राजनीति में सेवा बने रूल्स के हिसाब से करना चाहिए: राम नारायण

punjabkesari.in Monday, Aug 07, 2023 - 11:49 PM (IST)

चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): बीपीएस राजकीय महिला मेडिकल कॉलेज में अचानक गोहाना से कांग्रेसी विधायक जगबीर सिंह मलिक द्वारा किए गए औचक निरीक्षण  और चिकित्सकों को डांट फटकार का मामला पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। सभी के जहन में एक बड़ा सवाल बना है कि क्या इस प्रकार से किसी विभाग में अचानक जाकर औचक निरीक्षण इत्यादि करने का अधिकार व शक्तियाँ विधायकों को प्राप्त है। इसके लिए हरियाणा विधानसभा से स्पेशल सेक्रेटरी पद से सेवानिवृत्त एवं पंजाब विधानसभा में बतौर एडवाइजर रहे कानून विशेषज्ञ राम नारायण यादव से इस प्रकार के मामलों में कानूनी पर पेचिदगियों पर विस्तार से चर्चा की।

 

हर काम रूल के हिसाब से ही उचित होते हैं: यादव

यादव ने बताया कि राजनीति जनता की सेवा का माध्यम है और जनता अपनी समस्याओं को लेकर प्रतिनिधियों के पास जाती है। लेकिन हर काम रूल के हिसाब से ही उचित होते हैं। जिसके लिए प्रक्रिया निश्चित की गई है। संविधान में आर्टिकल 105 व 194 ने इन्हें पावर दी हुई है और पावर देते वक्त डॉ0 अंबेडकर ने कहा था कि यह विधानमंडल शासन- प्रशासन की शुद्धता को बनाए रखने में पूरी तरह से अधिकृत है। इनके मद में इतनी शक्ति है,लेकिन संसद और विधानमंडल के सदस्यों को पता होना चाहिए कि शक्तियों का इस्तेमाल कैसे करना है। संसद में आर्टिकल 118 तथा विधान मंडलों ने 208 के तहत बनाई कानूनी प्रक्रिया के तहत चलना पड़ता है। इसी हिसाब से आर्टिकल 164 में शासन को जवाबदेह ठहराया गया है, यह सदन का एक प्लेटफार्म है जो समितियों के माध्यम से आर्टिकल 194 में प्रशासन को अकाउंटेबल ठहराया जाता है। सदस्य जनता की सेवा सदन और सदन की कमेटियों के माध्यम से कर सकते हैं।

 

इस प्रकार की प्राइवेट जर्नी से सदस्यों को बचना चाहिए : यादव

 

यादव ने कहा कि जगबीर मलिक व उनके साथ विधायक पार्लियामेंट्री ड्यूटी पर थे या नहीं, यह प्रशन अवश्य बनता है। लेकिन वीडियो से लगता है कि वह पार्लियामेंट्री ड्यूटी पर नहीं थे। अगर होते तो समिति होती और साथ में सरकारी व विधानसभा के अधिकारी भी होते। इसलिए यह प्राइवेट जर्नी लग रही थी। सदस्यों को इससे बचना चाहिए। विधायक पार्लियामेंट्री ड्यूटी पर अवेयर कर सकते हैं और पार्लियामेंट्री ड्यूटी तभी होती है जब सदन या समिति बैठी हो या वह सदन -समितियों की बैठकों में आ जा रहे हों। इसके अलावा उनके पास पावर ऑफ विलेजस नहीं होते। ऐसे में सदस्यों को दूसरे तरीके से सम्मान दिया जाता है जैसा कि सदस्य अपने को चीफ सेक्रेटरी से ऊपर क्लेम करते हैं। लेकिन प्रोटोकॉल के अनुसार इनके पास उन जैसे अधिकार या पावर नहीं होते। जैसे बेशक चीफ इंजीनियर या एससी डीसी से बड़े होते हैं लेकिन जिले का चेयर डीसी ही करता है। इसी प्रकार यहां भी अधिकार चीफ सेक्रेटरी के पास ही होते हैं।

