एबवी ने विश्व रेटिना दिवस पर किया राष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन, जिसमें डायबिटिक मैकुलर एडिमा के बढ़ते बोझ पर प्रकाश डाला जाएगा
punjabkesari.in Wednesday, Sep 24, 2025 - 04:41 PM (IST)

गुड़गांव ब्यूरो : एबवी, अभिनव दवाओं और समाधानों के विकास के लिए प्रतिबद्ध, वैश्विक स्तर पर अग्रणी बायोफार्मास्युटिकल कंपनी ने विश्व रेटिना दिवस पर इंडिया हैबिटेट सेंटर, दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। डायबिटिक लोगों में दृष्टि हानि के प्रमुख कारणों में से एक, डायबिटिक मैकुलर एडिमा (डीएमई) पर प्रकाश डालना इस सम्मलेन का प्रमुख उद्देश्य था। क्लीवलैंड क्लिनिक की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 14 डायबिटिक में से 1 व्यक्ति को डीएमई होता है। मधुमेह के कारण होने वाली दृष्टि हानि को डायबिटीज़ मैक्युलर एडिमा (डीएमई) कहा जाता है, इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने और भारत में रेटिना की बढ़ती समस्याओं के बोझ से निपटने के लिए सहयोगात्मक दृष्टिकोणों पर विचार-विमर्श करने के लिए मशहूर विशेषज्ञ एकत्रित हुए।
राष्ट्रीय सम्मेलन में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि सबूतों पर आधारित उपचारों ने मरीज़ों के परिणामों में उल्लेखनीय सुधार किया है, फिर भी कई गंभीर चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। सीमित जागरूकता, उपचार के महंगे खर्च, बार-बार इंजेक्शन लगाने का बोझ और रेटिना देखभाल सभी को उपलब्ध न हो पाना, समय पर निदान और प्रभावी प्रबंधन में बाधा बन रही हैं। इन चर्चाओं में नीति-स्तरीय उपायों को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया। राष्ट्रीय मधुमेह कार्यक्रमों में अनिवार्य रेटिना स्क्रीनिंग को शामिल करना, विशिष्ट रेटिना देखभाल सेवाओं का विस्तार करने के लिए सार्वजनिक और निजी भागीदारी को मज़बूत करना, और टियर-2 और टियर-3 शहरों में प्रशिक्षित विशेषज्ञों की उपलब्धता सुनिश्चित करना आदि पर विचार-विमर्श किया गया।
एबवी इंडिया के डायरेक्टर और जनरल मैनेजर सुरेश पट्टाथिल* ने कहा, "एबवी में, हमें गर्व है कि हम 75 वर्षों से अधिक की वैश्विक नेत्र देखभाल विशेषज्ञता के साथ, भारत में डायबिटिक मैक्यूलर एडिमा (डीएमई) से पीड़ित 30 लाख लोगों के जीवन में सार्थक बदलाव ला रहे हैं। विश्व रेटिना दिवस पर आयोजित किए गए राष्ट्रीय सम्मेलन ने दृष्टि हानि पर मधुमेह के प्रभाव पर प्रकाश डाला है। अनुमान है कि, भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या 2045 तक 13.42 करोड़ तक पहुंचेगी, साथ ही दृष्टि हानि की समस्या भी बढ़ने की संभावना काफी ज़्यादा है। हम चाहते हैं कि, समस्या की जल्द से जल्द पहचान होना, उन्नत उपचारों तक पहुंच का विस्तार होना और नवीन समाधानों को अपनाना बहुत ज़रूरी है। हमारा लक्ष्य है, दृष्टि की रक्षा करना, मरीज़ों को मिलने वाले परिणामों को बेहतर बनाना और एक ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त करना, रोकथाम किए जाने योग्य अंधापन रहे ही नहीं।"
इस सम्मेलन में रेटिना देखभाल, एंडोक्रिनोलॉजी और स्वास्थ्य सेवा नीति के क्षेत्र में कार्यरत अग्रणी हस्तियों का प्रतिनिधित्व करते हुए, भारत भर के स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनल्स का एक प्रतिष्ठित पैनल शामिल हुआ, जिसमें डॉ. ललित वर्मा, डॉ. महिपाल सचदेव, डॉ. आर. किम, डॉ. एम.आर. डोगरा, डॉ. चैत्रा जयदेव और डॉ. शशांक जोशी शामिल थे। इस पैनल ने डीएमई के बढ़ते बोझ और व्यापक नेत्र जांच तथा मरीज़-केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर विचार-विमर्श किया। अधिकांश डायबिटिक मरीज़ डीएमई, सुलभ और किफायती उपचार के बारे में जानते भी नहीं हैं, इसलिए जन जागरूकता के ज़रिए समस्या की जल्द से जल्द पहचान करना ज़रूरी है। चर्चाओं में उपलब्ध अलग-अलग उपचारों जैसे एंटी-वीईजीएफ शॉर्ट-एक्टिंग, कॉर्टिकोस्टेरॉइड लॉन्ग-एक्टिंग इम्प्लांट्स, और लेजर थेरेपी पर प्रकाश डाला गया।
