ज्यूडिशियरी के एग्जाम में अमृत बराड़ ने 15वां रैंक किया हासिल, बोली-भगवान साथ ना होते तो यहां नहीं पहुंच पाती

punjabkesari.in Tuesday, Oct 25, 2022 - 11:20 AM (IST)

चंडीगढ़ (धरणी) : कई बार ज्यूडिशियरी के एग्जाम में असफलता के बाद सकारात्मक सोच के साथ लगातार आगे बढकर सफलता हासिल करने वाली अमृत बराड़ को 15वां रैंक हासिल हुआ है। असफल होने के बाद फिर से तैयारी करना, किताबें उठाना उनके लिए कितना मुश्किल था और अब जब वह हरियाणा में एक जज के रूप में कानून के मंदिर में बैठेगी तो किस प्रकार स एक साधारण जीवन जीने वाली अमृत बराड़ लोगों को इंसाफ देने की सोच रखेंगी, देश में महिलाओं के लिए बने कानूनों और उनके हो रहे दुरुपयोग को लेकर इनकी सोच क्या है और भारतीय फिल्मों में ''डेट पर डेट" के डायलॉग को कैसे झूठा साबित कर पाएंगी, इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर बराड़ से हुई एक विशेष बातचीत के कुछ अंश आपके सामने प्रस्तुत हैं:-

प्रश्न : कई बार प्रयास करने के बाद आप सफल हुई, निराशा में आशा छुपी रही, क्या कहेंगी ?
उत्तर : 
मैं लगातार कोशिशें कर रही थी। कभी एक और कभी दो नंबरों से में रह जाती थी। लेकिन मैंने कदम पीछे हटाने की नहीं सोची। फेल होने के बाद किताब उठाना काफी मुश्किल था लेकिन हमेशा अपनी सोच को सकारात्मक रखा।

प्रश्न : एक बड़ा लक्ष्य आपने प्राप्त किया है, आपकी प्राथमिकताएं क्या रहेंगी ?
उत्तर : 
यह एक ऐसी जिम्मेदारी है कि अगर अपने काम को अनुशासन से - सही ढंग से करते रहें तो कुछ और करने की जरूरत नहीं है। हालांकि अभी ट्रेनिंग होगी, पूरी तरह से मुझे गाइड किया जाएगा, लेकिन मैं जब-जब कोर्ट में गई तो पाया कि आम आदमी कोर्ट से डरता है। इसलिए मेरी कोशिश रहेगी कि हर पार्टी को जजमेंट के बारे में अच्छे से समझा पाऊं। पूरी प्रोसिडिंग को बहुत साधारण तरीके से करने की मेरी कोशिशें रहेंगी।

प्रश्न : आम आदमी के लिए जज दूसरा भगवान होता है, न्याय व्यवस्था पर भरोसा बढे इसके लिए कानून के सरलीकरण को लेकर आपका क्या मत है ?
उत्तर : 
मेरी फैमिली बैकग्राउंड में दूर-दूर तक कोई लायर नहीं था, मुझे भी पहले कोर्ट में जाने से डर लगता था। मैंने भी लॉ की तो मुझे नहीं पता था कि कोर्ट में जाकर क्या करना है, किससे बात करें, किससे पूछें। लेकिन अब यह उपलब्धि- यह पोस्ट मिली है। मुझे यह पता है कि डिले बहुत ज्यादा होते हैं। इसलिए मैं ज्यादा से ज्यादा काम करके जल्द से जल्द इंसाफ देने की कोशिश करूंगी। अपनी तरफ से अच्छे से अच्छा करूंगी।

प्रश्न : कई फिल्मों में "डेट पर डेट" जैसे डायलॉग भी काफी प्रसिद्ध हुए हैं, इस पर आपका क्या मत है ?
उत्तर : 
मेरे हमेशा प्रयास रहेंगे कि जल्दी न्याय हो। हिंदुस्तान एक बड़ी आबादी वाला देश है। लेकिन फिर भी यहां एक अच्छा सिस्टम भी है। इनमें थोड़े और सुधार किए जाने की संभावना भी है। जज बहुत मेहनत करते हैं। मेरे बहुत से जज दोस्त भी हैं और लगातार उनसे बात भी होती है। वह बहुत मेहनत करते हैं। जनसंख्या अधिक होने के कारण केस भी ज्यादा होते हैं और मैं उम्मीद करती हूं कि मैं अपनी तरफ से कुछ अच्छा करूंगी।