सरप्राइज चेकिंग विधायक के दायरे में नहीं आती :यादव

यादव ने कहा कि वीडियो के अनुसार चिकित्सा ड्यूटी पर थे। वह टेलीफोन पर बात कर रहे थे और लग रहा था कि उन्हें डिस्टरबेंस हो रही थी। ऐसे में पार्लियामेंट्री ड्यूटी पर नहीं होने के कारण वहां के सीनियर मोस्ट अधिकारी को फोन करके जाने का सदस्यों का दायित्व था या फोन पर ही अपनी कठिनाई बताते या स्वास्थ्य मंत्री को फोन करके उनकी जानकारी में आई समस्या को बताते। इससे तुरंत मंत्री डीसी या एसडीएम को भेज छापा इत्यादि लगवाते। विधायक खुद इंस्पेक्शन नहीं कर सकते। हां स्पीकर या कमेटी के माध्यम से वह ऑथराइज किए जा सकते हैं। यादव ने बताया कि रूल्स ऑफ प्रोसीजर आर्टिकल 208 में स्पष्ट है कि समिति की बैठक स्टेट कैपिटल में ही होगी। बाहर करने के लिए भी अनुमति विधानसभा स्पीकर, चेयरमैन लेजिस स्ट्रेट काउंसिल या काउंसिल ऑफ स्टेट दे सकती है। सिस्टम यह कहता है कि किसी विभाग में काम है तो वहां सीनियर अधिकार को फोन करके अपने आने की सूचना दे। फिर अधिकारी का दायित्व है कि वह यह कहे कि आप नहीं आना। मैं खुद आऊंगा या काम बताएं मैं कर दूंगा। अधिकारी से काम लेने का तरीका यही है। इस प्रकार से सरप्राइज चेकिंग सदस्य के दायरे में नहीं आती। इसी प्रकार से जुडिशरी में भी नियम है। एक्सक्यूटिव अंडर 166 में साफ है कि शासन-प्रशासन के काम कैसे चलेंगे। विधानसभा से, गवर्नर कार्यालय से, जुडिशरी ऑफिस से कैसे डील होगी। अगर इस प्रकार से कार्य करने का तरीका होगा तो एंक्रोचमेंट ऑफ अदर हमारे सिस्टम में हो जाती है। इस प्रकार के अतिक्रमण को रोकना चाहिए।

 

 मंत्री ही अपने विभाग के होते हैं फुल फ्लैश इंचार्ज : यादव

 उदाहरण देते हुए यादव ने बताया कि एक बार हरियाणा की एक माननीय कमेटी को एक बड़े रैंक (अतिरिक्त मुख्य सचिव) के अधिकारी ने अभद्र शब्दों से संबोधित किया जो काफी बुरा था। समिति के चेयरमैन यमुनानगर विधायक घनश्याम अरोड़ा के उन्होंने मुझे बुलाकर राय मशवरा किया। जिसके बाद लिए गए एक्शन पर कमेटी का पूरा गौरव और मान सम्मान रहा। इसी तरह हमारा शासन और प्रशासन एक चक्रव्यू है। जनता प्रतिनिधि को चुनती है। प्रतिनिधियों से विधानमंडल बनता है। विधानमंडल से स्पीकर की सेक्टरेट बनती है सेक्टरेट से एक्सक्यूटिव।  मंत्री एग्जीक्यूटिव के हेड हो जाते हैं। मंत्री अपने विभाग के फुल फ्लैश इंचार्ज होते हैं। इसलिए मंत्री को अंडर रूल 166 के तहत अचानक औचक निरीक्षण- छापे मारने और ऑर्डर देने की पूरी पावर होती है। मेरा मानना है कि अगर कोई सदस्य किसी मंत्री को फोन करके समस्या की सूचना दें तो कोई भी मंत्री इसे अनदेखा नहीं करेगा। चाहे विधायक किसी भी पार्टी से हो, मंत्री तुरंत चेक करने के आर्डर जारी करेगा यह सिस्टम है।

 

 

 

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Content Editor

Ajay Kumar Sharma

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