फ्रीज की जगह मटके का पानी पीना फायदे का सौदा, मटका बनाने वालों की बढ़ी आय

punjabkesari.in Wednesday, Apr 28, 2021 - 04:05 PM (IST)

रेवाड़ी/नारनौल (योगेंद्र सिंह) : कोरोना महामारी के बीच लोगों की जीवन शैली में भी बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। जहां अभी तक रईसी या अमीरी का परिचायक बनकर हर वर्ग के बीच लोकप्रिय हुई फ्रीज का क्रेज शहर से लेकर गांव तक था लेकिन अब इसके विपरीत लोग वापिस अपनी पुरानी जीवन शैली को अपनाते नजर आ रहे हैं। इसे कोरोना के साइड इफेक्ट कहें या फिर लोगों की जागरूकता कि वह अब फ्रिज के ठंडे पानी से तौबा करने लगे हैं। यही कारण हैं कि एक जाति विशेष के लोगों का मंद पड़ा धंधा फिर रफ्तार पकड़ते नजर आ रहा है।

कोरोना के चलते हर रोज चिकित्सक, आयुर्वेद एवं होम्योपैथिक एक्सपर्ट ठंडा पानी पीने से बचने की सलाह दे रहे हैं। संभवत: इसी का नतीजा है कि अभी तक गरीबों के फ्रीज के रूप में विख्यात मटका अब अमीर वर्ग की भी पसंद बन रहा है। पंजाब केसरी ने धारूहेड़ा, रेवाड़ी, नारनौल, कनीना में इस बार मटकों की दुकान की संख्या अधिक होने पर इस बारे में पता किया तो मटका बनाने वाले लोगों ने उनका धंधा बेहतर होने की बात बताई। साथ ही बताया कि अभी तक अधिकतर ग्रामीण लोग ही मटका खरीदते थे लेकिन कुछ समय से अब सडक़ किनारे लगीं उनकी दुकानों पर कारें भी रूकने लगी हैं। कार सवार काफी तादात में मटका खरीद रहे हैं। एक्सपर्ट भी मटके के पानी पीने को स्वास्थ्य के लिए बेहतर बता रहे हैं।

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बच्चें दूसरे रोजगार या नौकरी का कर रहे थे रूख
मटका बनाने वाले मनोहरलाल ने बताया कि कोरोना काल के पहले उनका धंधा बहुत मंद था और इसी के चलते बच्चे दूसरे रोजगार का रूख करने लगे तो कईयों ने नौकरी करना बेहतर समझा। अब जब सब कुछ बंद सा है, तो बच्चे दोबारा पुराने काम कर रहे हैं। साथ ही आज मटका की ब्रिकी भी बहुत हो रही है। एक अन्य महिपाल का कहना है कि पहले तो रोटी का जुगाड़ भी मटका बेचकर बहुत मुश्किल से होता था लेकिन अब समय बदला तो उनकी इनकम भी बढऩे लगी। इस समय कार सवार लोग बड़ी संख्या में मटका खरीदने आ रहे हैं। इसी के चलते डिमांड बढ़ी तो उनके बच्चे उनका साथ दे रहे हैं। 

मटके के पानी के फायदे
मटके का पानी अधिक समय तक ठंडा रहता है, इसके पानी से शरीर को कोई नुकसान नहीं होता, मटके के बारीक-बारीक छिद्रों के कारण पानी रिसता रहता है। मटके का पानी वाष्पीकरण होता है और इसी के चलते वह प्राकृतिक रूप से ठंडा होता है। इससे प्यास बुझ जाती है। 

नारनौल की मिट्टी का होता है उपयोग
मटका बनाने वाले राम सिंह प्रजापत ने बताया कि पहले कनीना की मिट्टी का अधिक उपयोग मटका बनाने में होता था। वहीं इस समय नारनौल एरिए की मिट्टी की डिमांड अधिक है। यही कारण है कि नारनौल की मिट्टी की एक ट्राली करीब साढ़े सात आठ हजार में आती है। राम सिंह के अनुसार मिट्टी पकाने में तीन-चार दिन तो एक मटका बनाने में करीब चार-पांच घंटे लगते हैं।

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Content Writer

Manisha rana

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