गायब हो रही है हरियाणा की झूमर और बंदरवाल, हरियाणा सरकार कर रही विरासत को बचाने की नई पहल
punjabkesari.in Friday, Dec 22, 2023 - 02:27 PM (IST)

चंडीगढ़(चंद्र शेखर धरणी): हरियाणा प्रदेश की पुरातन संस्कृति और विरासत की परिचायक झूमर, बंदरवाल और फूलझड़ी आज प्रदेश की संस्कृति से गायब होती दिख रही है। नई पीढ़ी की युवतियों को बेशक इनके बारे में इल्म नहीं है लेकिन बुजुर्ग महिलाओं के लिए इनका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। वे इसे सुख, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक मानती हैं। नए जमाने के मंडप, चाइनीज लडिय़ां और महंगे झूमरों की जगमगाहट के बीच हमारी प्राचीन झूमर और बंदरवाल को अब आउटडेटेड माना जाने लगा है, लेकिन हमारी बुजुर्ग महिलाएं जानती हैं कि इनका क्या महत्व है।
उपलों, बडक़ुल्लों, कुल्हड़ और चक्की को महत्व देने वाले इस हरे-भरे प्रदेश के गांवों में आज भी हमारा विरसा कहीं न कहीं दिख जाता है। हरियाणा के बांगर, बागड़ी और देशवाली संस्कृति वाले तमाम जिलों में इन सब चीजों को आज भी महसूस किया जाता है। सिर पर पगड़ी, चौपाल पर हुक्का, खेत में बैल और पनघट पर नवयौवनाओं का मेल मिलाप आज तक हमारी संस्कृति में रचा बसा हुआ है। होली, लोहड़ी, दशहरे और बैसाखी के मेले हरियाणा-पंजाब की गंगा जमुनी तहजीब की कहानी स्वयं कहता दिखाई देता रहा है। खुशी के मौके पर घरों की चौखटों पर बांधी जाने वाली बंदरवाल जिसका शुद्ध रूप वंदनवार के तौर पर प्रचलित है, आज हमारे घरों से गायब होने लगा है, यही स्थिति झूमर की भी है।
नई दिल्ली के प्रगति मैदान में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले के हरियाणा मंडप में प्रदेश की पुरातन संस्कृति की परिचायक झूमर, फूलझड़ी और बंदरवाल दिखाई दी तो दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र बन गई। सोनीपत के गांव अटायल की रहने वाली कौशल्या देवी के स्टॉल पर महिलाएं हरियाणवी पुरातन संस्कृति को देखने और उससे संबंधित जानकारी प्राप्त करती उमड़ी। इससे यह साबित होता है कि प्रदेश की युवतियों को अपनी संस्कृति को जानने का क्रेज तो है ही।
कौशल्या देवी ने बताया कि उनकी पांचवीं पीढ़ी हरियाणवी धरोहर को बचाने के लिए कार्य कर रही है। पुरानी संस्कृति और विरासत से जुड़ी सभी वस्तुओं की जानकारी उन्होंने ट्रेड फेयर में सभी से साझा की हैं। झूमर, फूलझड़ी वे वस्तुएं हैं जो नई-नवेली दुल्हन अपने ससुराल में लेकर जाती है और एक रस्म के तहत उसे लगाने का जिम्मा दूल्हे के बड़े भाई (जेठ) का होता है। इसी तरह वर्षों पहले घर में किसी विवाह के दौरान स्वागत के लिए बंदरवाल लगाई जाती थी जो अब देखने को कम ही मिलती है। घरों के बाहर शादी में लगने वाले तोरण भी अलग ही आकर्षण रखते रहे हैं।
अपनी संस्कृति को बचाने के लिए हरियाणा की मनोहर सरकार ने काफी सफल प्रयास किए हैं। राखीगढ़ी, सरस्वती नदी का उद्गम, ट्रेड फेयर में हरियाणा की संस्कृति से जुड़ी चीजों की प्रदर्शनी, सूरजकुंड मेले को पारंपरिक रूप देना, गीता जयंती महोत्सव और अब सरकार के प्रयासों से हरियाणा का गीत तैयार करने की जो पहल हुई है, उससे इतिहासकार, बुजुर्ग और हरियाणा की संस्कृति व धरती से जुड़े लोग इसकी खूब तारीफ कर रहे हैं। सोनीपत जिला के गांव फरमाना निवासी जयभगवान कहते हैं कि प्रदेश सरकार ने संस्कृति को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। हरियाणा मंडप में भी आधुनिक वस्तुओं के साथ हरियाणवी संस्कृति की झलक से पुरातन हरियाणा की यादें ताजा हो रही हैं। गांव में बसे हरियाणा से जुड़ी कई परंपराएं अब विलुप्त होने की कगार पर है, उन्हें बचाया जाना जरूरी है।
खेतों में गोबर पाथना, कुल्हड़ में चाय पीना, चौपाल पर हुक्का गुडग़ुड़ाना, धोती-कुर्ता और तुर्रे वाली पगड़ी बांधना व मस्त हास्यपूर्ण जीवनशैली हरियाणा की निशानी और पहचान है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इसी जीवनशैली को आत्मसात करते हुए हरियाणा एक, हरियाणवी एक का नारा दिया। उन्होंने यहां के महापुरुषों की जन्म जयंती को राज्य स्तर पर मनाने की पहल की, हाथ में लठ लिए हुए तस्वीर सांझा की और बुलेट पर शहरों के हालचाल जानने की हरियाणवी संस्कृति को बल देने का काम किया जिससे वे हरियाणा के सभी वर्गों के अंदर लोकप्रिय होते जा रहे हैं।