SYL पर टकराव के 57 साल, पंजाब ने 7 और हरियाणा ने 5 बार अपनी विधानसभा में पास किया प्रस्ताव
punjabkesari.in Friday, Jan 06, 2023 - 09:06 PM (IST)
स्पेशल डेस्क(रवि प्रताप सिंह): हरियाणा-पंजाब के बीच सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) को लेकर बुधवार को दिल्ली में हुई तीसरी बैठक भी बेनतीजा रही। ये बैठक केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हुई थी। लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि वह हरियाणा को एक बूंद भी पानी नहीं देंगे। 57 वर्षों से हरियाणा-पंजाब एसवाईएल को लेकर टकराव की स्थिति बनी हुई है। 57 वर्षों में एसवाईएल पर पंजाब ने सात बार ( वर्ष 1967, 1970, 1978, 1986, 2014) और हरियाणा ने वर्ष 2000 से अब तक 5 बार अपनी विधानसभा में प्रस्ताव पास किए हैं। सतलुज यमुना लिंक नहर बनाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में भी चला और कोर्ट ने पंजाब सरकार को नहर बनाने के आदेश भी जारी कर दिए। लेकिन पंजाब ने नहर बनाने के बजाय नहर पाट दी और विधानसभा में प्रस्ताव पास कर जमीनें भी किसानों को लौटा दी। राजनीतिक कारणों के चलते अब तक ये विवाद बना हुआ है। आइए जानते हैं।

राजस्थान, अविभाजित पंजाब और जम्मू-कश्मीर में जल बंटवारा
हरियाणा बनने से एक दशक पहले रावी और ब्यास नदी के जल बहाव का आकलन किया गया था। इस आकलन में पाया गया कि प्रतिवर्ष रावी-ब्यास नदी में जल बहाव 15.85 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) है। केंद्र सरकार ने इस आकलन के आधार पर वर्ष 1955 में राजस्थान, अविभाजित पंजाब और जम्मू-कश्मीर के जल बंटवारा कर दिया। इस बंटवारे के मुताबिक, राजस्थान को प्रति वर्ष 8 एमएएफ, अविभाजित पंजाब को 7.20 एमएएफ और जम्मू-कश्मीर को 0.65 एमएएफ प्रति वर्ष देना तय हुआ। इसके बाद 1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा एक नया प्रदेश बना। इसके बाद केंद्र सरकार ने पंजाब के हिस्से में आने वाले 7.20 एमएएफ पानी में से हरियाणा को 3.5 एमएएफ आवंटित करने की अधिसूचना जारी की। लेकिन पंजाब सरकार ने इस संबंध में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाए। वर्ष 1981 में दोबारा रावी-ब्यास नदी का मूल्यांकन किया गया। इस बार बढ़े हुए 17.17 एमएएफ में से पंजाब को 4.22 एमएएफ, हरियाणा को 3.5 एमएएफ और राजस्थान को 8.6 एमएएफ देना तय हुआ।

इंदिरा गांधी और लोंगोवाल के बीच बनी सहमति
आवंटित हुआ पानी हरियाणा को मिले, इसलिए 8 अप्रैल, 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पटियाला (पंजाब) के कपूरी गांव में भव्य समारोह के साथ एसवाईएल नहर के निर्माण का शुभारंभ किया। 214 किलोमीटर में से 122 किलोमीटर पंजाब में और 92 किलोमीटर नहर का निर्माण हरियाणा में होना था। लेकिन पंजाब में अकालियों ने नहर के निर्माण का विरोध शुरू कर दिया और कपूरी मोर्चा बनाया। इसके बाद वर्ष 1985 में पीएम इंदिरा गांधी और अकाली दल प्रमुख संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच पानी के आकलन करने के लिए एक नए न्यायाधिकरण (न्यू ट्रिब्यूनल) बनाने पर सहमति हुई।
ईराडी ट्रिब्यूनल ने पंजाब को 5 एमएएफ देने की सिफारिश की
सुप्रीम कोर्ट के जज वी बालकृष्णना ईराडी के नेतृत्व में ईराड़ी ट्रिब्यूनल का गठन किया गया। ट्रिब्यूनल ने वर्ष 1987 में पंजाब को 4.22 एमएएफ से बढ़ाकर 5 एमएएफ देने की सिफारिश की। वहीं, हरियाणा को पंजाब से 3.83 एमएएफ पानी देने को कहा गया।

लोंगोवाल की हत्या और उग्रवाद
लोगोंवाल और गांधी के बीच हुए समझौते के एक महीने के भीतर ही 20 अगस्त 1985 को आतंकवादियों ने लोंगोवाल की हत्या कर दी। इसके बाद वर्ष 1990 में नहर निर्माण के काम में लगे चीफ इंजीनियर एमएल सेकरी और एक सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर अवतार सिंह औलख को मार दिया गया। वहीं, इसके अलावा रोपड़ के पास मजात गांव में भी मजदूरों की हत्या कर दी गई। इन हत्याओं के बाद नहर निर्माण का काम थम गया। इन घटनाओं के चलते पंजाब के नेता केंद्र सरकार को सचेत किया और इस मुद्दे को दोबारा न उठाने की सलाह दी।
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