क्या विश्वविख्यात धर्मनगरी कुरुक्षेत्र की लोकसभा टिकट के बंटवारे में होती रही है धर्म की पालना ?

punjabkesari.in Wednesday, May 10, 2023 - 06:39 PM (IST)

कुरुक्षेत्र (चंद्रशेखर धरणी) : जिस धरती पर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का पावन संदेश दिया, क्या इस धर्म नगरी कुरुक्षेत्र के वाशिंदे मानते हैं कि राजनीतिक रूप से उनके साथ इंसाफ हो रहा है ? क्या यहाँ बहुसंख्यक आबादी को उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी मिल रही है ? क्या महाभारत की लड़ाई के लिए विश्व विख्यात कुरुक्षेत्र का उतना विकास हो पाया है जितने का वह हकदार है ? कुरुक्षेत्र लोकसभा की राजनीतिक पृष्ठभूमि के पूरे इतिहास पर अगर नजर डाली जाएगी कि कौन-कौन से समाज से यहां कौन-कौन किस-किस समय सांसद रहा और राजनीतिक दलों द्वारा किस प्रकार से किसकी अनदेखी हुई। यह जानना जरूरी है।

बता दें कि देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में बेहद ईमानदार छवि वाले गुलजारी लाल नंदा इस क्षेत्र से दो बार सांसद रहे हैं, यह इस लोकसभा क्षेत्र के लिए बेहद सौभाग्यशाली बात कही जा सकती है। लेकिन इसे विडंबना कहें या दुर्भाग्य कि यहां से जीते अधिकतर सांसद यहां के मूल निवासी ही नहीं थे तो कुछ गलत नहीं होगा या यूं कहें कि राजनीतिक दलों ने पैराशूट से अपने चहेतों को यहां से टिकटें दी और जनता ने उन दलों के सम्मान को लेकर दिल खोल कर उन प्रत्याशियों को जिताया। राजनीतिक दलों के इस खेल में कुछ महत्वपूर्ण निर्णायक भूमिका में नजर आने वाले समाज लगातार अनदेखी का शिकार होते चले गए। बहुसंख्यक आबादी में बेहद कुशल नेतृत्व और क्षमता वाले इस समाज के कई नेता बेशक इस बात की पीड़ा आज भी महसूस करते हैं, बावजूद इसके पार्टी के कर्तव्यनिष्ठ, इमानदार और वफादार सिपाही के तौर पर धर्म नगरी में जन्मे नेताओं ने पार्टी धर्म को निभाया। बॉम्बे विधानसभा के दो बार सदस्य तथा दिल्ली कैबिनेट में मंत्री रहने वाले पूर्व कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा को पार्टी ने कुरुक्षेत्र लोकसभा से दो बार चुनाव लड़वाया था, इसके साथ साथ कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता हिसार ओपी जिंदल हरियाणा विकास पार्टी से यहां सांसद रहे तथा उनके पुत्र नवीन जिंदल भी कांग्रेस पार्टी से दो बार कुरुक्षेत्र सांसद बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुके हैं। धर्मनगरी टोहाना निवासी सरदार हरपाल सिंह को भी कांग्रेस पार्टी ने यहां से टिकट देकर चुनाव लड़वाया गया था जो कि वह 1984-89 तक कुरुक्षेत्र लोकसभा से सांसद रहे। इसके साथ ही नारनौल निवासी मनोहर लाल सैनी भी जनता पार्टी की टिकट पर यहां से सांसद रह चुके हैं।

संसदीय क्षेत्र कुरुक्षेत्र में कब-कब कौन-कौन से एरिया जोड़े गए

1966 में हरियाणा के गठन से पहले, 1952, 1957 और 1962 में लोकसभा के लिए तीन आम चुनाव हुए थे। 1952 के आम चुनावों में, अब कुरुक्षेत्र जिले के क्षेत्र करनाल संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा बने। दूसरे आम चुनावों के दौरान, इसने 1962, 1967 और 1971 में हुए लोकसभा चुनावों में अंबाला और कैथल निर्वाचन क्षेत्रों का हिस्सा बनाया। 1973 में एक अलग जिले के रूप में कुरुक्षेत्र के गठन और 1976 में निर्वाचन क्षेत्रों के नए परिसीमन के बाद, यह क्षेत्र अब कुरुक्षेत्र संसदीय क्षेत्र का प्रमुख हिस्सा है। नवंबर 1989 में कैथल और यमुना नगर जिलों के गठन के साथ, कुरुक्षेत्र संसदीय क्षेत्र अब कैथल और यमुनानगर जिलों तक भी फैल गया है।

पैराशूटी सांसदों ने दावे-वायदे कर कुर्सी तो हथियाई, लेकिन क्षेत्र को नहीं माना अपना

