बरोदा उप-चुनाव : एकजुटता बनाए रखना भी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती !

punjabkesari.in Monday, Oct 12, 2020 - 09:57 AM (IST)

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : भारतीय जनता पार्टी के दूसरे कार्यकाल में होने जा रहा बरोदा सीट का उप-चुनाव सभी दलों के लिए चुनौती से कम नहीं है। बेशक अभी प्रदेश में भविष्य में कोई बड़ा चुनाव नहीं होना है, लेकिन फिर भी यह उप-चुनाव सभी दलों के लिए मायने रखता है। सत्ताधारी भाजपा-जजपा गठबंधन के साथ कांग्रेस व इनैलो सभी के लिए यह उप-चुनाव बड़ा इम्तिहान माना जा रहा है, मगर करीब एक साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में 31 सीटों पर जीत दर्ज करके मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी कांग्रेस के लिए इस चुनाव से भी पहले उम्मीदवार का चयन व पार्टी की एकजुटता बनाए रखना भी किसी बड़ी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। 

अतीत पर नजर दौड़ाएं तो सार्वजनिक मंचों पर एकजुटता दिखाने वाली कांग्रेस पार्टी के नेता चुनाव जैसे मौके पर भीतरघात का कोई भी मौका नहीं चूकते। यही वजह रही कि कांग्रेस जनवरी 2019 में हुए जींद उप-चुनाव में बड़ी पराजय का शिकार हुई और उस वक्त पार्टी में भीतरघात का मुद्दा जोर शोर से उठा भी था। गौरतलब है कि जनवरी 2019 में जींद में उप-चुनाव हुआ। कांग्रेस ने जाटलैंड की इस ‘हॉट सीट’ से बड़े चेहरे रणदीप सुर्जेवाला को मैदान में उतारा।

इस उप-चुनाव दौरान चुनावी मंचों व रैलियों पर यूं तो कांग्रेस के तमाम दिग्गज एकजुटता प्रदर्शित करते नजर आए, मगर जब परिणाम आया तो सुर्जेवाला की जमानत जब्त होते-होते बची।  इस परिणाम के बाद जहां सुर्जेवाला ने खुद पार्टी के कई बड़े नेताओं पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से भीतरघात के आरोप लगाए वहीं सत्ताधारी भाजपा के नेताओं ने कांग्रेस की इस फूट पर तंज भी कसे। इस उप-चुनाव में रणदीप सुर्जेवाला को महज 22,742 वोट ही हासिल हुए। जननायक जनता पार्टी (जजपा) के दिग्विजय चौटाला 34,648 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे, जबकि भाजपा के कृष्ण मिढा ने 50,578 वोट प्राप्त करते हुए 12,830 वोटों के अंतर से जीत प्राप्त की। 

संगठन में बदलाव के बाद भी जारी है गुटबाजी
गौरतलब है कि कांग्रेस ने अक्तूबर 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले संगठन में बड़ा फेरबदल किया था। सितम्बर 2019 में डा. अशोक तंवर की जगह पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को प्रदेश इकाई की कमान सौंपी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता नियुक्त किया। अक्तूबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 28.08 प्रतिशत वोटों के साथ 31 सीटों पर जीत दर्ज की। यह वोट प्रतिशत 2014 के विधानसभा चुनाव से 7.50 प्रतिशत अधिक रहा। 2014 में पार्टी को 15 सीटों पर जीत मिली थी। ऐसे में अब एक बार फिर कांग्रेस हाईकमान की ओर से बरोदा उप-चुनाव को एकजुटता के साथ लडऩा एक चुनौती के सामान माना जा रहा है।

कुछ समय पहले ही पार्टी ने विवेक बंसल को हरियाणा का प्रभारी बनाया और बंसल सभी नेताओं से बैठक कर स्पष्ट कर चुके हैं कि आपसी मनमुटाव को दूर कर एकजुटता से आगे बढऩा होगा। उनकी बात पर इतना अमल जरूर देखने को मिला कि उनकी अध्यक्षता में हुई बैठकों में पार्टी के तमाम बड़े नेता एक मंच पर एकजुट नजर आए और 6 अक्तूबर को राहुल गांधी की खेती बचाओ यात्रा के हरियाणा आने पर भी पार्टी के तमाम सियासी दिग्गज अपने नेता के स्वागत में इकट्ठे दिखाई दिए। मगर बरोदा उप-चुनाव में कांग्रेस की यह एकजुटता बनी रहेगी,इस पर सियासी पर्यवेक्षकों के साथ-साथ आम जनता की भी निगाहें है। 

रणदीप व कैप्टन अजय की ड्यूटी लगी बिहार
कांग्रेस के दो बड़े नेताओं रणदीप सुर्जेवाला व कैप्टन अजय सिंह यादव की ड्यूटी हाईकमान द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव में लगाए जाने के बाद अब इन दोनों ही नेताओं को बरोदा विधानसभा उप-चुनाव में पार्टी उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने का समय कम ही मिल पाएगा। उल्लेखनीय है कि रणदीप सुर्जेवाला को बिहार में स्टार प्रचारक की अहम जिम्मेदारी दी गई है तो वहीं पूर्व मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए गठित चुनाव प्रबंधन एवं समन्वय समिति में बतौर सदस्य शामिल किया गया है। खास बात ये भी है कि कैप्टन अजय सिंह यादव बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के संबंधी भी हैं। इन दोनों ही नेताओं के करीब 2 सप्ताह तक बिहार में ही डटे रहने की संभावना है। देखना यह होगा कि कांग्रेस के ये दोनों बड़े नेता बरोदा उप-चुनाव के लिए कितना समय निकाल पाते है।

हुड्डा पिता-पुत्र के लिए बड़ी चुनौती
उल्लेखनीय है कि 2009 से लगातार 3 बार कांग्रेस बरोदा विधानसभा सीट से जीत दर्ज कर चुकी है और ऐसे में कांग्रेस के लिए यह उप-चुनाव और भी अधिक चुनौतीपूर्ण बन गया है। सोनीपत संसदीय सीट से 2019 के चुनाव में पराजय झेलने वाले हुड्डा ने इस संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले बरोदा विधानसभा क्षेत्र में बढ़त जरूर बनाई थी और यह इलाका उनके गृह क्षेत्र रोहतक के साथ लगता है। ऐसे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा एवं उनके पुत्र दीपेंद्र हुड्डा लगातार यहां पर जोर लगाए हुए हैं। इस उप-चुनाव में महज 22 दिन का वक्त बचा है। ऐसे में पार्टी की तरफ से उम्मीदवार फाइनल होने के बाद सभी कांग्रेस दिग्गजों की ओर से उम्मीदवार पर सहमति बनना या न बनना आने वाले समय में देखने वाली बात होगी? 


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Manisha rana

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