अनिल विज ने पूरा जीवन RSS की विचारधारा पर चलते हुए की राजनीति
punjabkesari.in Thursday, Oct 02, 2025 - 05:56 PM (IST)

चंडीगढ (चन्द्र शेखर धरणी) : निर्दलीय विधायक होते हुए बंसीलाल, चोटाला के शाशन में मंत्री पद ठुकरा चुके अनिल विज को भजपा में ही 14 वर्ष का बनवास काटना पड़ा। हरियाणा में भजपा के दमदार मंत्री अनिल विज का कहना है कि आर एस एस के नेताओं के आदेशों को बेकसूर होते मानने के साथ-साथ कभी भी किसी अन्य दल के प्रलोभन में नही आया।अनिल विज ने पूरा जीवन आर एस एस की विचारधारा पर चलते हुए राजनीति की।कभी टस से मस नहीं हुए।
अनिल विज 1969-70 में अपने छात्र जीवन के दौरान प्रोफेसर गोपाल कृष्ण (करनाल के तत्कालीन संघ संचालक) के संपर्क में आने के बाद उनके साथ पहली बा शाखा में गए। देश के प्रति समर्पित भावना को देखते हुए विज को उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के महामंत्री की जिम्मेदारी एसडी कॉलेज के लिए सौंप दी। 1974 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी लगने तक वह हिंदू परिषद- भारत विकास परिषद और मजदूर संघ की गतिविधियों में पूरी तरह से सक्रिय हो चुके थे। नौकरी के बावजूद विज बैंक से छुट्टी लेकर भी आरएसएस- एबीवीपी और जनसंघ में बिना कोई पद लिए लगाई गई जिम्मेदारियों का ना केवल निर्वहन करते थे, बल्कि हर कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर उनकी भागीदारी दिखने लगी थी।
संघ के वरिष्ठ नेताओं के लाख कहने के बावजूद भी विज नौकरी छोड़ने को नहीं थे तैयार
एमरजैंसी के बुरे वक्त के बाद अंबाला सीट से पार्टी के लोकसभा उम्मीदवार को चुनाव जिताने के लिए विज ने 1 माह की छुट्टी लेकर पूरी भागीदारी निभाई और इसी तरह 1987 मेंं अंबाला छावनी से चुनाव लड़ रही सुषमा स्वराज को जिताने में भी विज की भूमिका बेहद अहम दर्ज हुई। लेकिन 1990 में पार्टी ने विधायक सुषमा स्वराज को राज्यसभा में भेजने का फैसला ले लिया और अंबाला छावनी की सीट खाली होने के कारण वहां उपचुनाव घोषित कर दिया गया। उस दौरान 1987 से 1990 तक देवीलाल की पार्टी के साथ जनसंघ गठबंधन था जो कि वह 1990 में टूट गया। इस उपचुनाव को लेकर हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने जनसंघ के उस समय बने नेता डॉ मंगलसेन को चैलेंज किया कि बिना उनकी मदद से चुनाव जीतना संभव ही नहीं है। विज को तब राज्यसभा में पहुंची सुषमा स्वराज ने उन्हें चुनाव लड़ने की बात कही। लेकिन उन्होंने नौकरी का हवाला देते हुए ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। क्योंकि नौकरी करते 17 वर्ष बीत चुके थे और पेंशन लगने की उम्मीद के चलते वह चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। इसके बाद जनसंघ के वरिष्ठ राष्ट्रीय नेताओं केएल शर्मा (कृष्ण लाल), मदन लाल खुराना के बार बार कहने पर भी अनिल विज नौकरी छोड़ कर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुए।
विज को उपचुनाव से 2 दिन पहले जनसंघ के ऑफिस सेक्रेटरी गुलशन भाटिया ने उन्हें बुलाया और अपने साथ लेकर रोहतक ले गए। उस दौरान विज के साथ पार्टी के दो वरिष्ठ कार्यकर्ता सोम चोपड़ा और जगदीश गोयल भी थे और वह मंगल सेन के घर पहुंचे। जहां पहले से ही जनसंघ और आरएसएस के बड़े नेता मौजूद थे। लेकिन वहां भी विज चुनाव ना लड़ने की पैरवी करते रहे। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक उच्चाधिकारी ने जब विज को बड़ी उम्मीद और अधिकार के भाव से कहा कि "बहुत सुन ली तुम्हारी बातें- सुबह बैंक से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ो" तो विज ने आर एस एस के आदेश को मना नहीं कर पाए और अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत उस पहले उपचुनाव से कर डाली। उस दौरान ताजा-ताजा महमकांड प्रदेशवासियों के दिलों में खौफ बिठाए हुए था। ग्रीन ब्रिगेड के आतंक से लोग पीड़ित थे। प्रदेश भर में माहौल खराब था। आम व्यक्ति डरा- सहमा था। उन्होंने उपचुनाव लड़ा और जनता के आशीर्वाद से वह चुनाव जीत गए। उससे पहले सत्ता पक्ष ही उप चुनाव जीतती है ऐसी मान्यता थी। विज ने इस रिकॉर्ड को तोड़ते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। अनिल विज के इलेक्ट्रॉन राजनीतिक जीवन की शुरुआत इस चुनाव से हुई। लेकिन मात्र 9 माह के बाद हुए प्रदेश में आम चुनावों के दौरान विज हार गए। लेकिन अब विज संगठनात्मक रूप से पूरी तरह से सक्रिय हो गए और पार्टी द्वारा दी गई जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करते गए उनकी वफादारी और काबिल सोच के चलते पार्टी ने उन्हें युवा मोर्चा अध्यक्ष के रूप में बड़ी जिम्मेदारी सौंप डाली।