प्रश्न : अदालतें शुरू करने को लेकर अपना अनुभव साझा करें ?
उत्तर : 
लोगों को भरोसा करना चाहिए। क्योंकि अगर कोई बात कोर्ट में जाने से पहले ही बैठकर सुलझ सकती है तो वह कोशिश ज्यादा अच्छी है। मिडिएशन एक बहुत अच्छा माध्यम मैं मानती हूं।

प्रश्न : कानून की रक्षक के रूप में जिम्मेदारी संभालने से पहले विचार साझा करें कि महिलाओं के लिए बने कानूनों को लेकर आपकी सोच क्या है ?
उत्तर : 
इंडिया में क्राइम को लेकर एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खिलाफ लगातार अपराध बढ़ रहे हैं। लेकिन दहेज हत्या- बलात्कार जैसे बहुत से मामले सामने ऐसे भी आए हैं कि जहाँ महिलाओं ने मिस यूज किया है। इसलिए एक बैलेंस बनाने की जरूरत है। कानून बनाए, लेकिन इस का मिस यूज ना हो पाए इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

प्रश्न : मिस यूज रोकने को लेकर आपका क्या मत है ?
उत्तर : 
जुडिशरी का काम यह है कि दिखाए गए सबूतों के बेस पर उन्हें न्याय करना है। अपना निजी ओपिनियन इसमें नहीं होता। वकील या पार्टी की तरफ से दिए गए सबूतों पर ही सुनवाई चलती है।लेकिन जजमेंट एक जज को ही देनी होती है और जज भी एक इंसान है। जहां भी दुरुपयोग नजर आएगा, वहां रोकने की अवश्य कोशिश करूंगी।

प्रश्न : सामाजिक दृष्टिकोण से जुडिशरी में आने की चाहत रखने वाली नई पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेंगी ?
उत्तर : 
मुझे यहां पहुंचने में काफी साल लगे। लेकिन बहुत से विद्यार्थी पहली बार में क्लियर करते हैं। जुडिशरी में आने से पहले हमें जीवन में बहुत त्याग करने पढ़ेंगे, यह सोच होनी चाहिए। ऐसा नहीं होता कि 5 दिन पढ़ ले और 5 दिन ब्रेक ले ले। हमारे सिर पर पढ़ने का कोई डंडा नहीं होता, कोई टाइम टेबल बनाकर हमें नहीं देता, यहां पहुंचने की सोच के लिए हमें सब कुछ छोड़ना होगा। फैमिली फंक्शन -रिश्तेदार सब एक तरफ रखने होंगे। जीवन को बड़ा अनुशासन में जीना होगा। अगर इस त्याग के लिए तैयार हैं तो ही इसमें आने की चाहत रखो। क्योंकि यह एग्जाम बहुत से छात्रों की लाइफ को भी खराब कर देता है। कैरियर के अन्य विकल्पों की ओर ध्यान नहीं दे पाता।

प्रश्न : सामाजिक कुरीतियों और रूढ़िवादी परंपराओं को लेकर आप का अध्ययन क्या कहता है ?
उत्तर : 
भारत में लोग बहुत धार्मिक हैं। लेकिन एक तरफ इसका कुछ नुकसान भी देखने को मिलता है। हालांकि पूरी तरह से वेस्टर्न कल्चर भी ठीक नहीं कहा जा सकता। वेस्टर्न देश भी भारतीय कल्चर को अपना रहे हैं। भारत का कल्चर बहुत अच्छा है। लेकिन बहुत आसानी से इसका मिस यूज भी सामने आता रहा है। इसके लिए बेसिक लेवल पर स्टूडेंट की एजुकेशन पर यह चीजें सिखाने की जरूरत है। बच्चे कार्टून देखते हैं, उनमें हर रंग का बच्चा आपस में फ्रेंड दिखाया जाता है यह एक अच्छी बात है। लेकिन यहां वास्तव में ऐसी चीज़ नहीं है। जातिवाद की विचारधारा से लोग ज्यादा प्रभावित हैं। इसलिए बेसिक एजुकेशन में हमें यह सिखाना होगा कि एक अच्छे इंसान बनना कितना जरूरी है।

प्रश्न : इस उपलब्धि को लेकर किसे श्रेय देंगी ?
उत्तर : मैं इसका श्रेय भगवान को देना चाहूंगी। क्योंकि एग्जाम के बाद जब रिजल्ट आया तो मैं यही सोच रही थी कि एग्जाम के वक्त अगर एक उत्तर भी इधर-उधर हो जाता या कुछ याद ना आता तो मैं यहां नहीं पहुंच सकती थी। इसलिए बेशक मेरी मेहनत बहुत ज्यादा हुई, लेकिन अगर भगवान साथ ना होते तो यह नहीं हो पाता।

 


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Content Writer

Manisha rana

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