जुमला मुश्तरका की जमीनों पर मालिकाना हक देने की सीएम ने दिया आश्वासन, फिर भी संशय में किसान
punjabkesari.in Friday, Sep 16, 2022 - 10:44 PM (IST)

चंडीगढ़(चन्द्रशेखर धरणी): प्रदेश में जूमला मालकान व मुश्तरका मालकान की जमीनों को लेकर हरियाणा सरकार के द्वारा 1992 में बनाए गए कानून व 08.04.2022 को सुप्रीम कोर्ट के फैंसले के बाद किसान संगठनो में बड़ी हलचल देखने को मिली है। ज्यादातर किसान संगठन इस मुद्दे को लेकर सक्रीय नजर आये और सरकार से मालिकाना हक़ की मांग करने लगे और इसके साथ ही जूमला मुश्तरका मालकान की जमीनों के साथ ढोलीदार, बुटमीदार, मुकर्रीदार, आबादकार और पट्टेदार भी इस मुहीम के साथ जुड़ गए। 12.09.2022 को प्रदेश के अनेक किसान संगठनों ने नाडा साहिब गुरुद्वारा से मार्च मुख्यमंत्री आवास चंडीगढ़ की तरफ किया और सरकार के साथ इस विषय पर बातचीत व मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद किसान पंचकूला से वापिस चले गए|
क्या है मामला ?
पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट धर्मवीर ढींडसा का कहना है कि चकबंदी के समय शामलात व् पंचायत की मल्कियती जमीनों के अलावा खेवटदारो की कुछ मल्कियती जमीने सांझी रह गई थी। जो राजस्व रिकॉर्ड व जमाबंदी में जूमला मालकान और मुश्तरका मालकान के नाम से दर्ज है और इन ज्यादातर जमीनों पर सम्बंधित गाँव के खेवटदारो की काश्त आज तक चली आ रही है और कुछ जगह को लोगों ने इन जमीनों को तकसीम करके आगे बिक्री भी कर दी|
हरियाणा सरकार ने 1991 में पंजाब विलेज कॉमन लैंड एक्ट के सेक्शन 2(g) में बदलाव करने के उद्देश्य से संशोधन के लिए बिल 05.03.1991 को पेश कर उपनियम 6 जोड़ दिया जिसके तहत यह व्यवस्था कर दी गई। जिन जमीनों का जमाबंदी में मल्कियत के खाना में जुमला मालकान वा दिगर हकदारान, हसब रसद अराजी खेवट, जुमला मालकान, मुश्तरका मालकान दर्ज है। उसको भी शामलात देह इस कानून की परिभाषा में समझा जायेगा और यह बिल 11.02.1992 को एक्ट न: 9/1992 के तौर पर पब्लिश होने के बाद कानून बन गया |
इस क़ानून के लागु होते ही हरियाणा प्रदेश के अनेक किसानो ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चैलेंज कर दिया और पंजाब व् हरियाणा हाई कोर्ट ने इस मामले में दायर अनेक याचिकाओं को इकठ्ठा कर सुनवाई की और जय सिंह बनाम हरियाणा राज्य की लीडिंग याचिका के तहत फैंसला 08.11.2013 को दिया और हरियाणा सरकार के संशोधन विधेयक एक्ट न: 9/1992 को निरस्त कर दिया और हरियाणा सरकार ने पंजाब व् हरियाणा हाई कोर्ट के फैंसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की और 07.04.2022 को उच्चतम न्यायालय ने पंजाब व् हरियाणा हाई कोर्ट के फैंसले को बदल दिया और सरकार के कानून को सही करार दे दिया |
क्या है कानूनी पेचीदगी ?
शुरूआती दौर पर जिन लोगो ने बंजर जमीनों को खेती योग्य बनाया। उनपर खेती शुरू की और बाद में उन्हीं लोगों को जमीनों की मल्कियती खेवटदारो के तौर पर दे दी गई। एक खेवट में एक या एक से अधिक लोग मालिक रिकॉर्ड में दर्ज किये गए। इन खेवटदारो की जमीनों को सामूहिक रूप से मालकान देह कहा गया और कुछ जमीने जो खेवटदारो द्वारा सामूहिक रूप से सामान्य या सांझे उद्देश्य या पुरे गाँव की भलाई के लिए इस्तेमाल की जाती थी। उनको शामलात देह कहा जाने लगा और बाद में इन्ही जमीनों को पंचायत की मल्कियत में तब्दील करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई|
लेकिन समय के साथ जो जमीने किसानो के हल के नीचे रही व् उनका इस्तेमाल किसी भी सांझे उद्देश्य व् गाँव की भलाई के उद्देश्य के लिए जैसे रास्ता, गोहर, धर्मशाला, कुंए, तालाब, बावड़ी, कब्रिस्तान, मंदिर वगैरा नहीं हुआ उन जमीनों पर किसान अपना मालिकाना हक़ का दावा करते है लेकिन सरकार इस दावे को सही मायनों में कानूनी रूप देने की बजाय इन जमीनों को पंचायत की मल्कियती जमीन बनाने के बारे कानूनों में बदलाव करती रही।
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