसीहत हर कोई देता है। भागवत गीता में इंसान के जीवन की पूरी सच्चाई छिपी हुई है। गीता में बताया गया है कि जीवन का आधार कर्म है और कर्म की सिद्घि केवल कर्तव्य पालन के मार्ग से होकर ही गुजरती है। कर्महीन और कर्त्तव्य विमुख व्यक्ति कभी धर्मात्मा नहीं हो सकता है। इस उपदेश को श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित नव संकलित पुस्तक ‘कर्मयोगी कृष्ण’ में सहेजा गया है।
लेखक ने बताया है कि श्रीकृष्ण कहते हैं कि तीनों लोकों में मेरे लिए कोई भी कर्म नियत नही है अर्थात् करने योग्य नही है, न मुझे किसी वस्तु का अभाव है और न ही आवश्यकता है, फिर भी निष्फल भाव से कर्म करता हूँ। इसी को आधार बनाकर लेखक ने इस उत्कृष्ट पुस्तक की रचना की है। पुस्तक में श्रीकृष्ण की जीवनशैली को प्रदर्शित करने के लिए विषय-वस्तु को 244 पृष्ठों पर ग्यारह अध्यायों में विभक्त किया गया है। इसमें लगभग 130 मंत्र, श्लोक एवं सूक्तियां तथा पुस्तक को समझने में सहायक आठ आलेख दिए हैं। पुस्तक का पहला अध्याय ‘श्रीकृष्ण की वशांवली’, दूसरे व तीसरे अध्याय में उनके शैशवकाल की प्रमुख घटनाएं तथा अध्याय चार में गोपी प्रकरण व कंस वध का विवरण दिया है। पुस्तक के पाँचवें अध्याय में श्रीकृष्ण द्वारा महर्षि सांदीपनी एवं अन्य ऋषि आश्रमों में ग्रहण की गई ‘शिक्षाओं तथा वैज्ञानिक उपलब्धियों’ का वर्णन किया गया है। यह अध्याय अनेक दिव्य अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञान तथा सुदर्शन चक्र, सौमधुक, मौनधुक, सौकिक यान एवं सोमतीति रेखा का अन्वेषण श्रीकृष्ण की महानता का परिचय देता हैं।
इसके छठे अध्याय में ‘द्वारका की अवधारणा’ तथा श्रीकृष्ण की दिनचर्या को प्रदर्शित करने वाला सातवां अध्याय ‘दैनंदिनी विमर्श’ दिया है। पुस्तक के आठवें अध्याय में महाराज युधिष्ठिर के ‘राजसूय में कृष्णनीति’ तथा नौवें अध्याय में ‘श्रीकृष्ण का तात्त्विक संप्रेषण’ पर विस्तार से उल्लेख है। जैसा कि माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण एक उत्कृष्ट एवं प्रभावी वाक्चार्तुय एवं वाक्माधुर्य से धनी थे, जिसका प्रत्यक्ष दर्शन पुस्तक में करवाया गया है। इसके साथ ही दसवें अध्याय में ‘जय में श्रीकृष्ण नीति’ तथा अन्तिम ग्यारहवें अध्याय में ‘महां-भारत में श्रीकृष्ण के महां-प्रस्थान’ का वर्णन किया है। पुस्तक में श्रीकृष्ण के यौगिक बल, दिव्य उपलब्धियां, उत्कृष्ट वैज्ञानिकता, महान तत्त्ववेत्ता, जनार्दन एवं ब्रह्मवेत्ता के तौर पर परिचय करवाया गया हैं। इसके साथ ही अकल्पनीय श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े अनेक ऐसे तथ्यों को प्रस्तुत किया गया है, जिनको पढक़र विशेषकर नई पीढ़ी में विशेष आभा का संचार होगा। श्रीकृष्ण के महानिर्वाण की घटना का प्रस्तुतिकरण बड़ा ही मार्मिक एवं पाठक को शुन्य की अवस्था में ले जाने वाला है कि किस प्रकार श्रीकृष्ण के सामने ही यदुवंश और उनके पुत्र-पौत्रों की हत्या की गई। परन्तु वे लेशमात्र भी अपने धर्म एवं कर्म से विमुख नही हुए।
पुस्तक के लेखक कृष्ण कुमार ‘आर्य’ है, जो हरियाणा सरकार में जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। उनका कहना है कि पुस्तक को पूर्ण करने में लगभग 40 माह का समय लगा। पुस्तक में महाभारत, गर्ग संहिता, वैदिक साहित्य, उपनिषद्, श्रीमद्भगवत गीता तथा जैन साहित्य सहित लगभग दो दर्जन पुस्तकों के संदर्भ सम्मिलित किए गए हैं। लेखक द्वारा पृष्ठ सज्जा अति सुन्दर एवं मनभावनी की गई है, जिस पर भगवान श्रीकृष्ण का योगमुद्रा में चित्र लगाया गया है तथा अन्तिम पृष्ठ पर लेखक का परिचय दिया है। पुस्तक सतलुज प्रकाशन द्वारा पंचकूला से प्रकाशित की है।
श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित प्राप्त पुस्तकों में इतनी सहज और संकलित जीवनचर्या कहीं नहीं दिखाई देती है। उनके जीवन से जुड़े रहस्यों की जानकारी महाभारत युद्घ काल के दौरान की ही मिलती है, जिससे उनके जीवन का वास्तविक अवलोकन नही हो पाता है। पुस्तक का पाँचवा एवं सातवाँ अध्याय अद्भूत है, जो श्रीकृष्ण को भगवान एवं योगेश्वर श्रीकृष्ण होने का परिचय देते हैं तथा इसके बाद के अध्याय श्रीकृष्ण की महानता के दिव्य दर्शन करवाते हैं। पुस्तक लेखन में कमियों को भी खोजने का प्रयास किया गया। परन्तु एक पाठक के तौर पर यह पुस्तक अति गंभीर है। इसकी भाषा थोडी कठिन तथा शैली सरल एवं अनौखी है। पुस्तक में किए गए शब्दों का प्रयोग श्रीकृष्ण के जीवन की प्राचीनता का परिचय करवाते हैं। इसलिए मैं इसे एक उत्कृष्ट कृति मानता हूं, जो पाठकों को भगवान श्रीकृष्ण के सही जीवन को सही दृष्टि से समझने में सहायक होगी।