विश्व पर्यावरण दिवस: ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से जूझती धरती का संकट : राजीव आचार्य
punjabkesari.in Sunday, Jun 02, 2024 - 07:13 PM (IST)
गुड़गांव, ब्यूरो : हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमारी प्रिय धरती और उसके नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों के महत्व को याद दिलाने का अवसर है। इस साल, यह दिवस "केवल एक धरती" थीम के तहत मनाया जा रहा है, जो पृथ्वी को ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल देता है।
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन: एक गंभीर खतरा
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन आज दुनिया के सामने सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक हैं। मानव गतिविधियों, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, के कारण पृथ्वी का तापमान अभूतपूर्व गति से बढ़ रहा है। राजीव आचार्य कहते है कि विशेषज्ञों का कहना है कि औद्योगिक क्रांति के बाद से अब तक पृथ्वी का वैश्विक औसत तापमान लगभग 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। यह माना जाता है कि यह वृद्धि भले ही मामूली लगती हो, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
परिणामों का जाल:
● चरम मौसम की घटनाएं: ग्लोबल वार्मिंग के कारण चरम मौसम की घटनाएं, जैसे कि तूफान, बाढ़, सूखा, और जंगल की आग, अधिक बार और तीव्र हो रही हैं। ये घटनाएं गंभीर तबाही मचाती हैं, जिससे जानमाल का भारी नुकसान होता है और अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचता है।
● समुद्र का बढ़ता स्तर: गर्म होते महासागरों के कारण थर्मल विस्तार हो रहा है और ग्लेशियरों तथा बर्फ की चादरों का पिघलना समुद्र के जल स्तर को बढ़ा रहा है। इससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और कटाव का खतरा बढ़ जाता है, जो लाखों लोगों के जीवन और आजीविका को खतरे में डालता है।
● जैव विविधता का ह्रास: ग्लोबल वार्मिंग जलवायु को बदल रही है, जिससे कई प्रजातियां अपने आवासों के अनुकूल नहीं रह पातीं। इससे जैव विविधता का ह्रास होता है, जो पारिस्थितिक तंत्रों के संतुलन को बिगाड़ देता है और खाद्य सुरक्षा को भी खतरा पहुंचाता है।
● खाद्य सुरक्षा: जलवायु परिवर्तन से कृषि पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। अनियमित वर्षा पैटर्न, तापमान में वृद्धि और चरम मौसम की घटनाएं फसलों की पैदावार कम कर रही हैं।
हमारी भूल :
प्लास्टिक युग में जीने की खतरनाक भूल
राजीव आचार्य* कहते है कि मानव पाषाण युग , लौह युग , हिमयुग , ताम्र युग आदि में रह चुका है और अब वह प्लास्टिक युग* में जी रहा है । आज हमारे जीवन का कोई भी हिस्सा ऐसा नही है जो प्लास्टिक से अछूता हो । सुबह उठकर ब्रश करने से लेकर रात को नाइट बल्ब का स्विच ऑफ करने तक सभी प्लास्टिक से जुड न गया हो ।
प्लास्टिक एक स्लो पॉइजन है* जो हमारे पर्यावरण के साथ साथ मानव शरीर को भी धीरे धीरे अपनी चपेट में ले रहा है । यह कितना खतरनाक है इसका अंदाजा *जर्नल इन्वायरमेंट हेल्थ पर्सपक्टिवेस* में प्रकाशित एक रिपोर्ट से समझा जा सकता है जिसके अनुसार माइक्रोप्लास्टिक मानव शरीर में घुसकर ह्रदय , ब्रेन , लीवर संबंधी गंभीर बीमारियां पैदा कर रहे है । माइक्रोप्लास्टिक ब्रेन और ह्रदय की धमनियों में ब्लाकेज बना रहे है जो अत्यंत खतरनाक है । यही कारण है कि आज समूचा विश्व प्लास्टिक से निजात पाने की कोशिश कर रहा है । राजीव आचार्य के अनुसार *" वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम* " की एक रिपोर्ट के अनुसार समूचे विश्व की तेल खपत का 4 से 8 प्रतिशत सीधे प्लास्टिक से जुड़ा है और यह निर्भरता 2050 तक 20 प्रतिशत तक होने की संभावना है ।
जल का निरंतर दोहन
