विधानसभा उपचुनाव 6 महीने में नहीं हो पाता तो आयोग को इसमें आने वाली बाधा प्रमाणित करनी होगी: राम नारायण

punjabkesari.in Wednesday, Jun 02, 2021 - 01:38 PM (IST)

चंडीगढ़ (धरणी) : विधानमंडलों में उपचुनावों की परिस्थिति समय-समय पर उत्पन्न होती रहती हैं। हरियाणा विधानसभा से 27 जनवरी, 2021 को चै. अभय सिंह चैटाला के त्यागपत्र देने से ऐलनाबाद की सीट का उपचुनाव, वर्ष 1996 में बने कानून के अनुसार, 26 जुलाई, 2021 तक होना है। उपचुनाव 6 महीने में कराने के प्रावधान की स्थिति क्यों पैदा हुई, और क्यों उपचुनाव को इस अवधि से टालने का प्रावधान किया गया, अब चुनाव आयोग की कब व क्या भूमिका रहेगी तथा इससे पहले क्या हरियाणा में ऐसी स्थिति पैदा हुईं हैं जब सरकार या चुनाव आयोग में उपचुनाव बारे सहमति बनी पाई या नहीं, ऐसे कुछ विषयों के बारे पँजाब केसरी ने विष्तृत बात की है संविधान व संसदीय प्रणाली के जानकार हरियाणा विधानसभा के पूर्व अतिरिक्त सचिव व पंजाब विधानसभा में पूर्व में सलाहकार रहे राम नारायण यादव से।

प्रश्न : राम नारायण जी, विधानसभा के उपचुनाव 6 महीने में कराने के प्रावधान वर्ष 1996 में किए गये इसके क्या कारण थे?
उत्तर : 
जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 में वर्ष 1996 के केंद्रिय अधिनियम द्वारा सेक्सन-151ए जोड़े जाने से पहले विधानमंडलों में उपचुनाव कराने की कोई समय सीमा नहीं थी। सर्वोच्च न्यायालय ने भी डी. संजीवैया के केस में 1967 में उपचुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने बारे यह कहा कि उपचुनाव कब कराये जाऐं यह चुनाव आयोग तैय करेगा। कुछ मामलों में किन्हीं कारणों से, कभी-कभी बिना स्थिति स्पष्ट किये, उपचुनावों में अत्यधिक देरी हुईं। इसलिए चुनाव सुधारों के लिए गठित गोस्वामी समिति की वर्ष 1990 की रिपोर्ट के आधार पर चुनाव आयोग को 6 महीने के अंदर उपचुनाव कराने के लिए वैधानिकरूप से सेक्सन-151ए द्वारा बंधित किया गया। साथ ही इस सेक्सन में किसी बाधा के उत्पन्न होने के कारण ऐसे चुनाव कराने के लिए कुछ बंधन भी इसमें हैं, जिसके कारण उपचुनाव स्थगित हो सकते हैं या हो नहीं सकते।

प्रश्न : अब ऐलनाबाद उपचुनाव की प्रक्रिया क्या व कब शुरू हो सकती है, और उपचुनाव न होने की स्थिति में क्या हो सकता है?
उत्तर : 
इस सीट का उपचुनाव 26 जुलाई, 2021 तक होना है। इसके लिए जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के सेक्सन-150 के अंतर्गत अधिसूचना जारी करने के लिए 25 से 30 दिन की आवश्यकता है। उपचुनाव की अधिसूचना जून के अंतिम सप्ताह तक या अन्य राज्यों के उपचुनावों के साथ संभव है। आयोग चुनाव-कार्यक्रम की घोषणा से पहले, कानून व्यवस्था के अतिरिक्त, विभिन्न पहलुओं पर विचार करता है। यदि, केंद्रिय सरकार से विचार-विमर्श के बाद, उपचुनाव कराने में कोई बाधा आती है तो चुनाव आयोग उस परिस्थिति को प्रमाणित ;सर्टीफाईद्ध करके उपचुनाव को 6 महीने की अवधि के बाद के लिऐ टाल सकता है।

