कुलदीप बिश्नोई को अब भाव नहीं दे रही BJP, 9 माह में दिए चार बड़े झटके
punjabkesari.in Monday, Dec 09, 2024 - 04:46 PM (IST)
हरियाणा डेस्क (कृष्णा चौधरी) : हरियाणा में राज्यसभा की एक सीट पर होने जा रहे उपचुनाव के लिए कौन होगा सत्तारूढ़ बीजेपी का उम्मीदवार इस पर अब सस्पेंस खत्म हो चुका है। जैसा कि बीजेपी आलाकमान अपने सरप्राइजों के लिए जाना जाता है, वैसा ही इस बार भी हुआ। पिछले कई दिनों से मीडिया हलकों में जिन प्रमुख दावेदारों को लेकर खबरें छप रही थीं। उनमें से किसी को भी पार्टी ने उम्मीदवार नहीं बनाया। राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व प्रमुख रेखा शर्मा के रूप में बीजेपी ने एक ऐसे नेता को टिकट थमाया, जो दूर-दूर तक रेस में भी नजर नहीं आ रही थीं।
रेखा शर्मा की उम्मीदवार ने बीजेपी के जिस एक नेता को बड़ा झटका दिया है। वो हैं दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के छोटे बेटे और उनके सियासी उत्तराधिकारी कुलदीप बिश्नोई, क्योंकि बिश्नोई ने इस सीट के लिए जितना एड़ी चोटी का जोर लगाया था। उतना शायद ही किसी नेता को प्रयास करते देखा गया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह, जेपी नड्डा, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और यहां तक कि केंद्रीय मंत्री मनोहरलाल खट्टर तक से मुलाकात कर अपनी मजबूत दावेदारी पेश की, लेकिन नतीजा सिफर रहा। ऐसा पहली बार नहीं है जब कुलदीप बिश्नोई बीजेपी की गुगली पर बोल्ड हुए हों। 9 महीने में ये चौथा मौका है, जब पार्टी ने उन्हें जोर का झटका दिया है, तो चलिए इससे पहले के उन तीन घटनाक्रमों पर बारी-बारी से नजर डालते हैं।
बेटे को नहीं बनाया गया मंत्री
पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई 2022 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे, तब उन्होंने विधायक पद से त्यागपत्र देकर बेटे भव्य बिश्नोई को उपचुनाव लड़वाया और वो जीते भी। इसी के साथ भजनलाल परिवार की तीसरी पीढ़ी की सियासत में सफल शुरुआत हुई। बताया जाता है कि भव्य के विधायक बनने के साथ ही कुलदीप बेटे को मंत्रिमंडल में शामिल कराने की जुगत में जुट गए। इसी साल मार्च में जब मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सैनी मुख्यमंत्री बने तो बिश्नोई ने पूरी कोशिश की कि नई सरकार में उनके बेटे को भी मंत्री पद मिले लेकिन भाजपा नेतृत्व ने उनकी इस इच्छा का मान नहीं रखा।
हिसार से नहीं मिला लोकसभा का टिकट
बेटे को राज्य की राजनीति में उतारकर कुलदीप बिश्नोई खुद केंद्र की सियासत करने की तैयारी में जुट गए। उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया और सीट वो चुनी जहां से उनके पिता और वो स्वयं भी सांसद रह चुके हैं। हिसार से मजबूत दावेदारी जता रहे कुलदीप बिश्नोई को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब बीजेपी ने तत्कालीन सैनी सरकार में बिजली मंत्री और ताऊ देवीलाल के छोटे बेटे रणजीत सिंह चौटाला को टिकट थमा दिया। बिश्नोई के समर्थकों ने इसका तगड़ा विरोध किया। हालत ऐसे हो गए कि उन्हें खुद सामने आकर लोगों से शांत रहने की अपील करनी पड़ी। हालांकि इसके बावजूद बिश्नोई ने चुनाव प्रचार से दूरी बनाकर रखी। उनकी नाराजगी को दूर करने के लिए खुद सीएम सैनी को उनके घर जाना पड़ा और साथ ही उनके विधायक बेटे को भी संगठन में पद दिया गया।
कुलदीप की दावेदारी खारिज किरण पहुंची राज्यसभा
लोकसभा चुनाव में रोहतक सीट से कांग्रेस सांसद चुने गए दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपनी राज्यसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। लिहाजा चुनाव आयोग ने उनके कार्यकाल के बचे 2 साल के लिए उपचुनाव कराने का ऐलान किया। विधायकों के संख्याबल के हिसाब से बीजेपी की जीत तय थी। लिहाजा लोकसभा का टिकट पाने से चुके कुलदीप बिश्नोई अब राज्यसभा के जरिए संसद पहुंचने की तैयारी करने लगे। उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेताओं के चक्कर लगाने शुरू किए, लेकिन अंत में बाजी मार ले गईं किरण चौधरी, जो लोकसभा चुनाव परिणाम आने के चंद दिनों बाद ही कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुई थीं।
चौथी बार भी हाथ लगी मायूसी
लोकसभा और राज्यसभा चुनाव के दोहरे झटकों से उबरने की कोशिश कर रहे कुलदीप बिश्नोई को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब उनका बेटा भव्य बिश्नोई आदमपुर की परिवार की परंपरागत सीट को नहीं बचा पाया। कांग्रेस ने 57 साल में पहली बार भजनलाल परिवार के इस गढ़ में सेंध लगाते हुए इतिहास रच दिया। भव्य के हारते ही संसद हो या विधानसभा में कुलदीप बिश्नोई के परिवार की मौजूदगी खत्म हो गई, जो 1967 के बाद से लेकर 2024 तक चली आ रही थी। इसी बीच विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाले बीजेपी के राज्यसभा सांसद कृष्णलाल पंवार ने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। हिचकोले खा रही अपनी राजनीति को वापस पटरी पर लाने के लिए बिश्नोई को एकबार फिर मौका दिखा और फिर उन्होंने दिल्ली में बड़े नेताओं के चक्कर लगाने शुरू कर दिए।इस बार उनकी दावेदारी ज्यादा गंभीर मानी भी जा रही थी, लेकिन सोमवार को बीजेपी दफ्तर से जारी टिकटों की सूची में रेखा शर्मा के नाम ने फिर उनके अरमानों को पानी में फेर दिया।
बहरहाल एक तरफ जहां किरण चौधरी भाजपा का दामन थामते ही दो माह के अंदर टिकट राज्यसभा का टिकट हासिल कर लेती हैं, तीन माह में बेटी को विधायक और फिर राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बनवा देती हैं, यानी एक तरह से देखें तो उनके दोनों हाथों में लड्डू है। वहीं दूसरी तरफ दो साल से बीजेपी में रहकर राजनीति कर रहे कुलदीप बिश्नोई के सामने अपना अस्तित्व बचाने की चुनौती है। कुल मिलाकर आज की तारीख में बिश्नोई की बीजेपी में स्थिति किसी पहेली की तरह है। सियासी जानकारों की मानें तो फिलहाल उनके सामने ज्यादा विकल्प भी नहीं रह गया है।