50 साल पुराना मुद्दा कुरुक्षेत्र में आज भी जिंदा है। कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, पिहोवा से पटियाला तक रेल लाइन का सर्वे कराया था। उसके बाद से ये रेल लाइन हर चुनाव में मुद्दा बनी, मगर हकीकत आज तक नहीं बन पाई। राजनीतिज्ञों के अनुसार पूर्व सांसद ओपी जिंदल, कैलाशो सैनी और उसके बाद नवीन जिंदल नई लाइन बनवाकर ट्रेन दौड़ाने के वादे तो करते रहे, मगर जमीन पर कुछ नहीं किया। जिस कारण यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, पटियाला नई रेल लाइन से न जुड़ने पर यहां की जनता इनसे खफा  हैं। जानकार बताते हैं कि चंद साल पहले कुरुक्षेत्र में तीन सौ मीटर के दायरे में तीन कांग्रेसी सांसद नवीन जिंदल, ईश्वर सिंह और डॉ. रामप्रकाश रहा करते थे, फिर भी ये रेललाइन नहीं बन पाई।

ये मुद्दे आज भी जस के तस

पुराने कुरुक्षेत्र में रेलवे ट्रैक पर पांच फाटक दिन में घंटों लोगों की जिंदगी जाम कर देते हैं। बीस साल से आरओबी और आरयूबी बनाने की बात कागजों में ही चल रही है। उद्यमी ओपी जिंदल व नवीन जिंदल यहां से सांसद रहे, मगर नया उद्योग नहीं ला पाए। बेरोजगार नौजवान इससे नाराज हैं। राइस मिलर्स का दिवालिया होना, आज तक शहर का आउटर रिंगरोड हकीकत नहीं बन सका, कुरुक्षेत्र में एयरपोर्ट का मुद्दा सिर्फ चुनावी मौसम में जिंदा होता है और बाद में दफन हो जाता। जिस कारण यहां के अधिकतर चुनावों में हवाई अड्डा, उद्योग, पटियाला-पिहोवा-कुरुक्षेत्र-यमुनानगर रेलवे ट्रैक, रोजगार, पर्यटन, विकास इत्यादि के मुद्दे जिंदा हो उठते हैं। लगभग 48 कोस एरिया में फैला कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र बेशक विश्व विख्यात धर्मनगरी है, धरती के कोने कोने में बैठे सनातनी इस धरा को नमन करने यहां पहुंचते हैं, हाल ही में प्रदेश सरकार के अथक सराहनीय प्रयासों से कुरुक्षेत्र की काफी हद तक और पहचान बड़ी हुई है। बावजूद इसके पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश में मौजूद मथुरा, वृंदावन या अयोध्या जैसी धर्मनगरियों के बराबर यहां विकास संभव नहीं हो पाया है।

राजनीतिक दलों ने किंग बनने के हकदार समुदायों को  केवल वोटर तक रखा सीमित

विश्वविख्यात धर्मनगरी कुरुक्षेत्र लोकसभा में अगर जातिगत समीकरणों की बात करते हुए राजनीतिक धरातल पर उतरे तो यहां सैनी समाज को काफी हद तक हर पार्टी ने तवज्जो दी है। लेकिन इस बात की टीस दूसरे उन बहुसंख्यक निर्णायक रोल अदा करने वाले समुदायों में देखने को अवश्य मिलती है जो इस सीट से टिकट के लिए सैनी समाज से कहीं अधिक हकदार हैं। लेकिन हरियाणा की अन्य 9 सीटों पर ओबीसी समाज के वोट बैंक को साधने के लिए हमेशा इस सीट को टारगेट कर महत्वपूर्ण बहुसंख्यक समुदायों को अनदेखा किया जाता रहा। किंग बनने की ताकत और भूमिका वाले समाज यहां केवल वोटर बनकर रह गए। बड़ी संख्या में इस संसदीय सीट पर मौजूद ब्राह्मण और खत्री लगातार हर राजनीतिक दल खास तौर पर राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और भाजपा की सोच के चलते लगातार अनदेखी का शिकार बनते चले गए। ब्राह्मण को खुश करने के लिए बेशक भाजपा ने जाट बाहुल्य सीटें रोहतक और सोनीपत से टिकट ब्राह्मण नेताओं अरविंद शर्मा और रमेश कौशिक को थमा दी हो और जीत भी बेशक ब्राह्मण नेताओं की हुई हो, लेकिन यह बात प्रदेशभर में आज तक भी चर्चा का विषय है कि अगर ताजा-ताजा जाट आंदोलन ना हुआ होता तो इन ब्राह्मण नेताओं की कई लाख वोटों से हार सुनिश्चित थी। यानी यह तो तय है कि अगर भारतीय जनता पार्टी इन्हें फिर से इन्हीं सीटों (खास तौर पर रोहतक) से चुनाव लड़वाएगी तो इन नेताओं की स्थिति बलि के बकरे से कम नहीं होगी। यानी बेशक आज भाजपा सरकार ने 2 लोकसभा (रमेश कौशिक और अरविंद शर्मा तथा एक राज्यसभा (कार्तिकेय शर्मा) को सांसद बनाकर ब्राह्मण समुदाय को अन्य सभी समुदायों से अधिक ताकत और सम्मान बख्शा हो, लेकिन यह सच है कि इस बार ब्राह्मण रोहतक सीट से टिकट लेने का कतई इच्छुक नहीं होगा।