प्रश्न : क्या हरियाणा में उपचुनावों के ऐसे उदाहरण हैं, और क्या कभी ऐसी परिस्थिति बनी कि जब उपचुनाव 6 महीने की सीमा तथा 1 वर्ष से कम सदन की अवधि होने पर भी उपचुनाव देश-प्रदेश में हुए हैं?
उत्तर :
जी, ऐसे उदाहरण हैं, सेक्सन.151ए लागू होने से पहले व बाद भी। 19 अगस्त, 1982 को श्री गोबिंदराय बत्रा के निधन से फतेहाबाद का 23 दिसंबर, 1983 को उपचुनाव हुआ जिसमें चै. लीलाकृष्ण विधायक बने। चौ. बंसीलाल के वर्ष 1986 में मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें एक वर्ष से कम सदन की अवधि होने पर विधानसभा का 6 महीने के अंदर सदस्य बनाया गया। एक विशिष्ट उदाहरण ताउड़ू का है। चै. कबीर अहमद की सदस्यता सर्वोच्च न्यायालय से 28 फरवरी, 1984 को निरस्त हो गई। चुनाव आयोग ने अन्य राज्यों के उपचुनावों के साथ ताउडू उपचुनाव भी 6 अप्रैल, 1984 को घोषित कर दिया। हरियाणा के मुख्यसचिव व मुख्य चुनाव अधिकारी के अनुरोधों के बाद भी चुनाव आयोग 18 अप्रैल को अधिसुचना जारी करने के निर्णय पर रहे। 17 अप्रैल को हरियाणा सरकार ने चुनाव अधिसूचना रोकने के लिए पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय से एक्स पार्टी आदेश हासिल कर लिए। इसके विरूद्ध चुनाव आयोग सर्वोच्च न्यायालय पहूंचा व 18 अप्रैल को उच्च न्यायालय के आदेश के निलंबन के अंतरीम आदेश संविधान पीठ से हासिल किए, और उपचुनाव घोषित तिथि 20 मई, 1984 को हुए जिसमें चै. तैयब हुसैन विधायक बने। इसमें सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम लैंडमार्क निर्णय 25 अप्रैल, 1984 को आया। अनुच्छेद 75;5द्ध व अनुच्छेद 164;4द्ध जैसे  संविधानिक दायित्व-बंधन निभाने के लिए भी केन्द्र व अन्य प्रदेशों में उदाहरण हैं जब आवश्यकतानुसार चुनाव कराये गये और सदस्य चुने गये जैसे; 1996 में देवेगौड़ा जी, श्रीमति राबड़ी देवी 1997, अशोक गहलोतजी व गिरिधर गोमांगजी 1999 आदि।

प्रश्न : प्रदेश व देश की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ऐलनाबाद उपचुनाव की क्या संभावनाऐं हैं?
उत्तर : 
 प्रथम तो सदस्य द्वारा स्वेच्छा से त्यागपत्र देने पर यह सीट खाली हुई है। दूसरे, सीट रिक्त होते ही सामान्यतः सरकारें समय सीमा में चुनाव के लिए तैयार रहती हैं। तीसरे, चुनाव कराने जैसी प्रदेश में कोई संविधानिक बाध्यता उत्पन्न नहीं हुई। अंत में यदि संबंधित चुनाव क्षेत्र, प्रदेश या देश में ऐसी कोई परिस्थिति चुनाव आयोग के सामने आती है या लाई जाती है जो समय सीमा में चुनाव कराने में बाधा है, उस स्थिति में चुनाव आयोग जनप्रतिनिधि अधिनियम के सेक्सन-151ए के प्रोवीजो-बी के अंतर्गत निर्णय ले सकते हैं, अर्थात चुनाव टाल दिया जाता है।    

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Content Writer

Manisha rana

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