विशेषज्ञों ने डीएमई और इसके दूरगामी परिणामों से निपटने के लिए साथ मिलकर कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया। डॉ. ललित वर्मा ने कहा, "डीएमई कामकाजी उम्र के भारतीयों में रोके जा सकने योग्य अंधेपन के प्रमुख कारणों में से एक है। दृष्टि की रक्षा और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए समस्या की जल्द से जल्द पहचान को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है। डॉ. महिपाल सचदेव ने कहा, "यदि हमें डीएमई का पता लगाना है, तो इससे होने वाले गंभीर नुकसान से पहले ही नियमित रेटिना जांच को मधुमेह देखभाल में शामिल करना आवश्यक है, क्योंकि यह नुकसान एक बार हो जाने पर उसे पलटाना मुश्किल है। डॉ. एम.आर. डोगरा ने प्रणालीगत सुधार का आह्वान किया, "हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि गुणवत्तापूर्ण नेत्र उपचार प्रमुख महानगरों के अलावा, दूसरी जगहों पर भी सस्ते और सुलभ हो, क्योंकि वंचित क्षेत्रों में इस अंतर को कम करना देश भर में दृष्टि की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
दक्षिण भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए, डॉ. आर. किम ने प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी भूमिका पर ज़ोर दिया: "मधुमेह की वजह से आंखों में होने वाली समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना और सामुदायिक स्तर पर नियमित नेत्र जाँच को बढ़ावा देना, दृष्टि हानि के जोखिम को काफ़ी हद तक कम कर सकता है, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में। डॉ. चैत्रा जयदेव ने जागरूकता के महत्व पर ज़ोर दिया: "मधुमेह से होने वाली आंखों की समस्याओं के बारे में काफी कम लोगों को पर्याप्त जानकारी होती है, यह बहुत ही चिंताजनक है। हमें मधुमेह से पीड़ित लोगों को यह बताना होगा कि आंखों का स्वास्थ्य उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि हृदय या गुर्दे का स्वास्थ्य। एंडोक्रिनोलॉजी के दृष्टिकोण को सामने रखते हुए, डॉ. शशांक जोशी ने निष्कर्ष निकाला, "डीएमई जैसी जटिलताओं को रोकने के लिए मधुमेह का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है। आंखों के विशेषज्ञों और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट को मरीज़ों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए मिलकर काम करना चाहिए।"
डायबिटिक मैकुलर एडिमा मधुमेह से पीड़ित लोगों में दृष्टि हानि का एक प्रमुख कारण है, उन्नत अवस्था में पहुंचने तक यह अक्सर धीरे-धीरे बढ़ता रहता है। यह मैक्युला को प्रभावित करता है, जो आंखों का वह भाग है जो तीक्ष्ण केंद्रीय दृष्टि के लिए ज़िम्मेदार होता है। जब लंबे समय तक उच्च रक्त शर्करा का स्तर रेटिना की रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है, तब मैक्युला में द्रव का रिसाव होता है और सूजन, विकृति और आखिर में दृष्टि हानि होती है। डीएमई अक्सर चुपचाप बढ़ता है, कामकाजी उम्र के वयस्कों में अंधेपन का यह एक प्रमुख कारण है। भारत में डायबिटिक लोगों की संख्या 10 करोड़ को पार कर चुकी है, जोखिम वाले व्यक्तियों की संख्या लगातार बढ़ती रहेगी। फिर भी, मधुमेह से से होने वाली दूसरी जटिलताओं की तुलना में डीएमई के बारे में जागरूकता कम है, जिससे न पलटाने जैसे अंधेपन को रोकने और सामाजिक और आर्थिक बोझ को कम करने के लिए शिक्षा, जल्द से जल्द जांच और समय पर इलाज महत्वपूर्ण हो जाता है।
एबवी के बारे में
एबवी में, हम एक ऐसे भविष्य की ओर देखते हैं जहां हर व्यक्ति की दृष्टि जीवन भर बनी रहेगी। हमें गर्व है कि, नेत्र देखभाल में विशेषज्ञता के 75 से अधिक वर्षों की विरासत के साथ, हम 125 नेत्र देखभाल उत्पाद प्रदान कर रहे हैं, जो दुनिया भर के मरीज़ों की दृष्टि को संरक्षित और सुरक्षित रखने में मदद करते हैं। हम ग्लूकोमा, नेत्र सतह की बीमारी और रेटिना बिमारियों सहित आंख के आगे से पीछे तक की स्थितियों का इलाज करते हैं।