संघर्ष के दौर में लगी लाठियों की पीड़ा आज भी सहन करने को मजबूर हैं अनिल विज

punjabkesari.in Sunday, Feb 19, 2023 - 05:02 PM (IST)

चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): प्रदेश के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज पीजीआई के चिकित्सकों की राय पर आजकल कंप्लीट रेस्ट पर हैं। करीब 1 साल से अनिल विज सिर दर्द की वजह से काफी परेशान चल रहे थे। पीजीआई के चिकित्सकों ने उनके सिर पर बनी 2 से 3 सिस्ट को एक सफल ऑपरेशन के बाद निकाल दिया है। सिर पर यह सिस्ट कैसे बनी, इसका कारण चिकित्सकों ने भी अनिल विज से काफी पूछना चाहा। लेकिन वह बार-बार इस बारे कोई विचार साझा करने से परहेज करते नजर आए। दरअसल प्रदेश के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री लंबे समय तक कई आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं और सरकार की गलत नीतियों के विरोध में कई बार पुलिस के लाठीचार्ज के भी शिकार बनते रहे हैं। यह सिस्ट चिकित्सकों के अनुसार कहीं ना कहीं किसी सिर पर लाठी लगने का परिणाम हो सकता है।

 

 

 

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कोविड काल में अस्वस्थ होने के बावजूद भी आक्सीजन सिलेंडर लगाकर ऑफिस में किया काम

 

अनिल विज कोविड काल में अस्वस्थ होने के बाद भी ऑफिस में आक्सीजन सिलेंडर लगाकर काम किया। उन्होंने किसी हालत में सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ी है।

 

आडवाणी और पुलिस के बीच दीवार बन विज ने खाई थी लाठियां

 

बता दें कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद ध्वस्त होने के बाद 1991 में भाजपा नेताओं को तत्कालीन सरकार द्वारा पूरी तरह से नजरबंद किया जा रहा था तथा उस दौरान जनसंघ द्वारा किए जाने वाले किसी भी प्रदर्शन या जनसभा पर पूरी तरह से अघोषित रोक भी लगी हुई थी। मौजूदा गृह-स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज उस दौरान भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश युवा मोर्चा के प्रधान थे और सरकार की गलत नीतियों के उनकी भूमिका बेहद प्रभावी दर्ज की जाती थी। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने दिल्ली में उस दौरान सरकार के खिलाफ एक विशाल रैली के आयोजन की रूपरेखा तैयार की, जिसमें सभी नेताओं ने गिरफ्तारी भी देनी थी। इस रैली के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी पर जब पुलिस ने लाठीचार्ज करना चाहा तो अनिल विज उनके आगे दीवार बनकर खड़े हो गए। जिस पर पुलिस ने बड़ी बेरहमी से उनके

सिर- टांगों और पीठ पर वार किए, जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए थे। ऐसा नहीं कि उन पर पुलिस द्वारा प्रहार करने की कोई यह पहली और आखिरी घटना रही थी। समय-समय पर उनकी उपस्थिति जहां सरकारी तंत्र के प्रति बेहद आक्रामक रही है, वही भाजपा के वरिष्ठ नेता उनकी मौजूदगी को एक ऊर्जावान- संघर्षशील युवा नेता के रूप में महसूस करते थे। विभिन्न जगहों पर वह लाठीचार्ज का शिकार बनते रहे हैं।

 

लंबे समय तक विपक्ष में रहने व लंबी लड़ाई लड़ने के बाद आज विज मौजूदा सरकार में बेशक एक बुजुर्ग मंत्री हो, लेकिन उनकी सूझबूझ-परिपक्वता और एक्शन लेने की क्षमता किसी से छुपी नहीं है। उनकी पहचान डिसीजन मैन के रूप में लगातार लोगों की चर्चा का कारण बनी रहती है। आमतौर पर यह बात अधिकांश देखी जाती है कि लाठीचार्ज के दौरान पुलिस अपना पहला प्रहार सिर पर ही करती है और पीजीआई के चिकित्सक भी सिर पर सिस्ट का मुख्य कारण भी कोई पुरानी चोट को मान रहे हैं। अगर यह कहा जाए कि बेहद कठिन और संघर्षशील जीवन जीने वाले अनिल विज को आज भी पुरानी सरकारों के जख्मों को भरना और भोगना पड़ रहा है तो कुछ गलत नहीं होगा।

 

