हरियाणा में अपनी वंशबेल बढ़ाने की कवायद में राजनेता, राजनीति में परिवारवाद को बढ़ाने में जुटे रहे अनेक सियासी चेहरे
punjabkesari.in Tuesday, Oct 03, 2023 - 09:02 PM (IST)

चंडीगढ़ (चंद्रशेखर धरणी) : समाज मे धारणा है कि पिता का कामकाज बेटा संभालता है लेकिन राजनीति में यह कहावत अगर चरितार्थ होने लगे तो फिर भाई-भतीजावाद और परिवारवाद के आरोप भी लगने लगते हैं। राजनीति कोई धंधा नहीं बल्कि जनसेवा का माध्यम है और इसीलिए इसमें शुचिता की निरंतरता बने रहना लाजिमी है। हरियाणा में स्थिति उलट है। यहां के राजनेताओं ने राजनीति में अपनी वंशबेल बढ़ाने की जो कवायद शुरू की है उससे अच्छे संकेत नहीं मिलते।
उम्र की ढलान में कैथल रैली के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने भरी सभा में संबोधित करते हुए कहा कि वे अभय सिंह को जनता को सौंपते हैं। अगर कुछ गलत करेगा तो मैं कान खींचूंगा। कभी ऐसे ही शब्द चौ. देवीलाल ने अपने बेटे ओमप्रकाश चौटाला के लिए कहे थे। उन्हीं के परिवार के सदस्य अजय सिंह चौटाला ने राजस्थान की रैली में अपने उप मुख्यमंत्री बेटे दुष्यंत को राष्ट्रीय राजनीति में प्रमोट किया। उनके दोनों पुत्र दुष्यंत व दिग्विजय सिंह जेजेपी को पूरी तरह संभाल चुके हैं व दुष्यंत हरियाणा के डिप्टी सीएम हैं। वे चाहते हैं कि पार्टी हरियाणा से बाहर अपनी पैठ बनाए और इसका श्रेय दुष्यंत को मिले।
जींद में मेरी आवाज सुनो रैली में बांगर के शेर कहलाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह ने भी इसी तरह की बात की। बिरेंद्र सिंह जानते हैं कि वे दबाव बनाकर अपने बेटे को मोदी सरकार में मंत्री बनवाएं या भीड़ के जरिए जो अगला कदम उठाएं, उसमें उनकी बजाय उनके बेटे की भूमिका हो। इसीलिए मंच पर बैठे वक्ताओं का नाम काटा और स्वयं मंच संचालन करते हुए बेटे को भाषण के लिए बुलाया। जबकि वहां मंच संचालक मौजूद था। यह भी एक तरह का संकेत होता है।
बीरेंद्र सिंह लंबे समय से राजनीति कर रहे हैं और उन्होंने अपने आईएएस बेटे को राजनीति में लाकर सांसद पद तक पहुंचाया। आगे भी वे उनकी प्रोमोशन देखना चाह रहे हैं। यह अलहदा बात है कि उनके सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह ने कहा कि आपको मेरी परवाह करने की आवश्यकता नहीं, आप जैसा करना चाहते हैं, करें। बीरेंद्र सिंह हुड्डा मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री जैसे महत्वपूर्ण ओहदे पर रहे हैं लेकिन जाने कौन सी टीस बाकी रह गई है, जिसे वे पूरा करना चाहते हैं।
इसी तरह हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी अपने बेटे को सचिवालय में बैठाने का इरादा रखते हैं। इस बार 90 विधायक हैं तो जोड़ तोड़ करके सचिवालय में बैठा सकते हैं। अगली बार सीटें 130 हो सकती हैं, तब और मुश्किल होगी। हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे भजनलाल ने अपने दोनों बेटों कुलदीप बिश्नोई और चंद्रमोहन को राजनीति में आगे बढ़ाया। इसी तरह कुलदीप बिश्नोई अपनी सियासत की कुर्बानी देकर बेटे भव्य को विधानसभा में बैठा चुके हैं। यानी राजनीतिक घरानों के लिए राजनीति एक तरह का बिजनेस बना हुआ है।
गौरतलब है कि जब चौ. बंसीलाल राजनीति के अवसान पर थे तो उन्होंने अपने बेटे सुरेंद्र सिंह को प्रोमोट किया। सुरेंद्र सिंह सांसद भी रहे लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। बंसीलाल के रहते ही सुरेंद्र सिंह हादसे का शिकार हुए और संसार को अलविदा कह गए। वरना आज वे भी राजनीति में किसी मुकाम पर होते। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी किरण चौधरी हरियाणा की सियासत में पदार्पण करती हैं और यह सिलसिला उनकी बेटी श्रुति चौधरी के रूप में आगे चलता रहा है।
सिरसा के कई बार विधायक और मंत्री रहे लक्षमण दास अरोड़ा का पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी बेटी सुनीता सेतिया को राजनीतिक वारिस बनाया। यह अलग बात है कि सफल न होने पर उन्होंने अपने बेटे गोकुल को इसी कदम पर चलाया और बीते विधानसभा चुनाव में गोकुल जीत का स्वाद चखते चखते चूक गए। राव इंद्रजीत सिंह, अजय यादव सहित बहुत से चेहरे हैं जिन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत को बेटे-बेटियों के जरिए आगे बढ़ाया। वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान भी तो इसी तरह की राजनीति का हिस्सा हैं।
सत्ता के दौरान पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला तो अपने भाषण में इस बात का जिक्र करते थे कि व्यापारी का बेटा व्यापारी, किसान का बेटा किसान, ब्यूरोक्रेट का बेटा ब्यूरोक्रेट, डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनता है तो राजनेता का बेटा राजनेता बने, इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। इसमें परिवारवाद का इल्जाम लगाना गलत है।
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