मनुष्य के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जल संसाधनों की रक्षा करना बहुत ही आवश्यक है। प्राकृतिक संस्थानों का संरक्षण ऐतिहासिक रूप से भारतीय जीवन शैली का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा है ।राजीव आचार्य के अनुसार भारतीय वैदिक संस्कृति प्रारंभ से ही जल की महत्ता का गुणगान करती रही है । वेदो की ऋचाये जल को सृष्टि का कारक कहती है और जल को हर दशा में बचाने का संदेश देती हैं ।परंतु पिछले के कुछ दशकों में देश में औद्योगिकीकरण, जनसंख्या के बढ़ते दबाव और शहरों के अनियोजित विकास से बड़ी मात्रा में जल संसाधनों का क्षरण हुआ है। वर्ष 1950 में देश में पानी प्रति व्यक्ति लगभग 5100 किलोलीटर प्रति वर्ष उपलब्ध था जो आज घटकर 1450 किलोलीटर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष रह गया है । हम वर्ष 2011 से जल की कमी वाले देश में गिनती करा चुके है ।ऐसे में भविष्य में शहरों में जल की मांग काफी बढ़ सकती है, अतः वर्तमान चुनौतियों से सीख लेते हुए हमें जल के सदुपयोग और संरक्षण पर विशेष ध्यान देना होगा। साथ ही सरकार की योजनाओं के अतिरिक्त औद्योगिक क्षेत्र, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अन्य हितधारकों को सामूहिक रूप से इस अभियान में अपना योगदान देना होगा, जिससे भविष्य में आने वाली जल संकट की चुनौती को कम किया जा सके।
वनों का तेजी से कटाव
बेहिसाब पेड़ों का कटान और लगातार सिकुड़ते जंगलों को वजह से आक्सीजन की कमी हो रही है और कार्बनडाईआक्साइड की मात्रा में वृद्धि हो रही है । डेटा एग्रीगेटर आवर वर्ल्ड इन डाटा के नाम से जारी एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए राजीव आचार्य बताते है कि 1990 से 2000 के बीच 384000 हेक्टेयर जंगल गायब हो गए और 2015 से 2020 के बीच यह आंकड़ा 668400 हेक्टेयर हो गया।
5वीं पर्यावरण रिपोर्ट: एक चेतावनी भरी पुकार
हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की 5वीं पर्यावरण रिपोर्ट ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में एक चेतावनी भरी पुकार है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर पर हैं, और यदि हमने कार्रवाई नहीं की, तो पृथ्वी का तापमान 2100 तक 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
इसके विनाशकारी परिणाम होंगे, जिसमें समुद्र का स्तर 1 मीटर तक बढ़ सकता है, और लाखों लोग विस्थापित हो सकते हैं। रिपोर्ट जलवायु कार्रवाई में तेजी लाने की आवश्यकता पर बल देती है। रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में औसत तापमान में 2023 में 1.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों का सामना करना आवश्यक हो गया है। विश्व पर्यावरण दिवस हमें पृथ्वी के लिए अपनी जिम्मेदारी याद दिलाता है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के खतरे वास्तविक हैं और उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हमें तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए और व्यक्तिगत, सामूहिक और नीतिगत स्तर पर सकारात्मक बदलाव लाने चाहिए।
हम क्या कर सकते है :
1 – जितने पानी की आवश्यकता हो उतना ही पानी का प्रयोग करें ।
2 – सिंचाई के लिए नई तकनीकी जैसे माइक्रो इरिगेशन , ड्रोन इरिगेशन , फर्टीगशन मैथड का प्रयोग करे जिससे पानी की बचत हो सके ।
3— घरों में अनिवार्य रूप से वाटर हार्वेस्टिंग का प्रयोग करे ।
4 –. सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग बिलकुल न करे , और ऐसी कंपनियों को बढ़ावा दे जो प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करती हो । प्लास्टिक को पानी में बिलकुल न फेंके । उसे ऐसी कंपनियों को दे जो रिसायकिल करती हों ।
5– अधिक से अधिक पौधे लगाए ।
6 – ऐसे समूहों से जुड़े जो पर्यावरण के लिए कार्य करते हैं।
आइए मिलकर ‘केवल एक धरती’ को बचाने के लिए काम करें, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और रहने योग्य बनी रहे।