जानकारी के अनुसार 2019 लोकसभा चुनावों में भी टिकट वितरण के दौरान रोहतक सीट से भाजपा उम्मीदवार के नाम सुनिश्चित होने में देरी का मुख्य कारण भी डॉ अरविंद शर्मा का इस सीट से चुनाव लड़ने की इनकारी थी। जोकि जाट आंदोलन के कारण ताजी-ताजी गैर जाटों की नाराजगी के चलते रोहतक लोकसभा सीट के समीकरणों बदल गए और बेहद भाग्यशाली माने जाने वाले डॉ. अरविंद शर्मा बहुत थोड़े अंतर से चुनाव जीत गए। इसी तरह दूसरी तरफ प्रदेश में जाट के बाद सबसे बड़ी जनसंख्या वाली खत्री बिरादरी भी प्रदेश में मात्र एक सांसद होने का दंश लगातार मन में लिए हुए है। करनाल लोकसभा से बेशक इस समाज के संजय भाटिया सांसद हैं, लेकिन प्रदेश की कई लोकसभा सीटों खासतौर पर कुरुक्षेत्र- फरीदाबाद और अंबाला में इनकी बहुतायत आबादी इनके अधिकार और दावे को मजबूत करती है। लेकिन अंबाला सीट आरक्षित होने के कारण कुरुक्षेत्र- फरीदाबाद पर इनकी मजबूत दावेदारी से इनकार नहीं किया जा सकता। इसके साथ अन्य सभी सीटों पर खत्री समाज की खासी आबादी है। पंजाबी खत्री समाज के नेता प्रदेश की 10 लोकसभा में से 3 सीटों पर लगातार मांग करते रहे हैं। मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी में ज्यादा विश्वास करने वाला ब्राह्मण और खत्री समाज का वोटर अगर नाराज हुआ तो चुनावी समीकरण भाजपा के बिगड़ते नजर आ सकते है। इस लिहाज से इनकी अनदेखी राजनीतिक दलों खासतौर पर भाजपा के लिए बेहद नुकसानदायक साबित हो सकती है।

 भाजपा और कांग्रेस के पास कौन-कौन हैं यहां तुरुप के इक्के

तमाम तरह के आंदोलनों - आरोपों और 10 साल लगातार सरकार रहने के कारण अपनों-परायों की भाजपा के प्रति नाराजगी को ध्यान में रखकर इस बार टिकट वितरण करने की जरूरत रहेगी। अगर बात करें कुरुक्षेत्र लोकसभा की तो इसमें भाजपा के पास ब्राह्मण नेता के रूप में डीडी शर्मा एक महत्वपूर्ण - ताकतवर - ईमानदार प्रत्याशी हो सकते हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी के पास एक मजबूत चेहरे के रूप में  वरिष्ठ नेता अशोक अरोड़ा मौजूद है। अरोड़ा के पास संगठन के साथ-साथ विधानसभा अध्यक्ष रहने तथा मंत्री रहने का भी लंबा अनुभव मौजूद है। टिकट किसे मिलेगी यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इस बार कुरुक्षेत्र संसदीय सीट के टिकट वितरण पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत यह अवश्य रहेगी कि उम्मीदवार इसी क्षेत्र से हो। हो सकता है पैराशूटी उम्मीदवार को जनता दरकिनार कर दे।

कुरुक्षेत्र से कौन-कौन कब-कब रहा सांसद

इस लोकसभा क्षेत्र से जनता पार्टी की टिकट पर रघुवीर सिंह (1977-80), जनता पार्टी से मनोहर लाल सैनी (1980-84), कांग्रेस पार्टी से सरदार हरपाल सिंह (1984-89), जनता दल से गुरदयाल सिंह सैनी (1989- 91), कांग्रेस पार्टी से तारा सिंह (1991-96), हरियाणा विकास पार्टी से ओपी जिंदल (1996-98), इनेलो से कैलाशो सैनी (1998-99) तथा (1999-04), कांग्रेस से नवीन जिंदल (2004-09), तथा (2009-14), भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर पहली बार यहां से 2014 में उम्मीदवार के रूप में राजकुमार सैनी चुनाव जीते जो 2019 तक रहे। उसके बाद अब दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी के यहां से नायब सिंह सैनी के रूप में सांसद हैं। कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र में 9 विधानसभा क्षेत्र रादौर- लाडवा- शाहबाद- थानेसर- पिहोवा- गुहला- कलायत- कैथल और पुंडरी आते हैं। जिनमें से 5 पर भाजपा का कब्जा है और क्षेत्र लोकसभा से मौजूदा सांसद नायब सिंह सैनी भी भाजपा की सीट पर चुनाव जीते हैं। इससे पहले राजकुमार सैनी भाजपा की सीट पर जीतने के बाद बागी हो गए थे तथा 'लोकतंत्र सुरक्षा मंच' के नाम से नया दल बनाकर भाजपा को अलविदा कह गए थे।

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Content Editor

Mohammad Kumail

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