गोवा में बेरोजगारी के बीच सीएम सावंत का ''सुस्सेगाड मानसिकता'' पर बयान, क्या यह समस्या का हल है : अमित पालेकर
punjabkesari.in Friday, Jan 17, 2025 - 05:40 PM (IST)
गुड़गांव ब्यूरो : गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत द्वारा गोवावासियों के "सुस्सेगाड रवैये" को छोड़ने की अपील ने एक नई बहस को जन्म दिया है। हालांकि उन्होंने इस टिप्पणी को सीधे तौर पर राज्य में बढ़ती बेरोजगारी से नहीं जोड़ा, लेकिन यह बयान ऐसे समय में आया है जब गोवा 8.7% की बेरोजगारी दर से जूझ रहा है, जो राष्ट्रीय औसत 4.5% से लगभग दोगुना है।
युवा नेता सम्मेलन में बोलते हुए, सावंत ने कहा कि "सुस्सेगाड मानसिकता" पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन की विरासत है, जिसने लोगों को आलसी बनाए रखने का काम किया। उन्होंने गोवावासियों से इस मानसिकता को छोड़कर अधिक सक्रिय बनने और राज्य के विकास में योगदान देने की अपील की। उन्होंने कहा, "हम सुबह 9 बजे दुकान खोलते हैं, 12:30 बजे बंद कर देते हैं, फिर शाम 7 बजे पूरी तरह बंद कर देते हैं। यह आदत पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। हमें इस सोच से बाहर निकलना होगा।"
सीएम ने यह भी बताया कि गोवा में कई रोजगार अवसर, विशेषकर एनजीओ और निजी क्षेत्रों में, बाहरी राज्यों के लोगों द्वारा भरे जा रहे हैं। उन्होंने स्थानीय युवाओं से इन अवसरों का लाभ उठाने और सरकार की योजनाओं का उपयोग करके एनजीओ या छोटे व्यवसाय शुरू करने का सुझाव दिया।
हालांकि, सीएम के इस बयान पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। आम आदमी पार्टी के गोवा प्रमुख अमित पालेकर ने गोवावासियों को आलसी कहने के विचार को खारिज कर दिया और भाजपा सरकार पर रोजगार सृजन और सतत उद्योगों को आकर्षित करने में विफल रहने का आरोप लगाया। पालेकर ने ट्वीट किया, “गोवावासी आलसी नहीं हैं। भाजपा सरकार आलसी और अक्षम है, जो नए रोजगार नहीं ला पा रही है। गोवा के युवाओं ने अपनी मेहनत और संसाधनों से देश के सामने एक मिसाल पेश की है। अगर हमारे पास एक बेहतर सरकार होती, तो स्थिति और बेहतर होती।”
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार का पर्यटन और खनन पर अत्यधिक निर्भर होना राज्य की अर्थव्यवस्था को असंतुलित बना रहा है। विपक्ष का दावा है कि रोजगार संकट को हल करने के लिए औद्योगिक विविधीकरण और कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करना जरूरी है।
मुख्यमंत्री सावंत का बयान गोवावासियों को आत्मनिरीक्षण और आत्मनिर्भर बनने का संदेश देने के लिए था, लेकिन यह राज्य की आर्थिक नीतियों को लेकर व्यापक चर्चा का कारण बन गया है। गोवा के सामने अब चुनौती है कि वह अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखते हुए आर्थिक सुधारों की दिशा में ठोस कदम उठाए, जिससे युवाओं के लिए बेहतर रोजगार के अवसर सुनिश्चित हो सकें।