पार्टी समर्पित और निष्ठावान विज ने किया था मजबूरन पार्टी का भी त्याग

 

हरियाणवी राजनीति में एक बड़ा नाम अनिल विज एक बेहद साधारण परिवार से संबंध रखते हैं। राजनीति से कभी कोई सरोकार न रखने वाले इस परिवार में जन्मे अनिल विज ने 37 साल की उम्र में अपने दम पर राजनीति में पैर रखे और 6 बार चुनाव जीत चुके अनिल विज आज बेहद जनप्रिय नेता बन चुके हैं। बैंक की नौकरी को छोड़ पहली बार 27 मई 1990 को अंबाला कैंट उपचुनाव में जीत दर्ज कर विधायक बने। लेकिन राजनीति से पहले भी लोगों की मदद करना, लोगों के दुख दर्द में शामिल होना उनकी आदतों में शुमार रहा। वह कर्मचारी होने के बावजूद जनसेवा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहते थे। जो कि आज तक उन्होंने अपनी इस आदत को बरकरार रखा है। कोरोना संक्रमित होने तथा कई कारणों से अस्पतालों में एडमिट भी रहे व आईसीयू में भर्ती भी हुए। लेकिन छुट्टी मिलने के तुरंत बाद समेत ऑक्सीजन सिलेंडर अपने कार्यालय पहुंचते भी लोगों ने देखा और उनके कार्य शैली को खूब सराहना मिली। 1990 में उनके पहली बार विधायक बनने के बाद अप्रैल 1991 में हरियाणा विधानसभा समय पूर्व ही भंग कर दी गई थी। कुछ वर्ष बाद किसी कारण अनिल विज ने भाजपा का त्याग कर दिया और अप्रैल 1996 और फरवरी 2000 में वह निर्दलीय विधायक बने। वर्ष 2007 में एक राजनीतिक पार्टी ''विकास परिषद" का गठन कर विज ने नारा दिया, काम किया था-काम करेंगे। ज्यादा मान-मनव्वल पर अक्टूबर 2009 में फिर से भाजपा में शामिल हुए और 2009-14 और 2019 के विधानसभा चुनाव में लगातार तीन बार चुनाव जीतकर उन्होंने हैट्रिक लगाई। विज हमेशा स्वार्थ और लालच की राजनीति से दूर रहे और जनता का दुख दर्द हमेशा उनके लिए दुखदाई रहा।

 

 

गुल्ली-डंडा और कंचे के युग वाले विज आज सोशल मीडिया का बखूबी करते हैं प्रयोग

 

विज की लोकप्रियता का मूल मंत्र जनता के प्रति समर्पित और पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर रहना है। प्रदेश के गृह, स्वास्थ्य मंत्री स्वयं स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैब, इंटरनेट और सोशल मीडिया का उपयोग करना पूरी तरह से जानते हैं। न केवल प्रयोग बल्कि इसका सही लाभ कैसे लेना है इसकी भी पूरी तरह से जानकारी वह रखते हैं। इस आयु में पहुंचने के बावजूद भी टेक्नोलॉजी को लेकर पूरी तरह से अनिल विज हाईटेक नजर आते हैं। उनके फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम अकाउंट को देखकर उनकी जागरूकता का अंदाजा लगाया जा सकता है। एक वह दौर था जब युवा पीढ़ी गुल्ली डंडा, कंचे और पतंग जैसे खेलों में भाग लेती थी। लेकिन मौजूदा पीढ़ी इंटरनेट के जाल में फस कर घरों में कैद होकर रह गई है। लेकिन अधिकतर युवाओं द्वारा इंटरनेट के अनेकों प्लेटफॉर्मो का प्रयोग केवल मनोरंजन के लिए किया जाता है। वही सोशल मीडिया का सही और सकारात्मक प्रयोग अगर किया जाए तो उसके बेहतरीन परिणाम हो सकते हैं यह अनिल विज की लोकप्रियता को देखकर सिद्ध होता है। सोशल मीडिया पर ट्विटर अकाउंट होने के कारण वह प्रदेश ही नहीं देश से भी जुड़े किसी भी बड़े मामले पर अपनी बात को बेबाक तरीके से रखते हैं। भले ही विपक्ष द्वारा सरकार, प्रधानमंत्री या प्रदेश के मुख्यमंत्री पर किए गए कटाक्ष का जवाब देना हो या प्रदेश के अधिकारियों को दिशा निर्देश या आदेश देने हों, वह हाईटेक टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। जिसके कारण ही वह सुर्खियों में रहते हैं।

