3 सालों में हरियाणा की इन नहरों ने उगली 1770 लाशें, आज भी अपनों की तलाश में दौड़ पड़ते हैं लोग

punjabkesari.in Tuesday, May 09, 2017 - 12:54 PM (IST)

डबवाली/अंबाला:अप्रैल-मई महीने में भाखड़ा डैम से हरियाणा की नहरों का पानी जैसे ही कम किया जाता है तो पानी में पड़ी लाशें नजर आने लगती है। अब तक 3 सालों में हरियाणा की इन नहरों से 1770 लाशें निकल चुकी हैं। दर्जनों लोग अपनों की तलाश में इन लाशों को देखने दौड़ पड़ते हैं। एेसी ही दर्दनाक कहानियों से आपको अवगत करवाते हैं। 
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25 जनवरी 2015 की घटना
25 जनवरी को दलजीत और उसकी पत्नी सुखविंद्र कौर अंबाला के लिए निकले थे। देर शाम दलजीत ने अपनी मां को फोन कर बताया कि आधे घंटे में घर आ रहा हूं। लेकिन वह देर रात तक नहीं पहुंचा। फिर नहर किनारे उसकी गाड़ी मिली। दलजीत की मां का कहना है कि मैं पूरी रात जागकर उनका इंतजार करती रही। अगले दिन डल्लामाजरा में नहर के पास उनकी कार लावारिस मिली। पहले माना गया कि दोनों ने आत्महत्या कर ली है। पुलिस ने नहर पर सर्च अभियान चलाया, लेकिन कुछ पता नहीं चला। 
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16 दिन बाद 10 फरवरी को करीब 140 किमी. दूर रोहतक के पास लिंक नहर में एक शव मिलने की सूचना आई। शव पीजीआई में रखा गया था। हमने वहां जाकर देखा तो बॉडी काफी खराब हो चुकी थी, इसलिए पहचान नहीं हो पाई। माना गया कि उक्त लिंक नहर नरवाना ब्रांच से ही कनेक्ट होने के चलते शव बहते हुए यहां तक पहुंचा। बाद में पुलिस ने डी.एन.ए. कराया तो पता चला कि शव उसके बेटे दलजीत का ही है। पुलिस ने पहले तो इसे आत्महत्या माना, लेकिन जब शव पर कपड़े न होने व कुछ अन्य सबूत के आधार पर हमने हत्या की आशंका जताई। 
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4 साल से लापता पूर्व पार्षद का परिवार आज भी कर रहा तलाश
डबवाली वार्ड-15 के पूर्व पार्षद ओमप्रकाश के बेटे खजान चंद ने बताया कि मेरे पिता जी वर्ष 2012 में अचानक लापता हो गए। वह घर से किसी काम के लिए निकले थे। कुछ लोगों ने उन्हें बड़ी नहर के पास जाते हुए देखा था। पूरे परिवार के दिमाग में तमाम तरह की आशंकाएं आज तक चल रही हैं। उनकी हत्या की गई या हादसा हुआ आज तक पता नहीं चला है। पुलिस में मामला दर्ज करवाने पहुंचा तो उन्होंने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर ली। 

हमने नहर में बह जाने या हत्या कर शव फेंके जाने की आशंका जताई, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। कभी गोताखोर न होने का बहाना बना दिया तो कभी समय का। खजान बताते हैं कि जब पिता लापता हुए तो उनकी नहर की तरफ जाने की सूचना मिली थी। हमने पूरे परिवार और रिश्तेदारों सहित नहरों पर तलाश शुरू कर दी। राजस्थान कैनाल से भाखड़ा की नहरों पर जाल डलवाए, हेड, साइफन सब जगह लोग बिठाए, लेकिन कोई पता नहीं चला। 
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दिन-रात नहरों की नापते रहे पगडंडियां 
दिन रात एक कर नहरों की पगडंडियां नापते रहे। कई रात तक नहरों के हेड पर डेरा डाले रहे। अलग-अलग साइफन पर रिश्तेदार और पड़ोसी बैठे रहे। जहां भी सूचना मिलती कि कोई शव बरामद हुआ है हम वहीं पहुंच जाते। अभी भी साल में दस से 12 शव मिले हैं। उम्मीद यही है कि उनके बारे में कुछ पता चले, पुलिस भी जांच आगे नहीं बढ़ा रही है। उनका कहना है कि सरकार और प्रशासन को ऐसी व्यवस्था करना चाहिए कि हर लापता का जल्दी पता लगाया जाए और नहरों में मिलने वाले हर शव की पहचान हो।


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