सिर्फ कैप्टन अभिमन्यु कोठी केस जांच ही सी.बी.आई. को क्यों
punjabkesari.in Tuesday, Feb 28, 2017 - 04:23 PM (IST)

चंडीगढ़ (बृजेन्द्र):जाट आरक्षण के दौरान हरियाणा राज्य में दर्ज सैंकड़ों आपराधिक मामलों में से सिर्फ कैप्टन अभिमन्यु की कोठी पर आगजनी को लेकर दर्ज 2 आपराधिक मामलों की जांच हरियाणा सरकार द्वारा सी.बी.आई. को सौंपे जाने पर सवाल खड़े करते हुए इस केस में एक आरोपी अश्विन ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। दायर याचिका में मांग की गई है कि सरकार द्वारा मामले की जांच सी.बी.आई. को ट्रांसफर किए जाने के आदेशों वाली नोटिफिकेशन को रद्द किया जाए। याचिका में केंद्र सरकार, हरियाणा सरकार, डी.जी.पी., हरियाणा, सी.बी.आई., एस.पी. रोहतक, एस.एच.ओ. रोहतक व शिकायतकर्ता को पार्टी बनाया गया है। दायर केस की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने केस की सुनवाई जाट आरक्षण से जुड़े कनैक्टिड मामले के साथ रैफर करते हुए मंगलवार को तय की है।
याचिका में कहा गया कि सम्बंधित मामले में 27 फरवरी, 2016 को पुलिस स्टेशन, अर्बन इस्टेट, रोहतक में दायर शिकायत में आम्र्स एक्ट, दंगा करने, सरकारी कर्मी को ड्यूटी के दौरान चोटिल करने, डकैती, नुक्सान पहुंचाने, टै्रसपासिंग, हत्या के प्रयास व प्रिवैंशन ऑफ डेमेज टू पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट की धाराओं में 40 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। इनमें याची भी शामिल था। हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु की सैक्टर-14, रोहतक में कोठी में आगजनी के आरोपों को लेकर यह मामला दर्ज हुआ था। पुलिस ने मामले में जांच कर कोर्ट में चालान जमा करवा दिया था। जिसके बाद 17 अगस्त, 2016 को रोहतक की सम्बंधित कोर्ट में केस ट्रायल के लिए सौंप दिया गया था। 15 अक्तूबर को केस लम्बित होने के दौरान सी.बी.आई. ने अर्जी दायर कर कहा कि मामले में उसने एफ.आई.आर. दर्ज की है। ऐसे में ट्रायल पर रोक लगाई जाए।
कुल 2147 एफ.आई.आर. दर्ज हुई थीं
याची पक्ष की तरफ से एडवोकेट आर.एस. हुड्डा ने कहा है कि जाट आरक्षण के दौरान कुल 2147 एफ.आई.आर. दर्ज हुई थी। इनमें से सिर्फ 20 से 25 एफ.आई.आर. में ही जांच चली जबकि बाकी मामलों में जांच तक शुरू नहीं हुई। 1000 एफ.आई.आर. हरियाणा में दर्ज हुई। इनमें से 2 कैप्टन अभिमन्यु की कोठी में आगजनी से संबंधित थी। इनमें से एक एफ.आई.आर. में सिर्फ 1 और अन्य में 40 आरोपी हैं। वहीं मामले में इन सिर्फ कैप्टन अभिमन्यु से जुड़े मामले को सी.बी.आई. जांच के लिए भेज गया जबकि अन्य कोई मामला नहीं। सी.बी.आई. को केस ट्रांसफर करने की इस कार्रवाई को तानाशाह, भेदभावपूर्ण, संविधान के अनुच्छेद 14 की उल्लंघना, बताया गया है। वहीं सी.बी.आई. को सौंपी जांच दुर्भावना से प्रेरित बताई गई है।