आर्टेमिस हॉस्पिटल्स में दो लाइफ सेविंग लंग ट्रांसप्लांट ने मरीजों को दी नई जिंदगी
punjabkesari.in Tuesday, Dec 23, 2025 - 07:14 PM (IST)
गुड़गांव ब्यूरो : दो जटिल लंग ट्रांसप्लांट (फेफड़ा प्रत्यारोपण) करते हुए आर्टेमिस हॉस्पिटल्स ने एडवांस्ड हेल्थकेयर के मामले में नया मानक स्थापित किया है। इन सफल प्रत्यारोपण से एक विदेशी और एक भारतीय मरीज को नई जिंदगी मिली। यह सफलता मेडिकल की दुनिया में अस्पताल की विशेषज्ञता का प्रमाण है। इस प्रक्रिया में विभिन्न विभागों के बीच बेहतर सामंजस्य देखने को मिला। ये सफल प्रत्यारोपण अंगदान से किसी मरीज के जीवन पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव को दर्शाते हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य उत्तर भारत के उन मरीजों के लिए फेफड़ों के प्रत्यारोपण को अधिक सुलभ बनाना है, जिन्हें पहले इलाज के लिए दक्षिण भारत की यात्रा करनी पड़ती थी। उन्नत प्रत्यारोपण सेवाओं को घर के पास उपलब्ध कराकर यह कार्यक्रम मरीजों और उनके परिवारों पर पड़ने वाले शारीरिक, भावनात्मक और आर्थिक बोझ को कम करता है, साथ ही मेडिकल वैल्यू टूरिज़्म को भी बढ़ावा देता है। आर्टेमिस हॉस्पिटल्स ग्रुप की मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. देवलीना चक्रवर्ती ने कहा, ‘अंग प्रत्यारोपण सिर्फ मेडिकल प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह नई शुरुआत का अवसर भी होता है। ये दोनों मामले दिखाते हैं कि कैसे अनुभवी सर्जन जानलेवा बीमारियों से जूझ रहे लोगों के जीवन में भी आशा के दीप जला सकते हैं। आर्टेमिस में हमारा फोकस हमेशा मरीजों को जीवन नए सिरे से शुरू करने का अवसर देने पर रहता है।’
त्रिनिदाद एंड टोबैगो के 54 वर्षीय जॉन एंड्र्यू मोलेंथियल लंग ट्रांसप्लांट कराने वाले दोनों मरीजों में से एक थे। उनकी फेफड़े की बीमारी लगातार बिगड़ती जा रही थी, इसीलिए उन्हें आर्टेमिस हॉस्पिटल लाया गया था। उन्हें ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत थी, वह अक्सर बीमार रहते थे औेर शरीर कमजोर हो गया था। उनकी स्थिति इसलिए भी जटिल थी, क्योंकि उनकी इम्यून एक्टिविटी ज्यादा थी, जिससे इस बात की आशंका थी कि ट्रांसप्लांट के बाद शरीर नए अंग को रिजेक्ट कर देगा। विदेशी मरीजों के मामले में ट्रांसप्लांट के नियम भी बहुत सख्त हैं। इम्यून मॉड्यूलेटिंग थेरेपी और स्ट्रक्चर्ड फिजियोथेरेपी के माध्यम से मेडिकल टीम कई हफ्तों से उन्हें सर्जरी के लिए तैयार कर रही थी। जैसे ही जालंधर से डोनर लंग का पता चला, शाइनऑन हेल्थकेयर के माध्यम से नेशनल ट्रांसप्लांट अथॉरिटी से संपर्क किया गया। टीम ने सुनिश्चित किया कि डोनर के लंग को समय पर सही व्यक्ति तक पहुंचाया जाए। ग्रीन कॉरिडोर के माध्यम से सुरक्षित तरीके से ऑर्गन को गुरुग्राम लाया गया और 3 दिसंबर को ट्रांसप्लांट किया गया। ट्रांसप्लांट के कुछ ही हफ्ते बाद श्री मोलेंथियल स्वयं से चलने-फिरने में सक्षम हो गए।
दूसरा ट्रांसप्लांट उत्तर प्रदेश के आईटी एक्जीक्यूटिव पुष्पेंद्र कुमार का किया गया। वह एडवांस्ड इंटरस्टिशियल लंग डिसीज से पीड़ित थे। इस कारण से उन्हें सांस लेने में बहुत परेशानी हो रही थी और दूसरों पर निर्भर होना पड़ रहा था। सितंबर में आर्टेमिस आने के बाद उनका ध्यान अपनी शारीरिक क्षमताओं को बेहतर बनाने पर था, हालांकि उन्हें बहुत ज्यादा मोटापा और ज्यादा चल-फिर न पाने जैसी दिक्कतें भी थीं। आर्टेमिस हॉस्पिटल्स ने सफलतापूर्वक उनके लिए अंग दान की व्यवस्था की और नवंबर में चीफ– न्यूरो एनेस्थीशिया एंड न्यूरोक्रिटिकल केयर डॉ.सौरभ आनंद के मार्गदर्शन में ट्रांसप्लांट किया गया। अब पुष्पेंद्र आराम से सांस ले पा रहे हैं और आसानी से अपने रोजाना के काम करने में सक्षम हुए हैं। सर्जरी के करीब पांच हफ्ते में ही वह पहले से काफी सक्षम हुए हैं।
ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया को सफल बनाने वाली टीम में डॉ. संदीप जी. अट्टावर (प्रोग्राम डायरेक्टर एवं चेयर थोरेसिक ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन एंड असिस्ट डिवाइसेज, केआईएमएस हॉस्पिटल्स, हैदराबाद), डॉ. बिस्वरूप पुरकायस्थ (कंसल्टेंट–हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट एंड वस्कुलर सर्जरी, आर्टेमिस हॉस्पिटल्स), डॉ. श्वेता बंसल (सीनियर कंसल्टेंट–पल्मनोलॉजी, आर्टेमिस हॉस्पिटल्स) और डॉ. कुलदीप सिंह (एसोसिएट चीफ–क्रिटिकल केयर (यूनिट 2) आर्टेमिस हॉस्पिटल्स) शामिल रहे। पैनल ने कहा, ‘किसी एंड-स्टेज लंग डिसीज से जूझ रहे लोगों के लिए लंग ट्रांसप्लांट करना जीवन रक्षक हो सकता है। इसके लिए बहुत ध्यान से मूल्यांकन करना होता है, सही डोनर चुनना होता है और परिवार की तरफ से मजबूत समर्थन की जरूरत होती है। इससे शानदार नतीजा मिलता है। इन दोनों सफल ट्रांसप्लांट ने न केवल दो लोगों का जीवन बचाया, बल्कि सार्थक एवं सक्रिय भविष्य की संभावना भी सृजित की। अंगदान बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक डोनर कई जिंदगियां बचा सकता है और समाज पर स्थायी प्रभाव डाल सकता है। इन दोनों सफल ट्रांसप्लांट का स्पष्ट संदेश है: जागरूकता, समन्वय और समर्पित मेडिकल केयर से मुश्किल से मुश्किल मामले भी उम्मीद और नई शुरुआत की कहानी बना सकते हैं।