 

प्रदेश के मंत्री अनिल विज का मानना है कि सरकारी तंत्र के माध्यम किए जाने वाले पत्राचार की स्पीड काफी धीमी होने के कारण आदेश और दिशा निर्देश की पालना में काफी वक्त लगता है, लेकिन टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर तुरंत प्रभाव से अधिकारियों तक बात पहुंचाई जा सकती है। वही सोशल मीडिया के माध्यम से जनता को भी पता चलता है कि सरकार क्या कर रही है। इससे सरकार द्वारा की गई कार्यवाही में भी पारदर्शिता नजर आती है। कुछ समय पहले अस्वस्थ होने पर वह अस्पताल में भी इसके जरिए अपने विभिन्न विभागों को नियंत्रित करते रहे थे।

 

 

हाईटेक संसाधनों का खूब उपयोग जानते हैं विज

 

प्रदेश के सबसे साधारण दिखने वाले मंत्री अनिल विज हाईटेक संसाधनों के उपयोग में रुचि रखते हैं। वह अपने सभी विभागों पर नियंत्रण रखने के लिए जहां संसाधनों का प्रयोग करते हैं। वही वह मीडिया तक अपनी बात पहुंचाने के लिए केवल लोक संपर्क विभाग पर निर्भर नहीं रहते। वह खुद मीडिया तक अपनी बाइट्स, अपने बयान और प्रेस नोट पहुंचाते हैं। पुराने जमाने में जब हाईटेक जमाना नहीं था तब भी वह अपने हाथ से लिख कर प्रेस नोट मीडिया तक भिजवाते थे यानि मीडिया से वह दूरियां बनाने में विश्वास नहीं रखते। वह 35 साल से राजनीति में है और 6 बार चुनाव जीत चुके हैं। भाजपा सरकार के सबसे सीनियर मंत्री हैं जो कि जनता में बेहद लोकप्रिय हैं। प्रदेश में जब भारतीय जनता पार्टी का अस्तित्व न के बराबर था तब भी यह अपने क्षेत्र से चुनाव जीतते रहे हैं। जनता हमेशा उनकी प्राथमिकता पर रही है।

 

विज की प्रसिद्धि केवल हवा-हवाई नहीं

 

कुशल नेतृत्व के मालिक, बेबाक और सख्त अंदाज, स्टीक दिशा निर्देश और अनुशासनप्रिय अनिल विज दूरदर्शी सोच रखते हैं। उनकी सुदृढ़ कार्यशैली, फैसले लेने की शक्ति और काम करने का अंदाज जो भी देखता है वह उनका मुरीद हुए बिना नहीं रह सकता। प्रदेश के मंत्री अनिल विज जो अपने सख्त रवैया के लिए विख्यात हैं। लेकिन उनकी प्रसिद्धि केवल हवा-हवाई नहीं है। अनिल विज केवल अपने अधिकारियों और स्टाफ पर ही पूरी तरह से निर्भर नहीं रहते। वह अपना काम और अपने विभागों की कार्यशैली पर खुद नजर बनाए रखते हैं।

 

 

देश की अगली नस्लों की भी चिंता करने वाले मंत्री हैं विज

 

अब बात करते उनकी दूरदर्शिता का। कोरोना की पहली वेव के आने पर ही उन्होंने मेडिकल कॉलेज और हेल्थ विभाग के डॉक्टरस की एक टीम का गठन कर दिया था। जिसका काम केवल कोरोना महामारी क्या है, क्या-क्या इंतजाम किए गए, कौन सी दवाइयां इस्तेमाल की गई, क्या ट्रीटमेंट इस्तेमाल किया गया और क्या-क्या कदम जैसे लाक डाउन, मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग आदि की पालना की गई यह सारा डाटा नोट करना था। ताकि कभी भविष्य में 50-100-200 साल के बाद भी इस प्रकार का प्रकोप आए तो पिछला रिकॉर्ड उठाकर सभी जानकारियां हासिल की जा सके। ताकि जिन कठिनाइयों से आज देश-प्रदेश गुजर रहा है। भविष्य की पीढ़ी को इतनी दिक्कतों का सामना ना करना पड़े। यानि यह वह मंत्री हैं जिन्हें केवल अपने 5 साल के कार्यकाल की चिंता नहीं बल्कि देश की अगली नस्लों की भी वह चिंता कर रहे हैं।

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Content Editor

Ajay Kumar Sharma

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